Wednesday, January 4, 2012

ch 5 संगणक है खेलका साथी

  भाग – 
संगणक है खेल का साथी

जिन्हें बडी इच्छा है कि संगणक सीखें लेकिन यह डर भी है कि पता नही  सीख सकेंगे या नहीउनके लिये आरंभ करनेका सबसे सरल तरीका है कि संगणकको खेलका साथी बनाओ और उसके साथ कुछ खेलो।
इसके लिये चार छोटी बातें सीखनी पडती हैं --
संगणक चालू करना
संगणक बंद करना
यह ढूँढना कि संगणकमें खेलसे संबंधित तंत्रप्रणाली कहाँ है और उसे कैसे खोलना
माउस को चलाना ताकि खेला जा सके। किसी किसी खेलमें माउससे अधिक गतिसे खेलनेके लिये जॉय-स्टिककी आवश्यकता होती हैजिसे ऊपर-नीचेदायें-बायें घुमाया जाता हैवह भी सीखना पडता है।
साथही खेलके नियम जानना भी जरूरी है और यदि जीतना है तो उस खेलमें सिद्धहस्त होना भी जरूरी है।
जिस खेलको हम बार बार खेलना चाहते हैंउसे बार बार ढूँढना ना पडेइसलिये उस खेल के प्रोग्राम की  चित्राकृति हम डेस्कटॉपपर रख सकते है ताकि जैसे ही संगणक खोलाऔर चित्राकृति को क्लिक किया कि संगणक भी खेलने के लिये तैयार!
अब उदाहरणके लिये शतरंज का खेल लेते हैं। इसे खेलने के लिये दो खिलाडी चाहिये तो हम संगणक से कह सकते हैं कि दूसरे खिलाडी के रूप में तुम खेलो  यदि हम नौसिखिये हैं तो संगणकसे कह सकते हैं कि तुम भी बिलकुल पहले स्तरका खेल खेलो  फिर जैसेजैसे हम सीखते जाऐंगेसंगणकको भी अगले मँजे हुए स्तरका खेल खेलने को कह सकते हैं।
संगणक पर कई तरह के खेल खेले जा सकते हैंताश के खेलकार रेसिंग लडाई या जासूसी के खेल भी  संगणक पर खेलनेवालोंके लिये नयेनये खेल बनाया भी विश्व के बडे उद्योगों में से एक हैऔर एक नया सिनेमा बनाने से भी अधिक मेहनत का काम है नया खेल बनाना।
आजकल संगणक पर एक लोकप्रिय खेल खेला जाता है स्टारक्राफ्ट जिसके पिछे लोग दीवाने हैं। यह घंटों चला सकता है लेकिन खिलाडी माहिर हों तो फटाफट भी समाप्त जो सकता है।
कोरिया में इसके बाकायदा इंटरनॅशनल टूर्नामेंट्स होते हैं और क्रिकेट ही की तरह इसका लाइव्ह प्रक्षेपण टीव्ही चॅनलों पर किया जाता है।
और तो औरअब तो हार्वर्ड युनिवर्सिटी में भी इसी संगणक-खेल पर आधारित कुछ होमवर्क की सीडी बनाई गई हैं जिनका उद्देश है विद्यार्थियोंको वॉर स्ट्रेटेजी नामक 
विषय पढाना 
तो यह है संगणक का खिलाडी रूप।
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भाग 5 संगणक है खेल का साथी

जिन्हें बडी इच्छा है कि संगणक सीखें पर यह डर भी है कि पता नही कैसे सीख सकेंगे, उनके लिये आरंभ करनेका सबसे सरल तरीका है कि संगणकको खेलका साथी बनाओ और उसके साथ कुछ खेलो।
इसके लिये चार छोटी बातें सीखनी पडती हैं --
संगणक चालू करना
संगणक बंद करना
यह ढूँढना कि संगणकमें खेलसे संबंधित तंत्रप्रणाली कहाँ है और उसे कैसे खोलना
माउस को चलाना ताकि खेला जा सके। किसी किसी खेलमें माउससे अधिक गतिसे खेलनेके लिये जॉय-स्टिककी आवश्यकता होती है, जिसे ऊपर-नीचे, दायें-बायें घुमाया जाता है, वह भी सीखना पडता है।
साथही खेलके नियम जानना भी जरूरी है और यदि जीतना है तो उस खेलमें सिद्धहस्त होना भी जरूरी है।
जिस खेलको हम बार बार खेलना चाहते हैं, उसे बार बार ढूँढना ना पडे, इसलिये उस खेल के प्रोग्राम का कृतिचित्र  हम डेस्कटॉपपर रख सकते है ताकि जैसे ही संगणक खोला, और कृतीचित्र को क्लिक किया कि संगणक  खेल को खेलने के लिये तैयार!
अब शतरंज खेलने के लिये दो खिलाडी चाहिये - तो हम संगणक से कह सकते हैं कि दूसरे खिलाडी के रूप में तुम खेलो । यदि हम  नौसिखिये हैं तो संगणकसे कह सकते हैं कि तुम भी बिलकुल पहले स्तरका खेल खेलो । फिर जैसे- जैसे हम सीखते जाऐंगे,  उसे भी अगले मँजे हुए स्तरका खेल खेलने को कह सकते हैं।
संगणक पर कई तरह के खेल खेले जा सकते हैं- ताश के खेल, कार रेसिंग , लडाई या जासूसी के खेल भी । संगणक पर खेलनेवालोंके लिये नये- नये खेल बनाया भी विश्व के बडे  उद्योगों में से एक है, और एक नया सिनेमा बनाने से भी अधिक मेहनत का काम है नया खेल बनाना।
आजकल संगणक पर एक लोकप्रिय खेल  खेला जाता है स्टारक्राफ्ट  जिसके पिछे लोग दीवाने हैं। यह घंटों चला सकता है लेकिन  खिलाडी माहिर हों तो फटाफट भी समाप्त जो सकता है।
कोरिया में इसके बाकायदा इंटरनॅशनल टूर्नामेंट्स होते हैं और क्रिकेट ही की तरह इसका लाइव्ह प्रक्षेपण टीव्ही चॅनलों पर किया जाता है।  
          और तो और, अब तो हार्वर्ड युनिवर्सिटी में भी इसी संगणक-खेल पर आधारित कुछ होमवर्क की सीडी बनाई  गई हैं - जिनका उद्देश है विद्यार्थियोंको वॉर स्ट्रेटेजी नामक विषय पढाना ।
तो यह है संगणक का खिलाडी रूप।
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सॉफ्टवेअर या फाइलें हम डेस्कटॉपपर नही रखते । केवल उन्हींको रखते हैं जिनका काम हमें बार बार करना होता है।
तो पहले जानते हैं संगणकका कार्यकारी बक्सा, पडदा (मॉनिटर), कुञ्जीपाटी और माउसके विषयमें।
















ch 4 संगणक है स्लेट पेन्सिल 1-4

(राजकमल)
भाग -
संगणक है स्लेट पेन्सिल

स्लेट पेन्सिल को कौन नही जानता?
इसका सबसे अच्छा गुण यह है कि स्लेट पर पेन्सिल से कुछ भी लिखे - पर जैसेही उसे मिटा डाला, स्लेट फिर कोरी हो जाती है - नई लिखाई के लिये तैयार। फिर इस पर नया गणित करो या नया चित्र बनाओ।

संगणक भी कोरी स्लेटकी तरह होता है। और मजा ये कि इस स्लेटकी लंबाई और चौडाई खींचकर बढाईघटाई जा सकती है। इसी लिये इस पर बडेबडे लेख, बडे चित्र या बडी सारणियाँ भी बनाई जा सकती हैं। जो भी लिखा हैं उसके बीच में कहीं गलती दिखे तो उतनी छोटीसी गलतीको मिटाकर वहाँ सही लिख दो।
और यदि सारा ही गलत लिखा गया हो तो भी कोई बात नही, सारा पोंछ कर दुबारा लिखा जा सकता है।

स्लेट पेन्सिल पर लिखने के लिये तीन चीजें चाहिये - एक स्लेट, दूसरी पेन्सिल, और तीसरा हमारा दिमाग - जो बतायेगा कि क्या लिखना है। संगणक की स्लेट पर लिखने के लिये इन तीन के साथ साथ संगणक का मस्तिष्क भी उपयोग में लाना पडता है।

संगणक का मस्तिष्क है उसकी प्रोसेसर चिप। इसे अन्य कई उपकरणोंको एक बडे मदर- बोर्ड पर जोडकर उसे एक डिब्बे के अंदर बंद कर देते हैं (धूल धक्कड से बचने के लिये) इसे सीपीयू या सेंट्रल प्रोसेसिंग युनिट कहते हैं। हम इसे कार्यकरी बक्सा कह सकते हैं। संगणकसे संबंधित नब्बे प्रतिशत काम इसी कार्यकारी बक्सेमें लगी प्रोसेसर चिप अन्य उपकरणोंकी सहायता से होते हैं। इन सभी उपकरणोंको एकत्रित रूपमें हम जड-वस्तू-प्रणाली कह सकते हैं या यंत्र- प्रणाली क्योंकि इससे बोध होता है कि संगणक में मंत्र और तंत्र की भी प्रणालियाँ होती होंगी, जो कि वस्तुतः हैं।

संगणक के सभी सॉफ्टवेअरोंको हम तंत्र-प्रणाली कह सकते है और उसके आधार पर काम करने की पध्दती को मंत्र- प्रणाली। इस प्रकार संगणक में यंत्र-तंत्र-मंत्र तीनों हैं, जबकि बाकी यंत्रोमें केवल यंत्र होता है।

लेकिन अभी मंत्र तंत्रकी बात छोडकर केवल यंत्रकी बात करते हैं। ताकि स्लेट पेन्सिल की बात समझमें आये।जब हम हम नया संगणक लाते हैं तो हमारे सामने चार बातें होती हैं-- कार्यकारी बक्सा, मॉनीटर या स्क्रीन, की-बोर्ड और माऊस।

संगणक की प्रोसेसर चिप उसका मस्तिष्क है , संगणक का मॉनीटर या स्क्रीन हमारी स्लेट है , और की-बोर्ड या माऊस दोनों ही बनती हैं पेन्सिल। अब जब भी संगणक पर काम करना हो तो याद रखना कि यह तो केवल एक स्लेट है जिसपर कुछ भी लिख सकते हैं- यदि लगे कि गलत लिखा तो उसे तो उसे मिटा दो , और यदि लगे सही लिखा है तो बचा कर रख लो।

तो आओ, सबसे पहले संगणकका कार्यकारी बक्सा, पडदा (स्क्रीन या मॉनिटर), कुञ्जीपाटी (की बोर्ड) और माउसके कामको समझते हैं

कार्यकारी बक्सा और पडदा (स्क्रीन ) दोनों ही बिजलीसे चलते हैं, सो पहले दोनोंके लिये बिजलीका बटन दबाओ। ये दोनों आपसमें भी तारसे जोडने पडते हैं। अब संगणकके मस्तिष्क अर्थात् प्रोसेसर चिप अन्य अंदरूनी भागोंको आरंभ करनेके लिये एक ओर बटन लगा होता है, उसे भी चालू करो। अब करीब एक मिनटमें संगणक अपनी अंदरूनी चिपोंको तैयार कर तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा करने लगता है। उतना समय उसे देना पडता है।

यदि तुम्हारे पास लॅपटॉप है तो उसमें कार्यकारी बक्सा, पडदा कुञ्जीपटल सब अन्दरसे आपसमें जुडे रहते हैं, तो एक ही बटनसे सारे चालू हो जाते हैं।

कार्यकारी बक्सेमे ही तारसे कुञ्जीपाटी और माउस (हमारे घरमें प्यारसे उसे मूषक ही कहते हैं) जुडे होते हैं। हम जो भी सूचना संगणकको देना चाहते हैं, वह इन्हीं के माध्यमसे देते हैं। जब हम टेबुलपर मूषक को दायें-बायें सरकाते हैं तो पडदेपर भी एक बाण या कर्सर (सूचक) उसी प्रकारसे सरकता है। जो काम करना है, जहाँसे करना है, वहाँ बाणको ले आओ और संगणकको सूचना देनेमें लग जाओ।

तुमने क्या सूचना दी और संगणकने क्या समझा यह हम पडदेपर देख सकते हैं। इसीसे मैं इसे स्लेट कहती हूँ क्योंकि पडद्पर दिखा कि गलत लिखा गया है तो उसे मिटाकर दुबारा लिख सकते हैं।

लेकिन याद रहे कि संगणकको आरंभ करनेपर हमें यह पडदा कोरा नही दिखता बल्कि उसपर कई चित्राकृतियाँ बनीं होती हैं। क्योंकि संगणक केवल स्लेट नही, और भी बहुत कुछ है, तो उसके कुछ कामोंकी सूची भी पडदेपर लिखी होती है। इन चित्राकृतियोंको संगणककी भाषामें आयकॉन कहते हैं। तुम्हे जो काम करना हो उसकी चित्राकृति पर मूषक के सहारे बाणको ले आओ औऱ वह काम शुरू करो

एक बात और। बिलकुल पहले दिन मूषक को चलाना सीखना पडता है। टेबुलपर उसकी छोटीसी हरकतसे भी बाण कहींसे कहीं भागता है, कभी तो पडदेसे बाहर भी हो जाता है। पर धैर्यसे सीखो कि कैसे बाणको ऊपर-नीचे, दायें-बायें सरकाते हैं। अब तुम्हें मजा आने लगेगी।

अब देखते हैं कि मूषककी रचना कैसी है। इसकी निचली सतहके हिलनेसे बाण हिलता है। इसके अलावा मूषक की पीठपर एक चक्री होती है जो तर्जनी उँगलीसे ऊपर नीचे घुमाई जा सकती है। उसके दोनों ओर दो बडे बटन होते हैं। बाँया बटन टिकटिकाने या क्लिक करनेसे कोई काम आरंभ होता है, परन्तु दाँया बटन क्लिक करनेसे उस कामसे संबंधित अन्य काम किये जा सकते हैं। यथा उसकी प्रतियाँ बनाना, उसका नाम बदलना, किसीको भेजना इत्यादि। किसी कामका पन्ना खुला हो तो चक्री घुमाकर उसे तेजीसे ऊपर-नीचे सरकाया जा सकता है।

पडदेको डेस्कटॉप भी कहते हैं कहाँसे आया यह शब्द ? अपने कामका डेस्क याद करो। उसपर काम करनेकी कई फाइलें रखी होती लेकिन हैं। किसी फाइलपर काम आरंभ करनेसे पहले हम कामसे संबंधित कुछ बातें जुटाकर रख लेते हैं -- जैसे पेन, पेन्सिल, रबर, शब्दकोष, कंपास, पानीका गिलास (जिसकी जैसी जरूरत हो) इसी प्रकार संगणकके डेस्कटॉपपर भी बार बार किये जानेवाले कामोंकी चित्राकृतियाँ खी जाती हैं, जिनपर टिकटिकानेसे उस कामके लिये एक पन्ना खुलता है और हम काम आरंभ कर सकते हैं।

संगणकके सभी सॉफ्टवेअर, प्रोग्राम या फाइलें हम डेस्कटॉपपर नही रखते केवल उन्हींको रखते हैं जिनका काम हमें बार बार करना होता है। फाइलोंको बीचबीचमें डेस्कटॉपसे हटाकर संगणकमें ही दूसरी योग्य जगहपर रखते रहना एक अच्छी आदत है



संगणकहै स्लेट पेन्सिल - Ch. 4

स्लेट पेन्सिल को कौन नही जानता?
इसका सबसे अच्छा गुण यह है कि स्लेट पर पेन्सिल से कुछ भी लिखे - पर जैसेही उसे मिटा डाला, स्लेट फिर कोरी हो जाती है - नई लिखाई के लिये तैयार। फिर इस पर नया गणित करो या नया चित्र बनाओ।

     संगणक भी कोरी स्लेटकी तरह   होता है। उसका फायदा यह है कि इस  स्लेटकी लंबाई और चौडाई खींचकर बढाई – घटाई जा सकती है। इसी लिये इस पर बडेबडे लेख, बडे चित्र या बडी सारणियाँ भी बनाई जा सकती हैं। जो भी लिखा हैं, तो उसके बीच में कहीं गलती दिखे तो उतनी छोटीसी गलतीको मिटाकर वहाँ सही लिख दो।
और यदि सारा ही गलत लिखा गया  हो तो भी कोई  बात नही, सारा पोंछ कर दुबारा लिखा जा सकता है।

   स्लेट पेन्सिल पर लिखने के लिये तीन चीजें चाहिये - एक स्लेट, दूसरी पेन्सिल, और तीसरा हमारा दिमाग- जो बतायेगा कि क्या लिखना है। संगणक की स्लेट पर लिखने के लिये इन तीन के साथ साथ संगणक का मस्तिष्क भी उपयोग में लाना पडता है।

    संगणक का मस्तिष्क है उसकी प्रोसेसर चिप। इसे व अन्य कई उपकरणोंको एक बडे मदर- बोर्ड पर जोडकर उसे एक डिब्बे के अंदर बंद कर देते हैं (धूल धक्कड से बचने के लिये)। इसे सीपीयू या  सेंट्रल  प्रोसेसिंग युनिट कहते हैं। हम इसे कार्यकरी बक्सा कह सकते हैं। संगणकसे संबंधित नब्बे प्रतिशत काम इसी कार्यकारी बक्सेमें लगी चिप व अन्य उपकरणोंकी सहायता से होते हैं। इन सभी उपकरणोंको  एकत्रित रूपमें हम जड-वस्तू-प्रणाली कह सकते हैं । लेकिन मैं इसे यंत्र- प्रणाली कहना पसंत करती हूँ  क्योंकि इससे बोध होता है कि संगणक में मंत्र और तंत्र की भी प्रणालियाँ  होती होंगी, जो कि वस्तुतः हैं।

संगणक के सभी सॉफ्टवेअरोंको हम मंत्र-प्रणाली कह सकते है और उसके आधार पर काम  करने की पध्दती को तंत्र- प्रणाली। इस प्रकार संगणक में यंत्र-तंत्र-मंत्र तीनों  हैं, जबकि बाकी यंत्रोमें केवल यंत्र और कभी कभी तंत्र होता है।

लेकिन अभी मंत्र व तंत्रकी बात छोडकर केवल यंत्रकी बात करते हैं। ताकि स्लेट पेन्सिल की बात समझमें आये। हम नया संगणक लाते हैं तो सामने चार बातें ही होती हैं-- कार्यकारी बक्सा,  मॉनीटर या स्क्रीन,  की-बोर्ड और माऊस।

संगणक का कार्यकारी बक्सा और खास कर प्रोसेसर चिप उसका मास्तिष्क है , संगणक का मॉनीटर या स्क्रीन हमारी स्लेट है , और की-बोर्ड या माऊस  दोनों ही बनती हैं पेन्सिल। अब जब भी संगणक पर काम करना हो तो याद रखना कि यह तो केवल एक स्लेट है जिसपर कुछ भी लिख सकते हैं- यदि लगे कि गलत लिखा तो उसे तो उसे मिटा दो , और यदि लगे सही लिखा है तो बचा कर रख लो।

तो आओ, पहले जानते हैं संगणकका कार्यकारी बक्सा, पडदा (स्क्रीन या मॉनिटर), कुञ्जीपाटी (की बोर्ड) और माउसके विषयमें। इनका काम पहले समझते हैं--

कार्यकारी बक्सा और पडदा (स्क्रीन ) दोनों ही बिजलीसे चलते हैं, सो पहले दोनोंके लिये बिजलीका बटन दबाओ। ये दोनों आपसमें भी तारसे जोडने पडते हैं। अब संगणकका मस्तिष्क अर्थात् प्रोसेसर चिप व अन्य अंदरूनी भागोंको आरंभ करनेके लिये एक ओर बटन लगा होता है, उसे भी चालू करो। अब करीब एक मिनटमें संगणक अपनी अंदरूनी चिपोंको तैयार  कर तुम्हारे आदेश की प्रतीक्षा करने लगता है। उतना समय उसे देना पडता है।

कार्यकारी बक्सेमे ही तारसे कुञ्जीपाटी  और माउस(हमारे घरमें प्यारसे उसे मूषक ही कहते हैं) जुडे होते हैं। हम जो भी सूचना संगणकको देना चाहते हैं, वह इन्हीं के माध्यमसे देते हैं। जब हम टेबुलपर मूषक को दायें-बायें सरकाते हैं तो पडदेपर भी एक बाण या कर्सर (सूचक) उसी प्रकारसे सरकता है। जो काम करना है, जहाँसे करना है, वहाँ तीरको ले आओ और संगणकको सूचना देनेमें लग जाओ।

तुमने क्या सूचना दी और संगणकने क्या समझा यह हम पडदेपर देख सकते हैं। इसीसे मैं इसे स्लेट कहती हूँ क्योंकि इसपर जो भी लिखा गया वह गलत हो तो मिटाकर दुबारा लिख सकते हैं।

लेकिन याद रहे कि संगणकको आरंभ करनेपर हमें यह पडदा कोरा नही दिखता बल्कि उसपर कई चित्राकृतियाँ बनीं होती हैं। क्योंकि संगणक केवल स्लेट नही, और भी बहुत कुछ है, तो उसके कुछ कामोंकी सूची भी पडदेपर लिखी होती है। इन चित्राकृतियोंको संगणककी भाषामें आयकॉन कहते हैं। तुम्हे जो काम करना हो उसकी चित्राकृति पर मूषक के सहारे बाणको ले आओ औऱ काम शुरू।

एक बात और। बिलकुल पहले दिन मूषक को चलाना सीखना पडता है। टेबुलपर उसकी छोटीसी हरकतसे भी बाण कहींसे कहीं भागता है, कभी तो पडदेसे बाहर भी हो जाता है। पर धैर्यसे सीखो कि कैसे बाणको ऊपर-नीचे, व दायें-बायें सरकाते हैं। अब तुम्हें मजा आने लगेगी। अब देखो कि  मूषककी रचना कैसी है।

मूषककी नीचली सतहके हिलनेसे बाण हिलता है। इसके अलावा मूषक की पीठपर एक चक्री  होती है जो ऊपर नीचे की जा सकती है। उसके दोनों ओर दो बडे बटन होते हैं। बाँया बटन टिकटिकाने या क्लिक करनेसे कोई काम आरंभ होता है, परन्तु दाँया बटन क्लिक करनेसे उस कामसे संबंधित अन्य काम किये जा सकते हैं। यथा उसकी प्रती बनाना, उसका नाम बदलना, किसीको भेजना इत्यादि। किसी कामका पन्ना खुला हो तो चक्री घुमाकर उसे तेजीसे ऊपर-नीचे सरकाया जा सकता है।

पडदा (स्क्रीन ) डेस्कटॉप भी कहलाता है। कहाँसे आया यह शब्द ? अपने कामका डेस्क याद करो। किसी फाइलपर काम आरंभ करनेसे पहले हम कामसे संबंधित कुछ बातें जुटाकर रख लेते हैं -- जैसे पेन, पेन्सिल, रबर, शब्दकोष, कंपास, पानीका गिलास (जिसकी जैसी जरूरत हो)। इसी प्रकार संगणकके डेस्कटॉपपर भी बार बार किये जानेवाले कामोंके कृतिचित्र रखे जाते हैं, जिनपर टिकटिकानेसे उस कामके लिये एक पन्ना खुलता है और हम काम आरंभ कर सकते हैं।

संगणकके सभी सॉफ्टवेअर, प्रोग्राम या फाइलें हम डेस्कटॉपपर नही रखते । केवल उन्हींको रखते हैं जिनका काम हमें बार बार करना होता है। फाइलोंको बीचबीचमें डेस्कटॉपसे उठाकर योग्य जगहपर रखते रहना एक अच्छी आदत है।
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