Sunday, January 1, 2012

ch 6 संगणक है पोस्टमन DTP done


     संगणक है पोस्टमन (राजकमल)

संगणक केवल पोस्टमन ही नही बल्कि डाक- विभाग ही है, क्यों कि डाक विभाग की ही तरह अनेक सारे काम कर सकता है। यही हमारे घर का पोस्ट बॉक्स है, यही पोस्टमास्तर है, पत्रोंको ले जानेवाला हवाई जहाज या कूरियर भी यही है और घर में डाक लानेवाला डाकिया भी यही है।

यह सारे काम संगणक करता है टेलीफोन विभाग की मदद से। जैसे हम टेलीफोन विभाग में पैसे भरकर एक टेलीफोन घर पर ले आते हैं, वैसे ही थोडे और पैसे भरकर एक राऊटर (या उसका छोटा भाई मोडेम) भी ले आते हैं।

राऊटर या मोडेम यंत्रकी एक तार टेलीफोन के सॉकेटमें और दूसरी तार संगणक के कार्यकारी बक्से में मोडेम के लिये बने प्लग में जोडते हैं। फिर अपना संदेश संगणक से राऊटर में, उसके मार्फत टेलीफोन एक्सचेंजमें, वहाँ से टेलीफोन की तारोंकी मार्फत दूरदराज के गाँव के टेलीफोन एक्सचेंज में, वहाँ से हमारे मित्रके राऊटर में और फिर मित्रके संगणक में पहुँचता है। अर्थात् यदि अपने संगणक को पोस्टमन बनाकर उसके मार्फत दुनियाँ भर में संदेश भेजने हों, तो पहले अपने संगणक में एक राऊटर लगाना पडेगा। लेकिन केवल इतना काफी नही है, कुछ और इन्तजाम भी करने पडेंगे। सबसे पहले संगणक में लिखा गया संदेश राऊटर की भाषा में बदलनेके लिये या ये कहें कि राऊटर तक पहुँचाने के लिये एक सॉफ्टवेअरकी आवश्यकता होगी। ऐसे सर्वाधिक प्रचालित सॉफ्टवेअर जैसे, फायरफॉक्स, गूगलक्रोम और इंटरनेट एक्सपलोअरर प्रायः संगणक की ऑपरेटिंग सिस्टम में ही लगे होते हैं। तो ये हुआ हमारे संदेशको डाकघरतक पहुँचानेका काम।

लेकिन किसीको डाक - व्यवस्थापन भी करना पडेगा । तो यह करनेवाली कंपनियाँ अलग होती है। आजकलकी प्रचलित कंपनीयाँ हैं गूगल, याहू, हॉटमेल, रेडिफ मेल इत्यादि।

तो तुमने देखा कि यह काम तीन जगहों पर बँटा हैं। एक तो टेलीफोनी क्षेत्रमें काम करनेवाली वे कंपनियाँ जिनके बिछाये तार, यंत्र, इत्यादि उपकरण हमारे संदेशको इलेक्ट्रानिकीके माध्यम से लाते- ले जाते हैं। दूसरा हमारे या मित्र के संगणक में लगा सॉफ्टवेअर और तीसरी संदेशोंका व्यवस्थापन करनेवाली कंपनियाँ। इसे हम यों समझ सकते हैं कि मुंबई से दिल्ली जानेवाले खत तो हवाई जहाज से चले जायेंगे। लेकिन किस व्यक्ति के पतेपर पहुँचाना है, उस पतेपर पहुँचनेका रास्ता डाकिये को मालूम है या नही, पत्र पर डाक- टिकट लगा है या नही, पता न मिलने पर डाक को लौटाना, इत्यादी सारे कामोंका व्यवस्थापन पोस्ट विभाग के कर्मचारी करते हैं - इसके लिये एक व्यवस्था बनाते हैं। उसी तरह गूगल इत्यादि कंपनियाँ हमारे संदेशोंका व्यवस्थापन करती हैं।

अपने घर के संगणकमें राऊटर जोडकर जब हम गूगल क्रोम या फायरफॉक्स खोलते हैं, तो अपने आप ही व्यवस्थापन कंपनी में से किसी का पता उस पर लिखकर आ जाता है। यदि नही आये तो हम स्वयं लिख सकते हैं। साधारणतया इसका स्वरूप http://www.gmail.com के प्रकारका होता है। इसे उस कंपनीका संकेतस्थल कहते हैं। बस समझ लो कि यही उस कंपनीका हेड ऑफिस है।
अब यदि हमें यह स्वीकार है कि हमारे संदेशोंका व्यवस्थापन यह कंपनी करेगी तो सबसे पहले उन्हें अपनी इच्छा बतानी पडेगी और अपने आप को उनकी सूच में रजिस्टर करना पडेगा। उन्हें अपनी कोई पहचान भी बतानी पडेगी।
इसका तरीका यों है कि किसी कंपनी का संकेत स्थल खोलो। तुरंत उस कंपनीका संक्षिप्त परिचय देनेवाला एक पन्ना खुलेगा जिसमें हमें रजिस्ट्रेशन के लिये निमंत्रण भी होगा । जहाँ कहीं लिखा हो साइन-अप, वहीं हमे टिकटिकाना है। फिर एक नया पन्ना खुलेगा जो वास्तव में रजिस्ट्रेशन का फॉर्म है। इसमें आपकी कुछ प्राथमिक जानकारी पूछी जायगी और आपका संकेतनाम और गुप्त चिह्न भी पूछा जायेगा। जरूरी नहीं है कि संकेतनामके लिये हम अपना असली नाम लिखें। जैसे मैंने गूगल कंपनीके साथ अपना संकेतनाम दिया है avahan जबकि मेरा नाम है leena mehendale । अब मुझे अपना गुप्तशब्द भी चुनकर उन्हें बताना है। तो मान लो कि मैंने गुप्तशब्द चुना jayhind . इस प्रकार मेरा ईमेल का पता हुआ avahan@gmail.com और इसके लिये मेरा गुप्तशब्द हुआ jayhind । फॉर्म भर लेनेपर उसी पन्ने के नीचे लिखा Submit बटन भी टिकटिकाना है। इस प्रकार गूगलपर मेरा रजिस्ट्रेशन हो गया। यह काम आरंभ में एक बार ही करना पडता है, बार-बार नही। हाँ, अपना गुप्तशब्द हम कभी भी बदल सकते हैं - बशर्ते उन्हें बताकर बदलें ।
इस प्रकार गूगलपर मेरा खाता खुल गया और रजिस्टर हो गया। अब कभी भी मैं गूगलका संकेतस्थल खोलूं तो Sign up के बजाय Sign in को टिकटिकाउंगी। इससे एक नई खिडकी खुलेगी जिसमें दो खाली जगहें होंगी।
पहलेमें मुझे लिखना है अपना संकेतनाम avahan और दूसरी में jayhind। ये दोनों अंग्रेजीमें लिखने पडेंगे। जब हम गुप्तशब्द लिखते हैं तो संगणकपर केवल ***** अर्थात् बिन्दू बिन्दू ही दिखेंगे--- हमारा गुप्तशब्द नही दिखेगा। इसलिये अगल बगल में कई लोग हों भी तो वे संगणक पर हमारा गुप्तशब्द नही पढ पायेंगे। हमें अपना ईमेल पता तो सबको बताना चाहिये ताकि लोग संदेश भेज सकें लेकिन गुप्तशब्द कभी नही बताना चाहिये।
हम एक ही कंपनी के साथ कई संकेतनामोंसे रजिस्टर हो सकते हैं- और कई कंपनियों के साथ भी। जिस प्रकार हमारा डाकपता कई दूसरे कामों के लिये उपयोगी होता है इसी प्रकार ईमेल पता भी कई कामोंके लिये उपयोगी होता है।

इस उदाहरणमें मेरा ईमेल पता हुआ avahan@gmail.com और गुप्तशब्द हुआ jayhind । यहाँ @ को at the rate of पढा जाता है और यह अक्षर इतना कारगर हो गया है कि सभी की-बोर्डों पर इसकी कुञ्जी होती ही है।

अब मैं किसी भी संगणक पर गूगल के संकेतस्थल पर जाकर sign in की पंक्तियों पर अपना संकेतनाम और गुप्तशब्द लिखूँ तो मेरी व्यक्तिगत डाकपेटी (इनबॉक्स) का पन्ना खूलेगा। उसमें “Compose mail” बटन को टिकटिकाने पर एक नया पन्ना खूलेगा जिसमें पत्र की ही तरह बाकायदा पता लिखने की जगह और संदेश लिखने के लिये अलग जगह होगी। इसमें संदेश लिखकर यदि मैंने पते की पंक्ति में लिखा avahan@gmail.com तो वह पत्र मुझे ही भेजा जायगा। अब यदि मैं उसी पन्ने पर बाँई ओर लिखे inbox के बटन को टिकटिकाउँ तो मैं अपना पत्र पढ सकती हूँ। अपने मित्र को पत्र भेजना हो तो उसका ईमेल पता लिखना पडेगा।
मेरे ईमेल पते पर मुझे कोई भी पत्र भेज सकता है। लेकिन मेरी डाकपेटी खोलने के लिये मेरा गुप्तशब्द चाहिये जो केवल मुझे ज्ञात है।
इस प्रकार ईमेल का काम सीखने में अधिक समय नही लगता। यहाँ लिखा विवरण पढने में जितनी देर लगी उससे कम समय में यह सब कुछ सीखा जा सकता है।
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 Chp. 6
       संगणक है पोस्टमन

संगणक केवल पोस्टमन ही नही बल्कि डाक- विभाग ही है, क्यों कि डाक विभाग की ही तरह अनेक सारे काम कर सकता है। यही हमारे घर का पोस्ट बॉक्स है, यही पोस्टमास्तर है, पत्रोंको ले जानेवाला हवाई जहाज  या कूरियर भी यही है और घर में डाक लानेवाला डाकिया भी यही है।
यह सारे काम संगणक करता है टेलीफोन विभाग की मदद से।  जैसे हम टेलीफोन विभाग में पैसे भरकर एक टेलीफोन घर पर ले आते हैं, वैसे ही थोडे और पैसे भरकर एक मोडेम(या उसका बडा भाई राऊटर) भी ले आते हैं।

मोडेम यंत्रकी एक तार टेलीफोन के सॉकेटमें और दूसरी तार संगणक के कार्यकारी बक्से में मोडेम के लिये बने प्लग में जोडते हैं। फिर अपना संदेश संगणक के कार्यकारी बक्सेसे मोडेम में, उसके मार्फत टेलीफोन एक्सचेंजमें वहाँ से टेलीफोन की तारोंकी मार्फत दूरदराज के गाँव के टेलीफोन एक्सचेंज में, वहाँ से हमारे मित्रके मोडेम में और फिर मित्रके संगणक में पहुँचता है।    अर्थात् यदि अपने संगणक को पोस्टमन बनाकर उसके मार्फत दुनियाँ भर में संदेश भेजने हों, तो पहले अपने संगणक में एक मोडेम लगाना पडेगा। लेकिन केवल इतना काफी नही है, कुछ और इन्तजाम भी करने पडेंगे। सबसे पहले संगणक में लिखा गया संदेश मोडेमकी भाषा में बदलनेके लिये या ये कहें कि मोडेम तक पहुँचाने के लिये एक सॉफ्टवेअरकी आवश्यकता होगी।  ऐसे सर्वाधिक प्रचालित सॉफ्टवेअर इंटरनेट एक्सपलोअरर, फायरफॉक्स और गूगलक्रोम  प्रायः संगणक की ऑपरेटिंग सिस्टम में ही लगे होते हैं। लेकिन


जिसे डाक -  व्यवस्थापन कहा जा सकता है, उसे करनेवाली कंपनियाँ अलग होती है। इनमेंसे लोकप्रिय कंपनीयाँ हैं  गूगल, याहू, हॉटमेल रेडिफ मेल इत्यादि ।
इस प्रकार यह काम तीन जगहों पर बँटा हैं।  एक तो टेलीफोनी क्षेत्रमें काम करनेवाली वे  कंपनियाँ जिनके बिछाये तार, यंत्र, इत्यादि उपकरण हमारे संदेशको इलेक्ट्रानिकीके माध्यम से लाते- ले जाते हैं। दूसरा हमारे या मित्र के संगणक में लगा सॉफ्टवेअर और तीसरा काम करती हैं वो कंपनियाँ  जो संदेशोंका व्यवस्थापन करती हैं। इसे हम यों समझ सकते हैं कि मुंबई से दिल्ली जानेवाले खत चले तो जायेंगे हवाई जहाज से। लेकिन किस व्यक्ति के पतेपर पहुँचाना है, उस पतेपर पहुँचनेका रास्ता डाकिये को मालूम है या नही, पत्र पर डाक- टिकट लगा है या नही , पता न मिलने पर डाक को  लौटाना, इत्यादी सारे कामोंका व्यवस्थापन पोस्ट विभाग के आदमी करते हैं  - इसके लिये एक व्यवस्था बनाते हैं। वैसे ही गूगल इत्यादि कंपनियाँ हमारे संदेशोंका व्यवस्थापन करती हैं।

अपने घर के संगणकमें मोडेम जोडकर जब हम  गूगल क्रोम या फायरफॉक्स  खोलते हैं, तो अपने आप ही व्यवस्थापन कंपनी में से किसी का पता उस पर लिखकर आ जाता है। यदि नही आये तो हम स्वयं लिख सकते हैं। साधारणतया इसका स्वरूप http://www.yahoo.com के प्रकारका होता है। इसे उस कंपनीका संकेतस्थल कहते हैं। बस समझ लो कि यही उस कंपनीका  हेड ऑफिस है।
अब यदि हमें यह स्वीकार है कि हमारे संदेशोंका व्यवस्थापन यह कंपनी करेगी तो सबसे पहले, उन्हें बताना पडेगा और अपने आप को उनके रजिस्टर में रजिस्टर करना पडेगा। उन्हें अपनी कोई पहचान भी बतानी पडेगी।
    इसका तरीका यों है कि किसी कंपनी का संकेत स्थल खोलो। तुरंत उस कंपनीका संक्षिप्त परिचय देनेवाला एक पन्ना खुलेगा जिसमें  हमें रजिस्ट्रेशन के लिये निमंत्रण भी होगा । जहाँ लिखा हो साइन-अप , वहीं हमे टिकटिकाना है। फिर एक  नया पन्ना खुलेगा जो वास्तव में रजिस्ट्रेशन का फॉर्म है। इसमें आपकी कुछ प्राथमिक  जानकारी पूछी  जायगी और आपका संकेतनाम और गुप्त चिह्न भी पूछा जायेगा। जरूरी नहीं है कि  संकेतनामके लिये हम अपना असली नाम लिखें। जैसे मैंने याहू कंपनीके साथ अपना संकेतनाम दिया है leenameh  जबकि मेरा नाम है leenemehendale अब मुझे अपना गुप्तशब्द भी चुनकर उन्हें बताना है। तो मान लो कि मैंने गुप्तशब्द चुना jayhind . इस प्रकार मेरा ईमेल का पता हुआ leenameh@yahoo.com और इसके लिये मेरा गुप्तशब्द हुआ jayhind । फॉर्म भर लेनेपर उसी पन्ने के नीचे लिखा Submit बटन भी टिकटिकाना है। इस प्रकार याहू पर मेरा रजिस्ट्रेशन हो गया। यह काम आरंभ में एक बार ही करना पडता है, बार-बार नही। लेकिन कभी भी हम अपना गुप्तशब्द बदल सकते हैं - बशर्ते उन्हें बताकर बदलें ।  
इस प्रकार याहूपर मेरा खाता खुल गया और रजिस्टर हो गया। अब कभी भी मैं याहू का संकेतस्थल खोलूं तो Sign up   के बजाय Sign in को टिकटिकाउंगी। इससे एक नई खिडकी  खुलेगी जिसमें दो खाली जगहें होंगी।
पहलेमें मुझे लिखना है अपना संकेतनाम leenameh और दूसरी में jayhind। ये दोनों अंग्रेजीमें लिखने पडेंगे। जब हम गुप्तशब्द लिखते हैं तो संगणकपर केवल ***** बिन्दू बिन्दू ही दिखेंगे **** - हमारा गुप्तशब्द नही दिखेगा। इसलिये अगल बगल में कई लोग हों भी तो वे संगणक पर हमारा गुप्तशब्द नही पढ पायेंगे। हमेंअपना ईमेल पता तो सबको बताना चाहिये ताकि लोग संदेश भेज सकें लेकिन गुप्तशब्द कभी नही बताना चाहिये।
हम एक ही कंपनी के साथ कई संकेतनामोंसे रजिस्टर हो सकते हैं- और कई कंपनियों के साथ भी। जिस प्रकार हमारा पोस्टल पता कई दूसरे कामों के लिये उपयोगी होता है इसी प्रकार ईमेल पता भी कई कामोंके लिये उपयोगी होता है।
इस उदाहरणमें मेरा ईमेल पता हुआleenemeh@yahoo.com  और गुप्तशब्द हुआ  jayhind. यहाँ @ को at the rate of  पढा जाता है और यह अक्षर इतना कारगर हो गया है कि सभी की-बोर्डों पर इसकी कुञ्जीहोती है।
अब मैं किसी भी संगणक पर  याहू के संकेतस्थल पर जाकर sign in की पंक्तियों पर अपना संकेतनाम  और गुप्तशब्द लिखूँ तो मेरी व्यक्तिगत डाकपेटी का पन्ना खूलेगा।  उसमें “Compose mail” बटन को टिकटिकाने पर एक नया पन्ना खूलेगा जिसमें पत्र की ही तरह बाकायदा पता लिखने की जगह और संदेश लिखने की  आलग जगह होगी। इसमें संदेश लिखकर यदि मैंने पते की पंक्ति में लिखा leenameh@yahoo.com तो वह पत्र मुझे ही भेजा जायगा। अब यदि मैं उसी पन्ने पर बाँई ओर लिखे inbox के बटन को टिकटिकाउँ तो मैं अपना पत्र पढ सकती हूँ। अपने मित्र को पत्र भेजना हो तो उसका ईमेल पता लिखना पडेगा।
मेरे ईमेल पते पर मुझे कोई भी पत्र भेज सकता है। लेकिन मेरी डाकपेटी खोलने के लिये मेरा गुप्तशब्द चाहिये जो केवल मुझे ज्ञात है।
इस प्रकार ईमेल का काम सीखने में अधिक समय नही लगता। ये पन्ने पढने में जितनी देर लगी उससे कम समय में यह सब कुछ सीखा जा सकता है।
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