(राजकमल)
भाग ७
संगणक है टाईप- रायटर
संगणक का एक प्रमुख काम टाईप करने का है। लेकिन संगणक पर किया गया टाईपिंग सामान्य टाईप-रायटर की अपेक्षा दस गुना सरल और सौ गुना सुघड होता है।
टाईपरायटर का अविष्कार होनेपर उसका उपयोग सन १८७३ में शुरू हुआ जो १९९० तक चलता रहा । आज भी थोडाबहुत चल ही रहा है। इस यंत्र में एक कुञ्जीपटल था । किसी अक्षरकी कुञ्जी खटकाने पर कुञ्जीसे लगी एक डंडी आगे निकलकर सामने लगे कागज से टकराती थी। डंडी के सिरे पर वही अक्षर उलटकर उकेरा होता था और कागज के आगे काली स्याही की एक रिबन लगी होती थी। डंडी टकराने से कागजपर स्याहीसे वह अक्षर उभरता था। उसी समय कागज और रिबिन थोडासा आगे सरक जाते ताकि अगले अक्षर के लिये जगह तैयार हो। अंग्रेजी टाइपरायटरके कुञ्जी पटलमें तीन लाइनों पर अंग्रेजी के २६ अक्षर, चौथी ऊपरी लाईनमें सारे अंक, विरामचिह्न, इत्यादि होते थे। जैसे + = इत्यादि।
लेकिन यह कुञ्जीपटल अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम के अनुसार नही था, वरन उसमें अक्षरोंका क्रम उलटा-पुलटा था। इसके दो कारण थे। अंग्रेजी वाक्य लिखते हुए कौनसे अक्षरोंका उपयोग अधिक होता है, उनके लिये कौनसी उंगली हो, साथ ही आठों उंगलियो से टाइप करते हुए यह भी देखना पडेगा कि अंगरेजी शब्दोमें सामान्यतः जो दो अक्षर एक के बाद एक आते हैं, उनकी डँडियाँ एक दूसरे से बहुत अलग-आलग हों ताकि वे आपस में उलझें नहीं। इस प्रकार काफी रिसर्च करने के बाद ही कुञ्जीपटल पर अक्षरोंका अनुक्रम नियत हुआ जो वर्णमाला अनुक्रम abcd..... से नितान्त भिन्न था।
अंग्रेजी टाइपरायटिंग के लिये अधिकतर querty अनुक्रम प्रयुक्त हुआ। इसकी पहली पंक्तिमें क्रमसे q,u,e,r,t,y अक्षर आते हैं। कुछ अन्य अनुक्रमों वाले टाइपरायटर भी बने थे जो जर्मन, स्वीडिश आदि भाषाओंके के लिये अधिक उपयुक्त थे।लेकिन भारतमें चलनेवाले टाइपराइटरोंमें में सदा querty अनुक्रम का ही प्रयोग हुआ।
जब संगणक बने और बनानेवाली कंपनियोंने पहचाना कि यह जल्दीही टाइपराइटरकी जगह ले लेगा तो संगणक के कुञ्जीपटल पर भी वही टाइपराइटरवाला अनुक्रम रखा । इससे यह फायदा हुआ कि सारे टायपिस्ट बडी सरलता से संगणक पर टाईपिंग करने लगे।
टाईपरायटर के अविष्कार के अलावा छपाई काम के लिये अलग अलग नमूनोंके अक्षर आवश्यक होते हैं। इन्हें फॉण्ट कहते हैं। हिंदी में हम इन्हें वर्णाकृति कह सकते हैं। अंग्रेजीके कई जानेमाने लोकप्रिय फॉण्ट हैं जैसे एरियल, टाइम्स न्यू रोमन, ताहोमा, कॅलिब्री इत्यादि। छापखाने में इनकी बडी आवश्यकता होती है। लेकिन टाइपराइटर में एक ही तरह का और एक ही साइज का फॉण्ट लगाया जा सकता है, दूसरे फॉण्ट चाहिये तो दूसरा टाईपरायटर ही खरीदना पडता था।
संगणक आने पर वे डंडियाँ और स्याहीमें डूबी रिबिन वगैरा सबकी आवश्यकता समाप्त हो गई। संगणक का काम सीधे स्क्रीनपर देखा जाता है और इसके प्रिंटर भी डंडियों की बजाय इलेक्ट्रिक सिग्नल से चलते हैं। इसलिये संगणक के सिस्टममें कई तरह के फॉण्ट रखना सरल भी है और पर्याप्त भी। अब संगणक पर जाकर किसी भी अक्षर, शब्द, पंक्ति या परिच्छेद के लिये संगणक को आदेश दिया जा सकता है- फॉण्ट बदलकर दूसरा फॉण्ट लगाओ, साइज बदलो, यहाँ तक कि रंग और बॅकग्राउंड का रंग भी बदला जा सकता है। इस प्रकार जो भी लिखा गया उसे सुंदर ढंग से सजाया जा सकता है।
इसी प्रकार जब हिन्दी टाईपरायटर बना तो उसकी कुञ्जियाँ भी हिन्दीके वर्णक्रम के अनुसार नही बल्कि उलटपुलटकर लगाई गई थीं और उनका क्रम रेमिंग्टन अनुक्रम नामसे सबका परिचित था। हालाँकि छपाई के लिये हिंदी भाषा में भी पहलेसे ही कई फॉण्टसेट बने पडे थे, लेकिन टाईपरायटर पर एक ही फॉण्टसेट रह सकता था। और उसका अनुक्रम भी एक खास तरीके उलटा- पुलटाकर रखना जरूरी था। इसी कारण हिंदी रेमिंग्टन टाइपराइटरका अनुक्रम और स्कूल की पहली कक्षा से जो अनुक्रम हम सीखते हैं, अर्थात कखगघङ..., दोनों अलग थे। रेमिंग्टन हिंदी अनुक्रम सीखने के लिये कमसे कम एक वर्ष का समय लगता था। लेकिन हिंदी टाइपिस्ट मेहनतसे उसे सीखकर उसका प्रयोग कर रहे थे। इस प्रकार हिंदी टाइपराइटर भी वर्षोंसे चले आ रहे थे।
इसलिये संगणकपर हिंदी टंकनकी सुविधा बनानेवाले प्रोग्रामर्सने संगणक कुञ्जीपटलके लिये भी वही रेमिंग्टन अनुक्रम रख्खा ताकि जो वर्षोंसे टाईपरायटिंग कर रहे हैं उनका काम रुके बिना या कुछ नया सीखे बिना ही चलता रहे। टाईपिंग करनेवाले सारे हिंदी टायपिस्ट सरलता से संगणक का उपयोग शुरू कर सकें।
लेकिन इन प्रोग्रामर्सने एक नेक, पुण्यका काम और भी किया । उन्होंने दो कुञ्जी-अनुक्रम और बनाये -- एक अनुक्रम इनस्क्रिप्ट हमारी वर्णमाला कखगघङ... के क्रमानुसार था और दूसरा रोमन फोनेटिक जो अंग्रेजी टाइपराइटर का ही क्रम था। इन वर्णक्रमोंके साथ उन्होंने कई सुंदर हिंदी फॉण्टसेट (वर्णाकृतिसमूह) भी उपलब्ध कराये ताकि टायपिंग सुंदर दिखे और उसमें विविधता हो। एक खास बटनसे संगणक को बताया जा सकता है कि आप किस कुञ्जी-अनुक्रमसे काम करना चाहते हैं।
इनस्क्रिप्ट अनुक्रम बहुतही सरल व उपयोगी है। इसकी पहली मजा ये है कि स्कूलकी पहली कक्षामें हमें जो वर्णक्रम पढाया जाता है -- क,ख,ग.......क्ष,ज्ञ तथा अ,आ,इ,ई,उ,ऊ.... उसी क्रममें कुञ्जी-अनुक्रम भी बनाया ताकि आपको सीखनेमें घोकना न पडे, बल्कि कुञ्जी-अनुक्रम अनायासही यादमें बना रहे। टाईपरायटर सीखने वालोंको रेमिंग्टन अनुक्रमकी प्रॅक्टिसके लिये छः-आठ महिने लग जाते हैं, चाहे हिंदी सीख रहे हों या अंग्रेजी। लेकिन संगणकका इनस्क्रिप्ट हिंदी अनुक्रम बिना अभ्यासके ही दिमागमें फिट हो जाता है - बस पाँच मिनटोंमें, और इसके लिये अंग्रेजी सीखनेकी भी आवश्यकता नही। इस कारण जो बच्चे पाँचवींके बाद स्कूल नही जा सकते, अंग्रेजी नही पढ सकते वे भी कमसे कम समयमें डंकेकी चोटपर संगणक-हिन्दी-टायपिंग सीख सकते हैं। एक बार सीखकर कहीं भी टाईपिंगका व्यवसाय कर सकते हैं।
इनस्क्रिप्ट अनुक्रम में दूसरी सरल बात यह भी है कि इसमे सारे स्वर बाँई उंगलियों पर व प्रायः सारे व्यंजन दहिनी उंगलियों पर रखे गये हैं। इसलिये हम व्यंजन-स्वर-व्यंजन- स्वर इस प्रकार दाईं-बाईँ अंगुलियोंसे टायपिंग करते चलते हैं जिससे तबले की तरह एक लय निर्माण होती है और सीखना अति-सरल हो जाता है।
इन दो के कारण रेमिंग्टनका उलटा पुलटा हिंदी अनुक्रम सीखने में जो एक सालका समय लगता है, उससे छुटकारा मिल गया। अब जिस टाईपिस्ट ने शुरू से वही सीखा था-- उसे तो रेमिंग्टन हिंदी अनुक्रमकी सुविधा मिल गई लेकिन नया सीखने वालेके लिये उसकी आवश्यकता नही रही। एक वर्ष का टायपिंग क्लास लगाने के बजाय पाँच मिनिटों मे इनस्क्रिप्ट अनुक्रम सीखा जा सकता है और स्पीड लाने के लिये एक महिना पर्याप्त है।
एक तीसरी सरलता यह भी है कि सारी भारतीय लिपियों की वर्णमाला अर्थात् अक्षर-अनुक्रम देवनागरी ही है। इसलिये एक बार यह अनुक्रम समझकर आत्मसात कर लेने पर हम केवल एक निर्देश मात्र से संगणक को बता सकते हैं कि अब मुझे हिंदी की जगह कन्नड या बंगाली या पंजाबी में लिखना है, और बिना किसी परेशानी के लिये हम उसी प्रकार लिखते चलेंगे - केवल स्क्रीन पर दिखने वाला अक्षर कन्नड या उस उस लिपी से लिखा होगा।
इसका सर्वाधिक उपयोग संस्कृतके लिये है। यदि कोई श्लोक या परिच्छेद संस्कृत भाषा मे है, पर लिपी देवनगरी है तो उसे केवल एक निर्देश से बंगाली में बदलने पर वही संस्कृत लेखन बंगाली व्यक्ति अधिक सुगमतासे पढ सकता है। इस प्रकार भारतीय लिपियोंकी एकात्मता का अच्छा उपयोग इनस्क्रिप्ट में किया गया है। यह एका ही किसी ज्ञानको आगे बढाता है। मुझे कई बार लगता है कि इस अनुक्रम का नाम भी इनस्क्रिप्ट की बजाय देवनागरी या भारती रखा जाता तो कोई गलत नही होता।
जब संगणक नही थे, केवल टाइप रायटर थे, तब हर भाषा में कुञ्जीपटलका अनुक्रम अलग था इसलिये जो मराठी टाइपिंग कर सकता था, उसे कन्नड टाइपिंग अलग से सीखनी पडती थी लेकिन इनस्क्रिप्ट अनुक्रममे यह समस्या भी समाप्त हो गई।
फिर भी टाईपरायटर और संगणकमें एक अन्तर याद रखना पडेगा। टाईपरायटर पर केवल टाईपिंग हो सकती है। संगणक पर कई काम हो सकते हैं। तो संगणकको अपने आप कैसे पता चलेगा कि हम टाइपिंग करना चाहते हैं, या गीत सुनना चाहते हैं या कुछ और?
इसलिये संगणक खोलनेपर यदि टाइपिंग करनी हो तो उसे बताना पडेगा कि वर्ड सॉफ्टवेअर खोलो। तब उसके पडदे पर नया कोरा कागज खुलेगा । फिर उसे बताना पडेगा कि हमें किस भाषा या किस लिपीमें और किस अनुक्रम से टाइप करना है, उसके बाद ही हम टाईपिंग आरंभ कर सकते हैं।
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chp- 7
संगणक है टाईप- रायटर
संगणक का एक प्रमुख काम टाईप करने का है। लेकिन संगणक पर किया गया टाईपिंग सामान्य टाईप-रायटर की अपेक्षा दस गुना सरल और सौ गुना सुघड होता है।
टाईपरायटर का अविष्कार होनेपर उसका उपयोग सन…. में शुरू हुआ जो १९९० तक चलता रहा । आज भी थोडाबहुत चल ही रहा है। इस यंत्र में एक कुञ्जी पटल था । एक कुञ्जी खटकाने पर एक डंडी आगे निकलकर सामने लगे कागज से टकराती थी। डंडी के सिरे पर वही अक्षर उलटकर उकेरा होता था और कागज के आगे काली स्याही की एक रिबन लगी होती थी। डंडी टकराने से कागजपर स्याहीसे वह अक्षर उभरता था। उसी समय कागज और रिबिन थोडासा आगे सरक जाते ताकि अगले अक्षर के लिये जगह तैयार हो। अंग्रेजी टाइपरायटरके कुञ्जी पटलमें तीन लाइनों पर अंग्रेजी के २६ अक्षर, चौथी लाईनमें सारे अंक, विरामचिह्न, इत्यादि होते थे। , जैसे + या = इत्यादि।
लेकिन यह कुञ्जी पटल अंग्रेजी वर्णमाला के क्रम के अनुसार नही था, वरन उसमें अक्षरोंका क्रम उलटा-पुलटा था। इसके दो कारण थे। अंग्रेजी वाक्य लिखते हुए कौनसे अक्षरोंका उपयोग अधिक होता है, उनके लिये कौनसी उंगली हो, साथ ही आठों उंगलियो से टाइप करते हुए यह भी देखना पडेगा कि सामान्यतः शब्दोमें जो दो अक्षर बार-बार एक के बाद एक आते हैं, उनकी डँडियाँ एक दूसरे से बहुत अलग-आलग हों ताकि वे आपस में उलझें नहीं। इस प्रकार काफी रिसर्च करने के बाद ही कुञ्जी पटल पर अक्षरोंका अनुक्रम नियत हुआ जो वर्णमाला अनुक्रम abcd से नितान्त भिन्न था।
अंग्रेजी टाइपरायटिंग के लिये अधिकतर querty अनुक्रम प्रयुक्त हुआ। इसकी पहली पंक्तिमें क्रमसे q,u,e,r,t,y अक्षर आते हैं। कुछ अन्य अनुक्रमों वाले टाइपरायटर भी बने थे जो जर्मन, स्वीडिश आदि भाषाओंके के लिये अधिक उपयुक्त थे।लेकिन भारत में सदा querty अनुक्रम का ही प्रयोग हुआ।
संगणक के कुञ्जीपटल पर भी यही अनुक्रम रखनेसे यह फायदा हुआ कि सारे टायपिस्ट बडी सरलता से संगणक पर टाईपिंग करने लगे।
टाईपरायटर के अविष्कार के अलावा छपाई काम के लिये अलग अलग नमुनोंके अक्षर आवश्यक थे। इन्हें फॉण्ट कहते हैं। हिंदी में हम इन्हें वर्णाकृती कह सकते हैं। अंग्रेजीके कई जानेमाने लोकप्रिय
फॉण्ट हैं जैसे एरियल, टाइम्स न्यू रोमन, ताहोमा, कॅलिब्री इत्यादि। छापखाने में इनकी बडी आवश्यकता होती थी। लेकिन टाइपराइटर में एक ही तरह का और एक ही साइज का फॉण्ट लगाया जा सकता है, दूसरे फॉण्ट चाहिये तो दूसरा टाईपरायटर ही खरीदना पडता था।
संगणक आने पर वे डंडियाँ और स्याहीमें डूबी रिबिन वगैरा सबकी आवश्यकता समाप्त हो गई। संगणक का काम सीधे स्क्रीनपर देखा जाता है और इसके प्रिंटर भी डंडियों की बजाय इलेक्ट्रिक सिग्नल से चलते हैं। इसलिये संगणक के सिस्टममें कई तरह के फॉण्ट रखना सरल भी है और पर्याप्त भी। अब संगणक पर जाकर किसी भी अक्षर, शब्द, पंक्ति या परिच्छेद के लिये संगणक को आदेश दिया जा सकता है- फॉण्ट बदलकर दूसरा फॉण्ट लगाओ, साइज बदलो, यहाँ तक कि रंग और बॅकग्राउंड का रंग भी बदला जा सकता है। इस प्रकार जो भी लिखा गया उसे सुंदर ढंग से सजाया जा सकता है।
जब हिन्दी टाईपरायटर बना तो उसकी कुञ्जियाँ भी हिन्दीके वर्णक्रम के अनुसार नही थीं। लेकिन जो भी क्रम था वह सभी टाईपरायटरोंपर एक ही था। यह रेमिंग्टन अनुक्रम नामसे सबका परिचित था। हालाँकि हिंदी भाषा में भी छपाई के लिये कई फॉण्टसेट बने, लेकिन टाईपरायटर पर एक ही फॉण्ट रह सकता था। और उसका अनुक्रम भी एक खास तरीके से रखना जरूरी था। स्कूल की पहली कक्षा से जो अनुक्रम हम सीखते हैं, अर्थात कखगघङ, उसे उलटा पुलटा कर हिंदी का रेमिंग्टन अनुक्रम बना था। इसे सीखने के लिये कमसे कम एक वर्ष का समय लगता था। लेकिन वर्षोंसे हिंदी टाइपराइटर चले आ रहे थे और हिंदी टाइपिस्ट मेहनतसे सीखकर उसका प्रयोग कर रहे थे।
इसलिये संगणक बनानेवालोंने इसके कुञ्जीपटलके लिये भी वही रेमिंग्टन अनुक्रम रख्खा ताकि जो वर्षोंसे टाईपरायटिंग कर रहे हैं उनका काम रुके बिना या कुछ नया सीखे बिना ही चलता रहे। टाईपिंग करनेवाले सारे हिंदी टायपिस्ट सरलता से संगणक का उपयोग शुरू कर सकें।
लेकिन इन प्रोग्रामर्सने एक नेक, पुण्यका काम और भी किया । उन्होंने दो अनुक्रम और बनाये - एक अनुक्रम इनस्क्रिप्ट हमारी वर्णमाला कखगघङ के क्रमपर था और दूसरा रोमन फोनेटिक जो अंग्रेजी टाइपराइटर का ही क्रम था। इन वर्णक्रमोंके साथ उन्होंने कई सुंदर हिंदी फॉण्टसेट (वर्णाकृतीसंच) भी उपलब्ध कराये ताकि टायपिंग सुंदर दिखे और उसमें विविधता हो। एक खास बटनसे संगणक को बताया जा सकता है कि आप किस कुञ्जी-अनुक्रमसे काम करना चाहते हैं।
इनस्क्रिप्ट अनुक्रम बहुतही सरल व उपयोगी है। इसकी पहली मजा ये है कि स्कूलकी पहली कक्षामें हमें जो वर्णक्रम पढाया जाता है -- क,ख,ग.......क्ष,ज्ञ तथा अ,आ,इ,ई,उ,ऊ.... उसी क्रममें कुञ्जी-अनुक्रम भी बनाया ताकि आपको सीखनेमें घोकना न पडे, बल्कि कुञ्जी-अनुक्रम अनायासही यादमें बना रहे। टाईपरायटर सीखने वालोंको रेमिंग्टन अनुक्रमकी प्रॅक्टिसके लिये छः-आठ महिने लग जाते हैं, हिंदी हो या अंग्रेजी। इनस्क्रिप्ट अनुक्रम बिना अभ्यासके ही दिमागमें फिट हो जाता है - बस पाँच मिनटोंमें, और इसके लिये अंग्रेजी सीखनेकी भी आवश्यकता नही। इस कारण जो बच्चे पाँचवींके बाद स्कूल नही जा सकते, अंग्रेजी नही पढ सकते वे भी कमसे कम समयमें डंकेकी चोटपर संगणक-हिन्दी-टायपिंग सीख सकते हैं। एक बार सीखकर कहीं भी टाईप का व्यवसाय कर सकते हैं।
इनस्क्रिप्ट अनुक्रम में दूसरी सरल बात यह भी है कि इसमे सारे स्वर बाँई उंगलियों पर व प्रायः सारे व्यंजन दहिनी उंगलियों पर रखे गये हैं। इसलिये हम व्यंजन-स्वर-व्यंजन- स्वर इस प्रकार दाईं-बाईँ अंगुलियोंसे टायपिंग करते चलते हैं जिससे तबले की तरह एक लय निर्माण होती है और सीखना अति-सरल हो जाता है।
इन दो के कारण रेमिंग्टनका उलटा पुलटा हिंदी अनुक्रम सीखने में जो एक सालका समय लगता है, उससे छुटकारा मिल गया। अब जिस टाईपिस्ट ने शुरू से वही सीखा था- उसे तो वही सुविधा मिल गई लेकिन नया सीखने वाले के लिये उसकी आवश्यकता नही रही। एक वर्ष का टायपिंग क्लास लगाने के बजाय पाँच मिनिटों मे इनस्क्रिप्ट अनुक्रम सीखा जा सकता है और स्पीड लाने के लिये एक महिना पर्याप्त है।
एक तीसरी सरलता यह भी है कि सारे भारतीय लिपियों की वर्णमाला अर्थात् अक्षर अनुक्रम देवनागरी ही है। इसलिये एक बार यह अनुक्रम समझकर आत्मसात कर लेने पर हम केवल एक निर्देश मात्र से संगणक को बना सकते हैं कि अब मुझे हिंदी की जगह कन्नड या बंगाली या पंजाबी में लिखना है, और बिना किसी परेशानी के लिये हम उसी प्रकार लिखते चलेंगे - केवल स्क्रिन पर दिखने वाला अक्षर कन्नड या उस उस लिपी से लिखा होगा।
इसका सर्वाधिक उपयोग संस्कृतके लिये है। यदि कोई श्लोक या परिच्छेद संस्कृत भाषा मे है, पर लिपी देवनगरी है तो उसे केवल एक निर्देश से बंगाली में बदलने पर वही संस्कृत लेखन बंगाली व्यक्ति अधिक सुगमतासे पढ सकता है। इस प्रकार भारतीय लिपियोंकी एकात्मता का अच्छा उपयोग इनस्क्रिप्ट में किया गया है। यह एका ही किसी ज्ञानको आगे बढाता है। मुझे कई बारलगता है कि इस अनुक्रम का नाम भी इनस्क्रिप्ट की बजाय देवनागरी रखा जाता तो कोई गलत नही होता।
जब संगणक नही थे, केवल टाइप रायटर थे, तब हर भाषा में कुञ्जी पटलका अनुक्रम अलग था इसलिये जो मराठी टाइपिंग कर सकता था, उसे कन्नड टाइपिंग अलग से सीखनी पडती थी लेकिन इनस्क्रिप्ट अनुक्रम मे यह समस्या भी समाप्त हो गई।
फिर भी टाईपरायटर और संगणकमें एक अन्तर याद रखना पडेगा। टाईपरायटर पर केवल टाईपिंग हो सकती है। संगणक पर कई काम हो सकते हैं। तो संगणकको अपने आप कैसे पता चलेगा कि हम टाइपिंग करना चाहते हैं, या गीत सुनना चाहते हैं या कुछ और?
इसलिये संगणक खोलनेपर यदि टाइपिंग करनी हो तो उसे बताना पडेगा कि वर्ड सॉफ्टवेअर खोलो। तब उसके पडदे पर नया कोरा कागज खुलेगा । फिर उसे बताना पडेगा कि हमें किस भाषा या किस लिपीमें और किस अनुक्रम से टाइप करना है, उसके बाद ही हम टाईपिंग आरंभ कर सकते हैं।
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Wednesday, January 4, 2012
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