सारणी या चार्टको हम खूब देखते हैं -- शायद उसपर गौर नही करते। कभी भी चार-पांच बातोंकी जानकारी एकसाथ देखनी हो तो हम उन्हें एक सारणीमें लिख लेते हैं। उदाहरणके लिये रेलवेकी समय-सारणी। या कभी एक ही जगह हमने कुछ लोगोंके नाम और आगे उनकी जन्मतारीख लिख दी तो हो गई सारणी तैयार। अब एक उडतेसे दृष्टिक्षेपमें ही हम जान लेते हैं कि वयसमें सबसे बडा कौन है और सबसे छोटा कौन।
एक रजिस्टरके पाँच नाम यों थे --
रजिस्टर-क्रमांक नाम ----------- जन्मवर्ष
31) कमला 1982
45) रवींद्र 1987
70) सुषमा 1979
73) जयंती 1981
88) मनोज 1988
यह भी एक सारणी है। इसकी छः आडी पंक्तियोंमें पहली पंक्ति शीर्षक है । बाकी पांच आडी पंक्तियोंमें एक एक व्यक्तिकी जानकारी है। इसके तीन खडे स्तंभ हैं और प्रत्येक स्तंभमें एक अलग मुद्देकी बाबत बताया है। पहला मुद्दा अनुक्रम-संख्या है, दूसरा व्यक्तिका नाम और तीसरा मुद्दा जन्मवर्ष बताता है.
ऐसी सारणियोंपर हम खास ध्यान नही देते, इसीलिये हमारी चेतनामें यह नही आता कि इसे बारीकिसे देखनेसे हम कई बातें सीख सकते हैं। फिर सारणियाँ एक बंधे बंधाये ढाँचेमें अनुशासित ढंगसे लिखी जाती हैं, कई बार उसके कई खानोंमें आँकडे लिखे होते हैं। कइयोंको उन आँकडोंसे औप अनुशासनसे डर लगता है।
लेकिन जिन्हें सारणीकी मजा मालूम है, उन्हें सारणी पढना और उसमें मजेदार जानकारी ढूँढना अच्छा लगता है। उदाहरणस्वरूप उपरोक्त सारणी के लिये हम कह सकते हैं कि इसमें कुल 15 खाने हैं जिनमेंसे 10 खानोंमें आँकडे और पाँचमें नाम हैं। पहला स्तंभ बढते हुए क्रमसे है। थोडा और बारिकीसे सोचनेपर हम कह सकते हैं कि पाँचमेंसे तीन लडकियोंके नाम हैं और सुषमा आयुमें सबसे बडी है।
पर सारणीकी सही मजा तब है कि इसके खानोंको उलटा पुलटा कर सकें और वह भी किसी जानकारी में कोई गलती किये बिना। उदाहरण के लिये उपरोक्त सारणी को दुबारा इस तरहसे लिख सकते हैं कि सारे नाम अक्षरोंके वर्णानुक्रमसे हों--
रजिस्टर-क्रमांक नाम ----------- जन्मवर्ष
31) कमला 1982
73) जयंती 1981
88) मनोज 1988
45) रवींद्र 1987
70) सुषमा 1979
इस नई सारणी के कारण किसी भी आडी पंक्ति की जानकारीमें कोई अंतर नही आया हैं, केवल उन्हें नीचे-ऊपर किया है। अब व्यक्तियोंके नाम तो वर्णानुक्रमसे हो गये हैं लेकिन रजिस्टर-क्रमांक बढते हुए क्रमसे नही रहे बल्कि उलट-पुलट हो गये हैं।
सारणियोंको संगणकपर लिखनेका बडा फायदा ये है कि किसीभी स्तंभके मुद्देके अनुरूप आडी पंक्तियोंको क्षणभरमें ऊपर-नीचे कर सकते हैं जबकि हाथसे लिखकर करनेमें कडी मेहनत और बडी देर लगेगी। अब कइयोंके मनमें प्रश्न आ सकता है कि क्या इस सुविधाका कोई उपयोग है। इसका उत्तर है - हाँ बहुतसे उपयोग हैं।
क्योंकि सारणी को पुनर्लेखित करके हम विभिन्न प्रकारके आँकडोंसे सांख्यिकी निष्कर्षपर पहुँच सकते हैं। इसके लिये संगणककी सॉर्टिंग की सुविधा का प्रयोग करते हैं। दूसरी सुविधासे हम ग्राफ (आलेख) बना सकते हैं।
शासकीय कामकाजमें करीब 40 प्रतिशत कामकाज सारणीके स्वरूपमें किया जाता है। जब संगणक
नही थे तब भी कनिष्ठ वर्गके कर्मचारी सारणीसे संबंधित काम करते थे जिसमें उनका अत्यधिक समय खर्च होता था । साथ ही वह काम इतनी बारिकीसे करना पडता था कि कुछ गिनेचुने लोग ही कर पाते थे, बाकी सबजन उस कामको टाल जाते थे। वरिष्ठ अधिकारी तो यह काम कभी नही करते थे क्योंकि यह उनके समयका अपव्यय होता।
एक बार मेरी एक नई जगह पोस्टिंग हुई। वहाँ किसीने बडी मेहनतसे कार्य़ालयके सभी सौ लोगोंके नाम औऱ उनका जन्मदिनांक एक रजिस्टरमें लिख रखे थे। मैंने पूछा -- तो इस वर्ष कितने लोग निवृत्त हो रहे हैं। फिर क्या था -- दो लोग लग गये इस काम पर कि सारे नाम पढते चलो और गिनते चलो कि कौन कौन निवृत्त हो रहा है। अब भले ही इसमें आधा घंटा लगे या तीन घंटे -- पर बॉसके प्रश्नका इत्तर तो देना ही है। मैंने उन्हें बताया कि संगणक यह उत्तर दो निमटमें दे सकता है बशर्ते कि उनके रजिस्टरकी सारी जानकारी संगणकके पास सारणीके फॉरमॅटमें हो और हम जानते हों कि संगणकसे कैसे काम करवाना है।
कितनी ही प्रशासकीय मुद्दोंकी जानकारी दशकों पहलेसे सारणी-स्वरूप में विविध प्रकारसे रखी हुई है। पहले कुछ उदाहरण देखते हैं --
1) गांवका पटवारी खसरा-खतौनी का पूरा हिसाब सारणी बनाकर रखता है। गांवके सारे किसान, उनकी जमीन का ब्यौरा, वसूला जानेवाला लगान, इत्यादि पूरी जानकारीकी कई सारणियाँ बनाकर रखी जाती है।
2) कार्यालयमें आनेवाली सारी डाक एक टपाल क्लर्क के पास नियत सारणीमें रखी जाती है और उसे समय-समयपर एक ब्यौरा बनाना पडता है कि कोनसी डाक किसके पास गई, कितनोंपर कारवाई या निर्णय हुए, कितने बाकी रहे हैं वगैरा।
3) हर विभागको उसके मार्फत बननेवाली सारी योजनाओंके लिये अर्थसंकल्प (बजेट) बनाना पडता है जिसका सबसे सरल तरीका है कि सारी योजनाओको एक सारणीमें लिखो
इस प्रकार के अनगिनत काम हैं जिनकी जानकारी सारणी में लिखी जाती है।
इन सारे कामोंके लिये लम्बे समय से ही पुराने जमानेके अधिकारियोंने सारणियाँ तैयार कर दी थीं और प्रशासकीय यंत्रणा अच्छी तरह सीख चुकी थी कि इनके आधारपर सारांश और निष्कर्ष कैसे निकाले जाते हैं। कई प्रसंगोंमें इस काममें देर लगती थी, एक-एक खाना गिनकर सारांश निकालना पडता था और वह भी नियत रुटीनसे करना पडता था।
ऐसी क्लिष्टता के कारण सारणीके आँकडोंसे कौनसी नई जानकारी या निष्कर्ष खोजे जा सकते हैं, या जानकारीको सुगमतासे कैसे खोजा जाता है या नई नीतियोंको किस जानकारीका आधार मिले इत्यादि विचार प्रशासनमें कोई नही करता था। उसमें लगनेवाले समयकी माँग देखते हुए वह कठिन भी था।
अब हमें संगणक उपलब्ध हैं। लेकिन अब भी अधिकतर कार्य़ालयोंमें यह कौशल नही पहुँचा है कि उन पुरानी सारणियोंको संगणकपर चढाकर औऱ संगणककी सुविधाओंका उपयोग कर कामको सुगम बवाया जाय। खासकर संगणकमें जो पुनर्रचनाकी (सॉर्टिंग) सुविधा है उससे लाभ उठाकर उपयोगी जानकारी कैसे लें, कौनसी लें इसकी सूझबूझ प्रशासकीय अधिकारियोंमें आजभी अत्यल्प है।
इस सूझबूझके लिये कुछ बातें ध्यानपूर्वक सीखनी पडेंगी जैसे --
ऊपर उदाहरणके लिये लगी सारणी में हमने केवल तीन स्तंभ (तीन मुद्दे) और पांच आडी पंक्तियाँ देखीं -- केवल 15 खाने लेकिन जब 15-20 स्तंभ हों, 50-60 आडी पंक्तियाँ हों तो हाथसे लिखकर उस सारणीकी पुनर्रचना कठिन है और बारबार करना तो असंभव सा है। लेकिन संगणकको यह काम करनेमें एकाध मिनट लगता है। जिसने यह प्रत्यक्ष करके न देखा हो उसे वह अनुमानही नही लगा सकता कि यह कितना सरल है और इससे क्या क्या संभावनाएँ बनती हैं। यही कारण है कि आज भी अधिकांश प्रशासकीय कार्यालयोंमें पुरानी, हाथसे लिखी जानेवाली सारणियाँ उसी ढाँचेमें वर्ड सॉफ्टवेअरमें लिखी जाती है-- एक रिपोर्ट दे दी जाती है कि हमने तो इस कामका संगणकीकरण कर लिया। लेकिन निष्कर्ष के लिये पहले की तरह अधिक समय भी लगता है और नया ढाँचा नही बननेसे नई जानकारीको सामने नही लाया जा सकता।
इस दृश्य को देखकर कई बार मुझे बचपनमें सुनी एक कहानी याद आती है। एक आश्रममें एक ऋषी तप करने बैठे। उनकी ख्याति थी कि वे सत्यवचनी हैं। एक हरिण दौडकर आया और एक दिशांमें जाकर ओझल हो गया -- पीछे पीछे एक शिकारी हरिणका पीछा करता हुआ वहाँ आया। उसने ऋषिको प्रणाम कर पूछा कि बताइये हरिण किस दिशामें भागा है, आप तो सच ही बताएंगे । ऋषि नही चाहते थे कि शिकारीको सच बतायें और हरिण मारा जाये। ऋषीने कहा --अरे, मेरी जिन दो आँखोंने हरिण देखा वे बोल नही सकती और मेरी जीभ जो बोल सकती है, उसने कुछ देखा ही नही -- इसीसे मैं तुम्हारे प्रश्नका उत्तर नही दे सकता-- अब जाओ।
संत तुलसीदासनेभी रामायणमें ऐसीही कल्पना की है -- मंदिरमें पूजाके लिये गई सीताको रामका दर्शन होता है। फिर सखियाँ छेडती हैं कि बता राम कैसा है -- सीता उत्तर देती है -- "गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी" अर्थात मेरी जीभके पास नयन नही हैं और नयनोंको वाचा नही, फिर मैं क्या वर्णन बखानूँ?
लेकिन सरकारी कार्य़ालयोंमें यह प्रसंग अलग तरहसे घटता है। जो क्लार्क संगणकपर काम करते हैं उन्हें मालूम नही होता कि सारणी-लेखनके सॉफ्टवेअरमें सारणी बनानेसे संगणक गिनती और गणित कर सकता है। जो वरिष्ठ अधिकारी सारणी- सॉफ्टवेअरका उपयोग जानते हैं, और वैयक्तिक कामके लिये करते भी हैं, उन्हें यह नही मालूम कि क्लार्क-लोग सारणी बनानेके लिये एक्सेल या स्प्रेडशीटकी बजाय वर्ड या कोई गद्यलेखन सॉफ्टवेअरका ही प्रयोग कर रहे हैं और इस प्रकार संगणककी गणिती क्षमता का उपयोग न कर खुदका समय खर्च कर रहे हैं। खैर
जब हम हाथसे सारणी बनाते हैं तब स्लेटपर या कागजपर आडी और खडी लकीरें खींचकर पहले खाने आँक लेते हैं। सबसे पहली आडी पंक्तिमें शीर्षक लिखते हैं और सबसे पहले स्तंभमें प्रायः अनुक्रम जबकि दूसरे स्तंभमें वह सर्वप्रमुख मुद्दा जिसके बाबत कई तरह की जानकारी अगले स्तंभोंमें देनी है -- जैसे लोगोंके नाम। इसके बाद बाकी स्तंभोंमें वह जानकारी लिखते हैं जो स्तंभ-शीर्षकसे ध्वनित होती है।
अब चूँकि यह सारा काम हाथसे किया जा रहा है, तो सावधानीसे और अथक मेहनतसे यह पहली बार किसी तरहसे पूरा कर लेते हैं। अब हमें सारणीकी रचना बदलनेकी गुंजाइश नही बचती। अगली सारी गिनतियाँ भी खुदही करनी होती है -- औऱ वह जितनी कम करनी पडें उतना अच्छा -- इसी कारण पहले सरकारी कार्यालयोंकी सारणियाँ लम्बी-चौडी और कई खानोंवाली होती थीं। लेकिन यही काम यदि संगणकको करने दिया जाय तो क्या होगा ?
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महाराष्ट्रके मंत्रालयमें कार्यासन 16-ब में हमने यह अभिनव प्रयोग किया था --
सामान्य प्रशासन विभागके कार्यासन 16-ब में आनेवाली डाकपर अधिक कुशलतासे कारवाई हो, पत्रोंको शीघ्रतासे निर्गत किया जा सके, उनका ट्रॅकिंग भी कर सकें, जिला-दर-जिला डाकको एक-एक सारणीमें रखकर फिर एकही पत्रसे जिलाधिकारीको सारे संदर्भोंकी बाबत पूछा जा सके, और एकही स्वरूपकी सभी धारिकाओंको एकही तरीका अपनाकर एक-गठ्ठा निर्गत किया जा सके ऐसे सारे उद्देश लेकर हमने आनेवाली डाकको लिखनेकी एक सारणी-आधारित अभिनव कार्यपध्दती अपनाई। उससे पहले सेटलमेंट कमिशनरके पदपर काम करते हुए उस ऑफिसके लिये भी डाकका रेकॉर्ड रखनेकी यही पद्धती मैंने लागू कराई थी।
इस पद्धतीमें हर डेस्क (कार्यासन) में आने वाली डाक को १७ स्तंभोंकी एक सारणी में अंकित करते हैं।
इस सारणीके स्तंभोंका उपयोग यों हैः--
इस सारणीका प्रिंट आउट लेनेके लिये स्तंभ क्र. १ से ९ तक एक ए४ कागज पर और फिर स्तंभ क्र. १,५,६, १० से १७ का प्रिंट आउट दूसरे कागज पर लेना चाहिये। इससे एकही दृष्टिक्षेपमें प्राप्त डाक और की गई कारवाईका विवरण उपलब्ध हो सकता है।
प्राप्त डाक पर विहित कालावधीमें कारवाई हुई है या नही यह जानने के लिये हमने हर दस दस दिनोंका सारांश उपसचिव और सचिव स्तर पर जाँचनेका नियम बनाया था। इस सारांश के लिये स्वरूप के साथ सॉर्टिंग किया गया। उससे समझमें आता है कि किस प्रकार की कितनी फाइलें पेंडिंग हैं।
इस नई सारणीके कारण और इसके प्रयोगकी विधि सबको समझाये जानेके कारण कई लाभ हुए। डाककी रजिस्टरमें दर्ज करनेके काममें करीब तीस प्रतिशत समय बचा। स्वरूप के कारण एक तरहकी फाइलोंको एक साथ देखना और एक ही तरहकी नीतिसे निबटारा करना संभव हुआ, उनका उचित नियोजनभी संभव हुआ। एक कार्यासनको न्यायालयमें चल रही सात-आठसौ केसेसके कारण बडी परेशानी थी -- उन्हें सारणी पद्धति से लिखवानेपर उनका भी नियोजन समयबद्ध तरीकेसे होने लगा।
सरकारी कामोंमें अब पुराने जमानेकी सारणियोंमें सुधार कर संगणककी क्षमताओंका लाभ उठाते हुए नई सारणियाँ बनाने के लिये विचारपूर्वक प्रयास होने चाहिये।
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रजिस्टर-क्रमांक नाम ----------- जन्मवर्ष
31) कमला 1982
45) रवींद्र 1987
70) सुषमा 1979
73) जयंती 1981
88) मनोज 1988
यह भी एक सारणी है। इसकी छः आडी पंक्तियोंमें पहली पंक्ति शीर्षक है । बाकी पांच आडी पंक्तियोंमें एक एक व्यक्तिकी जानकारी है। इसके तीन खडे स्तंभ हैं और प्रत्येक स्तंभमें एक अलग मुद्देकी बाबत बताया है। पहला मुद्दा अनुक्रम-संख्या है, दूसरा व्यक्तिका नाम और तीसरा मुद्दा जन्मवर्ष बताता है.
ऐसी सारणियोंपर हम खास ध्यान नही देते, इसीलिये हमारी चेतनामें यह नही आता कि इसे बारीकिसे देखनेसे हम कई बातें सीख सकते हैं। फिर सारणियाँ एक बंधे बंधाये ढाँचेमें अनुशासित ढंगसे लिखी जाती हैं, कई बार उसके कई खानोंमें आँकडे लिखे होते हैं। कइयोंको उन आँकडोंसे औप अनुशासनसे डर लगता है।
लेकिन जिन्हें सारणीकी मजा मालूम है, उन्हें सारणी पढना और उसमें मजेदार जानकारी ढूँढना अच्छा लगता है। उदाहरणस्वरूप उपरोक्त सारणी के लिये हम कह सकते हैं कि इसमें कुल 15 खाने हैं जिनमेंसे 10 खानोंमें आँकडे और पाँचमें नाम हैं। पहला स्तंभ बढते हुए क्रमसे है। थोडा और बारिकीसे सोचनेपर हम कह सकते हैं कि पाँचमेंसे तीन लडकियोंके नाम हैं और सुषमा आयुमें सबसे बडी है।
पर सारणीकी सही मजा तब है कि इसके खानोंको उलटा पुलटा कर सकें और वह भी किसी जानकारी में कोई गलती किये बिना। उदाहरण के लिये उपरोक्त सारणी को दुबारा इस तरहसे लिख सकते हैं कि सारे नाम अक्षरोंके वर्णानुक्रमसे हों--
रजिस्टर-क्रमांक नाम ----------- जन्मवर्ष
31) कमला 1982
73) जयंती 1981
88) मनोज 1988
45) रवींद्र 1987
70) सुषमा 1979
इस नई सारणी के कारण किसी भी आडी पंक्ति की जानकारीमें कोई अंतर नही आया हैं, केवल उन्हें नीचे-ऊपर किया है। अब व्यक्तियोंके नाम तो वर्णानुक्रमसे हो गये हैं लेकिन रजिस्टर-क्रमांक बढते हुए क्रमसे नही रहे बल्कि उलट-पुलट हो गये हैं।
सारणियोंको संगणकपर लिखनेका बडा फायदा ये है कि किसीभी स्तंभके मुद्देके अनुरूप आडी पंक्तियोंको क्षणभरमें ऊपर-नीचे कर सकते हैं जबकि हाथसे लिखकर करनेमें कडी मेहनत और बडी देर लगेगी। अब कइयोंके मनमें प्रश्न आ सकता है कि क्या इस सुविधाका कोई उपयोग है। इसका उत्तर है - हाँ बहुतसे उपयोग हैं।
क्योंकि सारणी को पुनर्लेखित करके हम विभिन्न प्रकारके आँकडोंसे सांख्यिकी निष्कर्षपर पहुँच सकते हैं। इसके लिये संगणककी सॉर्टिंग की सुविधा का प्रयोग करते हैं। दूसरी सुविधासे हम ग्राफ (आलेख) बना सकते हैं।
शासकीय कामकाजमें करीब 40 प्रतिशत कामकाज सारणीके स्वरूपमें किया जाता है। जब संगणक
नही थे तब भी कनिष्ठ वर्गके कर्मचारी सारणीसे संबंधित काम करते थे जिसमें उनका अत्यधिक समय खर्च होता था । साथ ही वह काम इतनी बारिकीसे करना पडता था कि कुछ गिनेचुने लोग ही कर पाते थे, बाकी सबजन उस कामको टाल जाते थे। वरिष्ठ अधिकारी तो यह काम कभी नही करते थे क्योंकि यह उनके समयका अपव्यय होता।
एक बार मेरी एक नई जगह पोस्टिंग हुई। वहाँ किसीने बडी मेहनतसे कार्य़ालयके सभी सौ लोगोंके नाम औऱ उनका जन्मदिनांक एक रजिस्टरमें लिख रखे थे। मैंने पूछा -- तो इस वर्ष कितने लोग निवृत्त हो रहे हैं। फिर क्या था -- दो लोग लग गये इस काम पर कि सारे नाम पढते चलो और गिनते चलो कि कौन कौन निवृत्त हो रहा है। अब भले ही इसमें आधा घंटा लगे या तीन घंटे -- पर बॉसके प्रश्नका इत्तर तो देना ही है। मैंने उन्हें बताया कि संगणक यह उत्तर दो निमटमें दे सकता है बशर्ते कि उनके रजिस्टरकी सारी जानकारी संगणकके पास सारणीके फॉरमॅटमें हो और हम जानते हों कि संगणकसे कैसे काम करवाना है।
कितनी ही प्रशासकीय मुद्दोंकी जानकारी दशकों पहलेसे सारणी-स्वरूप में विविध प्रकारसे रखी हुई है। पहले कुछ उदाहरण देखते हैं --
1) गांवका पटवारी खसरा-खतौनी का पूरा हिसाब सारणी बनाकर रखता है। गांवके सारे किसान, उनकी जमीन का ब्यौरा, वसूला जानेवाला लगान, इत्यादि पूरी जानकारीकी कई सारणियाँ बनाकर रखी जाती है।
2) कार्यालयमें आनेवाली सारी डाक एक टपाल क्लर्क के पास नियत सारणीमें रखी जाती है और उसे समय-समयपर एक ब्यौरा बनाना पडता है कि कोनसी डाक किसके पास गई, कितनोंपर कारवाई या निर्णय हुए, कितने बाकी रहे हैं वगैरा।
3) हर विभागको उसके मार्फत बननेवाली सारी योजनाओंके लिये अर्थसंकल्प (बजेट) बनाना पडता है जिसका सबसे सरल तरीका है कि सारी योजनाओको एक सारणीमें लिखो
इस प्रकार के अनगिनत काम हैं जिनकी जानकारी सारणी में लिखी जाती है।
इन सारे कामोंके लिये लम्बे समय से ही पुराने जमानेके अधिकारियोंने सारणियाँ तैयार कर दी थीं और प्रशासकीय यंत्रणा अच्छी तरह सीख चुकी थी कि इनके आधारपर सारांश और निष्कर्ष कैसे निकाले जाते हैं। कई प्रसंगोंमें इस काममें देर लगती थी, एक-एक खाना गिनकर सारांश निकालना पडता था और वह भी नियत रुटीनसे करना पडता था।
ऐसी क्लिष्टता के कारण सारणीके आँकडोंसे कौनसी नई जानकारी या निष्कर्ष खोजे जा सकते हैं, या जानकारीको सुगमतासे कैसे खोजा जाता है या नई नीतियोंको किस जानकारीका आधार मिले इत्यादि विचार प्रशासनमें कोई नही करता था। उसमें लगनेवाले समयकी माँग देखते हुए वह कठिन भी था।
अब हमें संगणक उपलब्ध हैं। लेकिन अब भी अधिकतर कार्य़ालयोंमें यह कौशल नही पहुँचा है कि उन पुरानी सारणियोंको संगणकपर चढाकर औऱ संगणककी सुविधाओंका उपयोग कर कामको सुगम बवाया जाय। खासकर संगणकमें जो पुनर्रचनाकी (सॉर्टिंग) सुविधा है उससे लाभ उठाकर उपयोगी जानकारी कैसे लें, कौनसी लें इसकी सूझबूझ प्रशासकीय अधिकारियोंमें आजभी अत्यल्प है।
इस सूझबूझके लिये कुछ बातें ध्यानपूर्वक सीखनी पडेंगी जैसे --
- जो भी जानकारी सारणी के रूपमें देना संभव है, उसे विवरणात्मक लिखनेकी बजाय हमेशा सारणीमें ही लिखा जाय,
- सारणी-लेखन के लिये हमेशा सारणी-लेखन सॉफ्टवेअरका ही उपयोग किया जाय न कि वर्ड जैसे गद्यलेखन सॉफ्टवेअरका ।
- सारणी-लेखन के सॉफ्टवेअरमें संगणकको बताया जाता है कि अब उसके गणित-कौशलका प्रयोग करना है, और इसके लिये संगणक तैयार हो जाता है। गद्यलेखन सॉफ्टवेअरमें भी सारणी लिखनेकी सुविधा तो है लेकिन संगणक उसपर कोई गणित-प्रक्रिया नही कर सकता -- उससे सॉर्टिंग या ग्राफ नही बना सकता, जोड, घटा, गुणा-भाग आदि नही कर सकता।
ऊपर उदाहरणके लिये लगी सारणी में हमने केवल तीन स्तंभ (तीन मुद्दे) और पांच आडी पंक्तियाँ देखीं -- केवल 15 खाने लेकिन जब 15-20 स्तंभ हों, 50-60 आडी पंक्तियाँ हों तो हाथसे लिखकर उस सारणीकी पुनर्रचना कठिन है और बारबार करना तो असंभव सा है। लेकिन संगणकको यह काम करनेमें एकाध मिनट लगता है। जिसने यह प्रत्यक्ष करके न देखा हो उसे वह अनुमानही नही लगा सकता कि यह कितना सरल है और इससे क्या क्या संभावनाएँ बनती हैं। यही कारण है कि आज भी अधिकांश प्रशासकीय कार्यालयोंमें पुरानी, हाथसे लिखी जानेवाली सारणियाँ उसी ढाँचेमें वर्ड सॉफ्टवेअरमें लिखी जाती है-- एक रिपोर्ट दे दी जाती है कि हमने तो इस कामका संगणकीकरण कर लिया। लेकिन निष्कर्ष के लिये पहले की तरह अधिक समय भी लगता है और नया ढाँचा नही बननेसे नई जानकारीको सामने नही लाया जा सकता।
इस दृश्य को देखकर कई बार मुझे बचपनमें सुनी एक कहानी याद आती है। एक आश्रममें एक ऋषी तप करने बैठे। उनकी ख्याति थी कि वे सत्यवचनी हैं। एक हरिण दौडकर आया और एक दिशांमें जाकर ओझल हो गया -- पीछे पीछे एक शिकारी हरिणका पीछा करता हुआ वहाँ आया। उसने ऋषिको प्रणाम कर पूछा कि बताइये हरिण किस दिशामें भागा है, आप तो सच ही बताएंगे । ऋषि नही चाहते थे कि शिकारीको सच बतायें और हरिण मारा जाये। ऋषीने कहा --अरे, मेरी जिन दो आँखोंने हरिण देखा वे बोल नही सकती और मेरी जीभ जो बोल सकती है, उसने कुछ देखा ही नही -- इसीसे मैं तुम्हारे प्रश्नका उत्तर नही दे सकता-- अब जाओ।
संत तुलसीदासनेभी रामायणमें ऐसीही कल्पना की है -- मंदिरमें पूजाके लिये गई सीताको रामका दर्शन होता है। फिर सखियाँ छेडती हैं कि बता राम कैसा है -- सीता उत्तर देती है -- "गिरा अनयन, नयन बिनु वाणी" अर्थात मेरी जीभके पास नयन नही हैं और नयनोंको वाचा नही, फिर मैं क्या वर्णन बखानूँ?
लेकिन सरकारी कार्य़ालयोंमें यह प्रसंग अलग तरहसे घटता है। जो क्लार्क संगणकपर काम करते हैं उन्हें मालूम नही होता कि सारणी-लेखनके सॉफ्टवेअरमें सारणी बनानेसे संगणक गिनती और गणित कर सकता है। जो वरिष्ठ अधिकारी सारणी- सॉफ्टवेअरका उपयोग जानते हैं, और वैयक्तिक कामके लिये करते भी हैं, उन्हें यह नही मालूम कि क्लार्क-लोग सारणी बनानेके लिये एक्सेल या स्प्रेडशीटकी बजाय वर्ड या कोई गद्यलेखन सॉफ्टवेअरका ही प्रयोग कर रहे हैं और इस प्रकार संगणककी गणिती क्षमता का उपयोग न कर खुदका समय खर्च कर रहे हैं। खैर
जब हम हाथसे सारणी बनाते हैं तब स्लेटपर या कागजपर आडी और खडी लकीरें खींचकर पहले खाने आँक लेते हैं। सबसे पहली आडी पंक्तिमें शीर्षक लिखते हैं और सबसे पहले स्तंभमें प्रायः अनुक्रम जबकि दूसरे स्तंभमें वह सर्वप्रमुख मुद्दा जिसके बाबत कई तरह की जानकारी अगले स्तंभोंमें देनी है -- जैसे लोगोंके नाम। इसके बाद बाकी स्तंभोंमें वह जानकारी लिखते हैं जो स्तंभ-शीर्षकसे ध्वनित होती है।
अब चूँकि यह सारा काम हाथसे किया जा रहा है, तो सावधानीसे और अथक मेहनतसे यह पहली बार किसी तरहसे पूरा कर लेते हैं। अब हमें सारणीकी रचना बदलनेकी गुंजाइश नही बचती। अगली सारी गिनतियाँ भी खुदही करनी होती है -- औऱ वह जितनी कम करनी पडें उतना अच्छा -- इसी कारण पहले सरकारी कार्यालयोंकी सारणियाँ लम्बी-चौडी और कई खानोंवाली होती थीं। लेकिन यही काम यदि संगणकको करने दिया जाय तो क्या होगा ?
- परंपरागत पद्धतीसे काम करनेमें लगनेवाले समयकी काफी बचत होगी। साथही कई मु्द्दे कम समयमें जाँचे जा सकेंगे।
- एक कागजपर प्रिंट आऊट लेनेसे एक दृष्टीक्षेपमें ही कई मुद्दोंकी जानकारी मिलती है । किसी भी दूसरे मुद्देको प्रमुख या आधारभूत मानकर उसके अनुरूप बाकी स्तंभोंकी पुनर्रचना करने के लिये एकाध मिनिट पर्याप्त है।
- किसी खास रेंजकी बाबत जानकारी ले सकते हैं। जैसे -- जानना हो कि पिछले तीन वर्षोंमें कितने कर्मचारी पदोन्नत हुए, स्त्रियाँ और पुरुष कितने हैं, टाइपिंग जाननेवाले और न जाननेवाले, किस पे-ब्रॅकेटमें कितने ... इत्यादि। यह बडी उपयोगी जानकारी होती है।
- संगणकको सूचना दे सकते हैं कि अमुक जानकारीवाले खानोंको अमुक रंगमें दिखाओ।
- पहली बार सारणीके स्तंभ-शीर्षकोंका चुनाव विचारपूर्वक होना चाहिये ताकि निश्चित मालूम रहे कि उस स्तंभका उपयोग क्या करना है। उदाहरणके लिये ऊपरी सारणी में हम एक स्तंभ बढा सकते हैं -- लिंग -- यदि हम जानते हैं कि आगे चलकर हमें स्त्री-पुरुषोंकी संख्या या उनकी अलग-अलग जानकारी चाहिये होगी। सरकारी कार्यालय के लिये सारणी बनाते समय उसके कर्मचारियोंकी राय लेना और सारणी-रचनामें उन्हें शामिल करना इसलिये आवश्यक है कि वे ही अच्छी तरह जानते हैं कि उन्हें किस प्रकारके विवरणकी आवश्यकता होती है।
- टाईम कर्व्ह -- यदि सारणीमें संदर्भवर्ष का भी स्तंभ बनाया जाये तो संगणक किसीभी मुद्देके टाईम कर्व्ह - अर्थात समयके साथ हुए परिवर्तनका आलेख (ग्राफ) खींच सकता है। उदाहरण के लिये देशमें 1965 से 2005 के बीच कितना पेट्रोलियम-क्रूड आयात हुआ उसका आलेख (ग्राफ)
- दी गई जानकारी के आधारपर कोई गणित करके उसका उत्तर किसी स्तंभमें लिखना हो तो उस स्तंभके लिये नियत फॉर्म्युला संगणकको बता देते हैं ताकि संगणक स्वयं ही उत्तर खोजकर उस स्तंभ में लिख ले।
- बार चार्ट एकही मुद्दा अलग-अलग वर्षमें या स्थानोंपर कैसा होगा यह बार-चार्टसे जाना जाता है। उदा. विश्वमें कितनी जनसंख्या कौनसी भाषा बोलती है यह सारणी व उसके आधारपर संगणक द्वारा बनाया बार चार्ट
- इसी प्रकार संगणक पाय चार्ट भी बनाता है जिससे पता चले कि किसका हिस्सा कितना है। उदा. भाषा व जनसंख्याका पाय चार्ट यों दिखेगा।
- स्कॅटर ग्राफ -- जब दो अलग तरहकी बातोंको एक दूसरेकी तुवनामें जाँचकर उनका आपसी संबंध देखना हो ता संगणककी सारणीसे उनके बीच एक स्कॅटर ग्राफ खींचा जा सकता है। उदा. महिला-साक्षरता और बाल-कुपोषण का स्कॅटर ग्राफ। इस स्कॅटर ग्राफसे पता चला कि मोटामोटी जिन जिलोंमें महिला-साक्षरता कम है वहाँ बाल-कुपोषण का प्रमाण अधिक है। लेकिव कुछेक जिलोंमें महिला-साक्षरता अधिक होते हुए भी कुपोषण दिख रहा है, वहाँ कुपोषणके अन्य कारण हो सकते हैं जैसे दूषित पानी, कृमिका प्रादुर्भाव आदि। वहाँ ऐसे कारण ढूँढकर उनकी रोकथाम की जा सकती है।
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महाराष्ट्रके मंत्रालयमें कार्यासन 16-ब में हमने यह अभिनव प्रयोग किया था --
सामान्य प्रशासन विभागके कार्यासन 16-ब में आनेवाली डाकपर अधिक कुशलतासे कारवाई हो, पत्रोंको शीघ्रतासे निर्गत किया जा सके, उनका ट्रॅकिंग भी कर सकें, जिला-दर-जिला डाकको एक-एक सारणीमें रखकर फिर एकही पत्रसे जिलाधिकारीको सारे संदर्भोंकी बाबत पूछा जा सके, और एकही स्वरूपकी सभी धारिकाओंको एकही तरीका अपनाकर एक-गठ्ठा निर्गत किया जा सके ऐसे सारे उद्देश लेकर हमने आनेवाली डाकको लिखनेकी एक सारणी-आधारित अभिनव कार्यपध्दती अपनाई। उससे पहले सेटलमेंट कमिशनरके पदपर काम करते हुए उस ऑफिसके लिये भी डाकका रेकॉर्ड रखनेकी यही पद्धती मैंने लागू कराई थी।
इस पद्धतीमें हर डेस्क (कार्यासन) में आने वाली डाक को १७ स्तंभोंकी एक सारणी में अंकित करते हैं।
इस सारणीके स्तंभोंका उपयोग यों हैः--
- स्तंभ क्रमांक 1 -- कार्यासनमें आई हर डाकका आवक क्रमांक यहाँ मिलता है। डाक दर्ज करनेवाले क्लर्कके लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्योंकि किसीभी धारिकाकी ट्रॅकिंग वह इसी क्रमांकसे करते हैं।
- स्तंभ क्रमांक 2,3,4 -- कार्यासनमें प्राप्त हुई सारी डाक पहले उस विभागकी रजिस्ट्री, सचिव कार्यालय तथा उप सचिव कार्यालय में जाती है और तीनों कार्यालयोंमें भी वहाँके रजिस्टरोंमें इनका अपना क्रमांक भी दिया जाता है। वही अनुक्रमसे स्तंभ 2, 3, व 4 में दर्शाये जाते हैं। इससे जाना जा सकता है कि डाकको पहले ही सचिव व उप सचिव देख चुके हैं। साथ ही उनके कार्यालयमें भी संगणकपर हूबहू यही सारणी बनाई जाती है अतः यदि वहाँसे इन्ट्रानेट अथवा पेनड्राइव्हपर डाक-विवरण-पत्र प्राप्त किया जाय तो उसीको विवरणपत्र कार्यासन क्लर्क अपने संगणककी सारणीमें संबंधित स्तंभमें विनासायास Paste कर सकता है जिससे दुबारा उसी डाकको दर्ज करनेके समयकी बचत होती है। आरंभमें जरूर उन्हे सिखाना पडता है कि दुसरे संगणकसे उठाई सारणीसे अपने संगणकपर इकठ्ठा Paste command को कैसे कार्यान्वित करते हैं।
- स्तंभ क्रमांक 5,6,7 व 9, 10 में डाक लिपिकके परिचित विवरण हैं जिनका उपयोग वे अच्छी तरह जानते हैं।
- स्तंभ क्रमांक 8 - यहाँ जिलेका नाम खास तौरसे अलगसे लिखा जाता है ताकि डाकका वर्गीकरण (sorting) जिलेके हिसाबसे किया जा सके। इस विश्लेषणका महत्व वरिष्ठ अधिकारियोंके लिये अत्यधिक है क्योंकि हमारे प्रशासनमें जिलाही सबसे महत्वपूर्ण कडी है। एक जिलेसे प्राप्त डाकके संबंधमें जिलेके विभिन्न अधिकारियोंको एकत्रित तथा योग्य निर्देश दिये जा सकते हैं।
- स्तंभ क्रमांक 11 - प्राप्त डाकसे कुछपर खास ध्यान देना पडता है, इसी गरजसे महत्त्व नामक इस स्तंभको रखा गया है ताकि समयबद्ध मुद्दोंपर कायम निगाह रहे उदा. विधीमंडलका कामकाज, जाननेके अधिकार अथवा न्यायालय संबंधी, लोकप्रतिनिधी, अर्थसंकल्प, लोकआयुक्त, लोक-निवेदन, इत्यादी। लेकिन कई पत्र ऐसे होंगे जिनपर यह वर्गीकरण लागू नही होगा -- उनके लिये “इतर” शब्द लिखना उचित है।
- स्तंभ क्रमांक 12 - स्वरुप नामक यह स्तंभ सर्वाधिक महत्व रखता है। खासकर उप-सचिवके स्तर पर कार्यक्षमता बढानेमें यह अत्यंत उपयोगी है। प्रत्येक कार्यासनके पास आनेवाली डाकके विषयोंको समझकरही खास उसी कार्यासनके अनुकूल यह विवरण लिखना पडता है। हमारे कार्यासन 16-ब में आनेवाली डाकके विषय देखते हुए हमने स्वरुप स्तंभके लिये कुल 10 प्रकार सोचे थे और हरेक के लिये एक शब्द नियत किया गया - जैसे -- आरक्षण, जाति-प्रमाणपत्र इत्यादी, लेकिन यहाँ भी दसवाँ शब्द “इतर” ही था। यदि कोई कार्यासन आस्थापना-संबंधित काम देखता है तो उनकी डाकमें पेंडिंग-बिल, सेवानिवृत्ती, डिपार्टमेंटल एन्कायरी, तबादला जैसे विषय होंगे और वही विवरण स्वरूपमें लिखा जायगा। प्रत्येक कार्यासनके नियत कामके अनुरूपही स्वरुप नामक इस स्तंभके लिये उचित शब्दोंका चयन करना पडेगा और अच्छा होगा यदि संबंधित उपसचिव शुरूमें ही उस कार्यासनके लोगोंके साथ बैठकर यह नियत कर ले। हमारे कार्यासन 16 ब में सेवानिवृत्ती, मेडिकल बिल जैसे विषय नही थे परंतु आरक्षण संबंधी कई विषय थे। यही बात अलग अलग कार्यासनोंपर लागू होगी। अतः हरेक को इस स्तंभके लिये विषयोंका और उन्हें दर्शानेवाले शब्दोंका चयन खुद करना होगा।
- स्तंभ क्रमांक 13, 14, 15 बताते हैं कि डाकको अगली कारवाईके लिये किसके पास भेजा गया। कार्यासन पध्दतीमें लिपिक - सहायक - कक्ष अधिकारी - उपसचिव जैसी सीधी कमांड-चेन नही होती। कर्मचारी कम पड जाते हैं, तो एक ही लिपिक अधिक अधिकारियोंके साथ काम करता है। इसी वस्तुस्थिती का विचार कर ये स्तंभ दर्शाये गये हैं। इनके कारण पता चलता है कि कौनसी डाक किस सहायक, कक्ष अधिकारी, या उपसचिव के पास कारवाई के लिये भेजी गई। उससे डाक-लिपिकका काम सरल हो गया -- वह तत्काल खोज सकता है कि फाइल किसके पास गई। लेकिन सबसे वरिष्ठ अधिकारी के लिये एक लाभ और है -- वह तुरंत पता लगा सकता है कि किसके पास कितनी फाइले जा रही हैं --क्या किसी पर कामका अधिक बोझ पड रहा है -- कौनसा अधिकारी किस गतिसे फाइलोंका निबटारा कर रहा है -- आदि।
- स्तंभ क्रमांक 16 में डाककी बाबत की गई कारवाई चार वर्गोंमें निभक्त कर लिखते हैं -- नई फाइल (खोली गई), पुरानी फाइल (के साथ रखी गई), दूसरे विभाग (को भेजी गई) और छँटाई (कोई कारवाई नही) ।
- स्तंभ क्रमांक 17 में इसी कारवाई का छोटा विवरण जैसे फाइल नं या दूसरे विभागका नाम इत्यादि और दिनांक लिखा जाता है। इससे महीनेके अंत में हिसाब लिया जा सकता है कि कितनी फाइलोंपर कौनसी कारवाई हुई।
- स्वरूप और महत्व दोनों स्तंभोंपर बारबार सॉर्टींगकी आवश्यकता होती है। अतः उनमें एक या दो शब्दोंका ही प्रयोग करना चहिये। साथ ही यह समझना आवश्यक है कि ये शब्द विवरणके पर्याय नही हैं बल्कि उनके रूपदर्शक हैं। कुछ डाक निश्चित ही ऐसी होगी जिसके रूपके विषयमें डाक-लिपीक संभ्रमित है। वहाँ “इतर” शब्द लिखा जाना चाहिये। आरंभमें ऐसा भी होता है कि प्रायः हर डाकके स्वरूपमें “इतर” लिखा जाय। अतः पहले दो-तीन महिने उपसचिव को स्वत: डाक पढकर परीक्षा करनी होगी कि स्वरूप योग्य रीतिसे लिखा गया है। साथ ही यदि “इतर” संज्ञाका प्रयोग कुल डाकके पंद्रह प्रतिशतसे अधिक है तो वर्गीकरणको फिर एक बार जाँचना होगा। इन दोनों स्तंभोंके लिये कुल १५ से अधिक वर्गवारी नही होनी चाहिये अन्यथा इनकी उपयुक्तता कम हो जाती है। साथ ही “इतर” संज्ञा भी जरूरी है।
हमने पाया कि सामान्यतः दस दिनोंकी डाकको “स्वरूप ” स्तंभके अनुसार सॉर्ट करनेसे उपसचिव को स्तरपर कामोंकी प्राथमिकता तय करना सरल होता है जो कार्य़क्षमता बढाता है -- यही उद्देश है इस स्तंभका। इसी प्रकार महत्व के अनुसार सॉर्ट करनेसे कोई भी महत्वकी डाक आँखोंसे ओझल नही रह सकती।
इस सारणीका प्रिंट आउट लेनेके लिये स्तंभ क्र. १ से ९ तक एक ए४ कागज पर और फिर स्तंभ क्र. १,५,६, १० से १७ का प्रिंट आउट दूसरे कागज पर लेना चाहिये। इससे एकही दृष्टिक्षेपमें प्राप्त डाक और की गई कारवाईका विवरण उपलब्ध हो सकता है।
प्राप्त डाक पर विहित कालावधीमें कारवाई हुई है या नही यह जानने के लिये हमने हर दस दस दिनोंका सारांश उपसचिव और सचिव स्तर पर जाँचनेका नियम बनाया था। इस सारांश के लिये स्वरूप के साथ सॉर्टिंग किया गया। उससे समझमें आता है कि किस प्रकार की कितनी फाइलें पेंडिंग हैं।
इस नई सारणीके कारण और इसके प्रयोगकी विधि सबको समझाये जानेके कारण कई लाभ हुए। डाककी रजिस्टरमें दर्ज करनेके काममें करीब तीस प्रतिशत समय बचा। स्वरूप के कारण एक तरहकी फाइलोंको एक साथ देखना और एक ही तरहकी नीतिसे निबटारा करना संभव हुआ, उनका उचित नियोजनभी संभव हुआ। एक कार्यासनको न्यायालयमें चल रही सात-आठसौ केसेसके कारण बडी परेशानी थी -- उन्हें सारणी पद्धति से लिखवानेपर उनका भी नियोजन समयबद्ध तरीकेसे होने लगा।
सरकारी कामोंमें अब पुराने जमानेकी सारणियोंमें सुधार कर संगणककी क्षमताओंका लाभ उठाते हुए नई सारणियाँ बनाने के लिये विचारपूर्वक प्रयास होने चाहिये।
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