सच पूछो तो संगणकका यह वर्णन नितान्त गलत है। चित्रकारकी कल्पनाशक्ति, उसके ब्रशकी ताकत अलग-अलग प्रतीकों और बिम्बोंकी सहायतासे विषय-वस्तूको चित्रित करनेवाली उसकी प्रतिभा -- इसमेंसे कुछ भी तो संगणकके पास नही है।
लेकिन चित्रसे संबंधित कई काम संगणकपर किये जा सकते हैं - इसी प्रकार फोटो, संगीत, वीडियोसे संबंधित काम भी किये जा सकते हैं। खासकर अपने पास यदि कोई बनीबनाई सामग्री हो तो उसमें थोडेसे बदलाव, या करेक्शन या सजावट की जा सकती है। तो पहले चित्रसे शुरुआत करते हैं।
अपने पास कोई अच्छा चित्र हो तो उसे स्कॅन करके फाइलके रूपमें संगणकपर संग्रहित किया जा सकता है। इसके बाद मायक्रोसॉफ्ट पेंट या फोटोशॉप जैसे प्रोग्रामकी सहायतासे उसे एडिट करने बैठो तो पहले संगणककी स्लेटपर वह चित्र देखा जा सकता है --
- हम अपने इस प्रायोगिक चित्रकी कई प्रतिकृतियाँ बना सकते हैं
- मनचाही प्रतिकृतिके आकार को छोटा या बडा कर सकते हैं।
- चित्रका आईना-बिम्ब बना सकते हैं।
- चित्रके किसी भागको पोंछकर उसपर कोई दूसरा रंग या दूसरी आकृति चिपका सकते हैं। या इसी चित्रका कोई हिस्सा दूसरे चित्रपर चिपका सकते हैं।
- चित्रकी रेखाओंको गहरा या फीका कर सकते हैं।
- जब हम बिना किसी चित्रके पेंट प्रोग्राम खोलते हैं तो हमारे सम्मुख एक कोरा पन्ना और कुछ टूल्स खुलते हैं। हम भले ही चित्रकार न हों, फिर भी टूल्सकी सहायतासे कोई चौकोर, त्रिकोण, आयत, गोल, बादलों या पेडकी आउटलाइन इस प्रकारसे कुछ रेखाटन कर उन्हें रंग भरकर सजा सकते हैं।
- चित्रमें थोडाबहुत लिखना हो तो -- हिंदी-भाषामें लिखना हो तो वह भी लिख सकते हैं।
- इस प्रकारसे बनाया नया चित्र एक नया फाइलनेम लगाकर सेव्ह कर सकते हैं।
- यदि चित्रकी सारी बारीकियाँ, रंग, शेड्स आदि उनकी सारी सूक्ष्मताके साथ संभालनी हो (जैसा चित्रकार या डिजाइनर को करना पडता है) तो चित्रको bitmap स्वरूपमें सेव्ह करते हैं, लेकिन ऐसी फाईल बहुत बडी हो जाती है- दस-बीस मेगाबाइटतक भी जा सकती है। लेकिन चित्रकी सूक्ष्मता कम महत्वकी हो तो हम उसे jpeg फाइलके स्वरूपमें सेव्ह करते हैं। bitmap चित्रका आकार बढाया जा सकता है जबकि jpeg फाइलका आकार बढानेपर चित्र धुंधला हो जाता है। एक बार jpeg रूपमें फाइल बनानेके बाद उसे दुबारा रूपमें लानेका कोई फायदा नही है । अतः चित्रका महत्व देखकर उसका रूप निश्चित किया जाता है। छपाईके लिये bitmap फाइल ही रखनी पडती है।
ये सब हुई रोजाना करनेवाले कामोंकी बात। लेकिन वस्त्रोद्योगके लिये अत्यंत उपयोगी काम संगणक कैसे करता है इस बाबत एक सॉफ्टवेअर मैंने 1986 में देखा था -- अर्थात तब, जब संगणक मे प्रोग्राम लिखने और सॉफ्टवेअर बनानेके लिये बहुत पापड बेलने पडते थे। मुंबई स्थित सास्मिरा नामक वस्त्रोद्योग रिसर्च संस्थाके पास यह सॉफ्टवेअर था। साडीके एक डिजाइनमें काफी फूल, पत्तियाँ, गोल इत्यादि आकार, वगैरा वगैरा हों तो केवल कुछेक बटनोंके क्लिक क्लिक से ही अलग अलग रंगोंका संमिश्रण डिजाइनपर आ जाता था। इससे तय किया जा सकता है कि कौनसे रंगोंका चुनाव कितना खिलेगा, बॅकग्राउंडका रंग कैसा हो, इत्यादि। फिर उसी हिसाबसे प्रिंटिंग कंपनियोंको सलाह दी जाती थी। हम जब दुकानमें जाते हैं और एकाध डिजाइन देखते हैं तो दुकानद्रसे जरूर पूछ लेते हैं -- क्या यही डिजाइन दूसरे कलर-कॉम्बिनेशन में भी है -- और दुकानदार कहता है -- हाँ, देखिये ये पाँच कलर-कॉम्बिनेशन आपके सामने रख्खे हैं। यह काम अब संगणकके कारण सरल हो गया है। लेकिन 1986 में जब हमारे देशमें केवल बडी बडी रिसर्च संस्थाएँ ही संगणकका उपयोग जानती थीं, तब भी सास्मिराके पास ऐसा सुंदर सॉफ्टवेअर था और उसका उपयोग हो रहा था यह देखकर मैंने उसी समय मन ही मन सास्मिराको सौ में सौ अंक दे डाले।
अब तो अच्छे संगणक सॉफ्टवेअर मिल जाना और चला पाना दोनोंही बहुत सरल हो गया है। फॅशन डिजाइनर एक अच्छा करियर बन गया है और ऍनिमेशन डिझाइनरभी। इन दोनों क्षेत्रों के विद्यार्थियोंको संगणक डिजाइन आना अत्यावश्यक है।
इस सारे वर्णनसे जैसा कि तुमने समझा होगा, सारांश यही रहा कि हमारे पासके चित्रोंमें थोडेसे जोडतोड या एडिटिंग करनेके लिये हम संगणकमें पेंट या तत्सम कोई प्रोग्राम चुनते हैं। इसी प्रकार अपने पास चित्रफीत हो (विडियो क्लिप) या ध्वनिफीत हो (ऑडियो क्लिप) तो उसका एडिटिंग AVI editor या तत्सम किसी प्रोग्रामसे किया जा सकता है। चित्रोंमें एडिटिंगकी क्षमता के लिये यदि संगणकको चित्रकार कहा जा सकता है तो ऑडियो-विडियो एडिटिंगकी क्षमता के लिये उसे कलाकार भी कहा जा सकता है।
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