Tuesday, March 13, 2012

15. संगणक है खिडकियाँ ही खिडकियाँ 1-3

संगणक है खिडकियाँ ही खिडकियाँ . 

संगणक का यह वर्णन शत -प्रतिशत ठिक नही है। लेकिन जब हमे अपने घर की अलग-अलग खिडकियों से तुलना करेंगे तो यह वर्णन सही रूप में समझ आयेगा।
    घर कि खिडकियाँ होती हैं बहार से थोडेसे दृश्य को पकडने के लिये।घर खिडकी से दिखनेवाला दृश्य अलग होगा। कहीं से पौधे दिखेंगे तो याद आयेगा की इन्हें पानी देना है। कहीं से आकाश के पंछी दिखेंगे तो याद आयेगा कि इनकी आवाज रेकॉर्ड करनेका विचार कबसे मन में पडा हुआ है।कहीं से तेज धूप आयेगी तो याद आयेगा कि यहाँ आचार कि शिशी रखनी है, या कम्बल हर खिडकि का दृश्य अलग और उससे किये जानेवाले काम अलग।
    संगणक में इसी प्रकार से कई प्रोग्राम के कई पन्नों को हम एक साथ खोल सकते है।मानों कई
स्लेटें हमारे सामने पडी हों, या हमने कई खिडकियाँ खोल रखी हों। इनका आकार हम अपनी सुविधा के अनुरूप छोटा या बडा या बिन्दुमात्रा भी कर सकते हैं। और पडदे पर उनकी जगह बदल भी सकते है।
    इसलिये जब हम संगणक के सामने काम करने के लिये बैठते हैं तो हम कई काम एक साथ आरंभ कर सकते हैं। एक प्रोग्राम खोला , उसपर अगले काम के संगणक को निर्देश दिये- तभी दुसरा काम खोला - चाहे उसी प्रोग्राम का या दुसरे प्रोग्राम का। --------कि हमने उसकी खिडकी को बिंदुमात्रा कर दिया और दुसरे काम के निर्देश देने शुरू किये। फिर वह भी खिडकी छोटी करके कोने मे डाल दी और तीसरा काम शुरू किया। इसे कहते है मल्टिटास्किंग , या हिंदी में कह सकते हैंअनेकावधान(अनेक + अवधान) - किसी बडी कंपनीके टॉप एक्सिक्यूटिव्ह की तरह।
    इन खिडकियों कि एक मजा हैं। एक बार एक खिडकी का प्रयोग हम समझ ले - कि उसे बडा-छोटा कैसे करते हैं, उसमें किये हुए काम को कैसे सेव्ह(Save) करते हैं, या गलत हुआ हो तो कैसे उसे कचरा-पेटी में डालते है- इत्यादि तो बस । हर खिडकी का प्रबंधन उसी एक बार पड जाय - फिर तो दिमाग पर अधिक जोर डाले बिना ही हम फटाफट तीन-चार खिडकियाँ खोल कर हम उन कामों में लग जाते हैं।
    पर यह भी बता  दूँकि जब पहले
पहले संगणक बने तब उनमें यह बात नही थी। एक काम को खोला हो तो उसे बंद किये बगैर दूसरा शुरू नही किया जा सकता। लेकिन वह संगणक सामान्य जन के लिये नही थे। सामान्यजन की सुविधा के लिये IBM कंपनी ने पहली बार बडे पहमाने पर संगणोकों को बाजार में उतारा। उसकी तंत्र प्रणाली (सॉफ्टेवेअर) में विण्डोज ऑपरेटिव्ह सिस्टम मायक्रोसोफ्ट ने बनाई । उसमें यह हुई। उसके बाद तो अब जो भी अॅापरेटिव्ह सिहासन बाजार में आ जाते हैं, सबने यही पढती अवनाई ।
    संगणक के स्टार्ट बटन पर से टिकटिकने पर एक नई खिडकी खूलती है जिसमें हम संगणक पर रखे प्लाइले जेल्हीरो प्रोग्रामो की सूची पर मरते है।
     संगणक बंद करनेसे पहले खिडकियाँ बंद करनी चाहिये उसके बाद ही संगणक को शट डाउन करना चाहिये।
विंडोज अॅपरेटिंग सिस्टम आहे ये पहले समजनेके लिये संगणक - शिशा इस साल नही थी।
    फिर क्या हुआ और यह संगणक है चमत्कारी गणित। हमारे जिन पूर्व मे से अंको की कल्पना की, उनकी कल्पना शक्ति अन्तर्गीय, अनुलनीय, उपकारी करनी पडेगी। मैं तो कहती हूँ की विश्व का सबसे बडा दर्शन अंकशास्त्र ही है। अससे अधिक abstract कोई दूसरी संक्लपना नही है।
    हमारे पूर्व जो ने एक से नौ तक के आंकडे सोचे, यह अपने आप में वहा दर्शन या फिर उन्होंने शून्य की कल्पना की तो शायद और भी जमकारी
दर्शन थत १ से ९ तक के आंकडे एक से बढकर एक उदेष्ठ होते- चलते है। लेकिन  इन्हें अग्वाई में मन








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संगणक है तुम्हारी अपनी पुस्तक

     संगणक का उपयोग हम अपनी खुदकी निरवी पुस्तक की तरह कर सकते हैं। इसे वेबसाइट कहते हं।
      हम पुस्तक लिखते हैं, ताकि अपने विचार दुनिया के सामने रख सकें । वेबसाइट भी इसीलिये बनाते हैं।
      पुस्तक प्रकाशित करते समय केवल उसके आलेरन पर ध्यान दिया और बाकी बातें बेध्यान छोड दीं ऐसा नही कर सकते । पुस्तक के लिये एक सुंदर मुख पृष्ट आवश्यक है। साथ ही एक अनुशन सुची भीचाहिये। वेबसाइट बनाते समय मुखपृष्ठऔर अनुक्रम सुची दोनों किसीने अच्छा हिंदी पर्यायी उसे ढँढ लिया है - स्वागतपृष्ठ।
     अर्थात शोक होत पेज का स्वागतपृष्ठ बनाता है , उसे थोडा रंगबिरंगा , कलाकार आकर्षक बनना चाहिये। उसी पृष्ठ पर अनुक्रम सुची भी होनी चाहिये जो पढने वाले को बलयेकि कहाँ   क्लिक करने से उसे क्या या देखने को मिलेगा।
     वैसे देखा जाय तो हम भी संगणक की स्लेट पर खडी और आडी लकींरे
खींचकर कामचलाऊ स्वागतपृष्ठ बना सकते हैं। लेकिन वेब डिझाइनर बनाये गये वह अधिक आकर्षक, या सुंदर दिखेगा।
      वेबसइट पर क्या क्या जानकारी होनी चाहिये इसे समझने के लिये हम एक उदाहिण देखें- उसकी अनुक्रम सुची कुछ इस प्रकार होगी-
1.उक्त कार्यालय के आरंभ का रतिहाढ.
2.सुभाषना के कागजान - आदेश इत्यादि.
3.कार्यालय की सामान्य जानकारी.
4.उद्देश, दूरगीसी नितीयाँ, तथा कार्यसंकज- objective, vision  व   mission.
5.कार्याधिकार- mandate.
6.बित्तीय स्लम- बजेट.
7.कार्यालय से संबंधित फॅार्म जो जनता को भरने पडते हैं।
8.नया कुछ कुछ- यह जानकारी बदलती - रहनी चाहिये।
9.कार्यालय से संबंधित कानून, प्रशासत - निर्णय.



इसमें से किसी भी विषय पर जनतासे सुचना मंगवानी हो , तो हर चौकट में “हमें निरन भेंजे”   लिखकर इस चौकट को भी स्वागत पृष्ठ पर लगा देते हैं और उसकी निंक पर दुसरा दुसरा पन्ना खुलता हैजिसपर कोई जनता व्यक्ति अपना नाम, ईमेल- पत्ता इत्यादि जानकारी के साथ अपनी
सुचना भेज सकता है। इसी प्रकार यदि जनता हो कि कितने लोगोने साईट खोलकर देखी है, ले स्वागत पृष्ठ पर एक काऊंटर लायकर रखा जाता है, इधर किसीने आपकी वेबसईट देखी उधक काऊंटर ने अपनी गिनती कर ली और आपकी (व इसे भी) बता दिया।
     स्वागतपृष्ठी अनुक्रम सुची के किसी विषय पर क्लिक करने से जाती है।
     यदि हमें खुदही वेबसाइट बनानी है, तो किसी सरल- सुगम प्रोग्राम या सॅाफ्टवेर की मदद से हम बना सकते हैं, जैसे विण्डोज पेज मेकर या ड्रिम वीव्हर! यह प्रोग्राम खोलते ही हमारे सामने नया पन्ना खूल जाता है। उसका हम चौकोर या आयताकृती कई भाग बना सकते हैं। फिर एक भाग में अनुक्रम सूची लगाते हैं। दुसरी भागो में कोई फोटो, कोई ध्वनी-टेप या कोई दूक- श्राव्य टेप या कोई तस्वीर कोई फोटो लगा सकते हैं। किसी भाग में अपनी विषय में कुछ या वेब साइट के विषय में खुद का बोर्ड या कहीं गिनतीया काउंटर भी लगा सकते है। अर्थात अपनी ओर से हम उसे थोडासा आकर्षक बना सकते है लेकिन किसी फ्रोफेशन की बनाई वेब साइट निश्चय अधिक आकर्षक होगी।
     स्वागत पृष्ठ पर अपना कोई अप्लॅन या लोगो लगाना अच्छा रहता है, जिसे जाँडींग कहते हैं। इससे लोगोंको हमारी वेबसाइट याद रखने में आसानी होती है। यह आयकॅान अपनाफोटो भी हो सकता है।
    इस स्वागत पृष्ठ के किसी भी आयकॅान पर क्लिक करने से कैसे करते हैं? इसके लिये नये सॅाफ्टवेअर हम प्रयुक्त करते हैं उसीमेंएक छोटा प्रोग्राम बना होता हैं जिसे सुपरलिंक कहते हैं - अर्थात एक पृष्ठ को दुसरे पृष्ठ से इंटरनेट के माध्यम से जोडना। इसकेलिये पहला आवश्यक काम है कि हम हर पृष्ठ के लिये कोई नाम चुन लें। फिर हमारे सॅाफ्टवेअर में ऐसी आज्ञावली बनी होती है जिससे हमारे हर पृष्ठ के लिये एक पृष्ठ संकेत (URL) बनता चलता है। इस प्रकार मान लो कि मेरी वेबसाइट का नाम है kaushalam तो इसके स्वागत पृष्ठ पहला संकेत बनाफिर यदि मुझे इसमें तीन पन्ने जोडने हैं जिनके नाम हैंvision, mission व objective तो vision  नामवाले पृष्ठ का पृष्ठसंकेत होगा।
http:\\www.kaushalam.com\vision.html

    इस प्रकार हमें अपनें चारों पन्नोंके पृष्ठ संकेत पता हैं। अब स्वागत पृष्ठ पर जहाँ हमने शब्द लिखा है-vission-  उस शब्द को हायपरलिंक करने पर संगणक पुछेगा कि किस पृष्ठ संकेत से लिंक करूँ
तो उनके उत्तर में यही पृष्ठसंकेत लिखना है।
    अब जैसे ही हम वेबसाइटपर
तीन पन्ने जुड जायेंगे और स्वागत पृष्ठ से उस- उस शब्द पर माउस को टिकटिकाने पर वह पन्ना खुल जायेगा और हम उस पन्ने पर लिखा विवरण पढ सकेंगे।
     लेकिन वेबसाइट पर पन्ने अपलोड करने से पहले आवश्यक है कि हमारी वेबसाइट हो, उसका पता हो और अवकाश में उनके लिये कोई जगह सुनिश्चित हो । जिस प्रकार हमें अपना ईमेल पता किसी  कंपनी क साथ रजिस्टर करना पडता है, उसी प्रकार वेबसाइट भी रजिस्टर करनी पडती है। यदि हमे वेबसाइट बदल करे आकार की कोई आर्थिक कार्यकला न करने हों तो कई कंपनिया बिना पैसा लिये भी वेबसाइट रजिस्ट्रेशन करवाकर अवकाश में जगह दे देती हैं। बडी या व्यावसायिक वेबसाइट हो तो वार्शिक कीमत पर उसे रजिस्टर करते हैं।



























10 संगणक है सुपर-संदेशवाहक पृ 1-12


                  10              
संगणक है वेगवान संदेशवाहक

संगणक के महाजाल द्वारा पूरे विश्वभर में फाइलें भेजने का आयोजन बना सन् १९९५ में। लेकिन इससे पूर्वकालीन चार अविष्कार थे जिनसे महाजाल की संभावना बनी। पहले हम उनकी जानकारी लेते हैं।
 
पहला अविष्कार मायक्रोफोन का था। जब हम मायक्रोफोन के सामने कुछ भी बोलते हैं तो हमारे आवाजसे  उत्पन्न ध्वनि तरंगे विद्युत-धारा  में ठीक उसी प्रकार का उतार- चढाव निर्माण करती हैं। इस उतार-चढाव को कई गुना बढाया जाता है और उस विस्तारित (Amplified) विद्युत-धारा को जब स्पीकर में भेजते हैं तब वापस ध्वनि तरंगे निर्माण होती हैं जो अधिक जोरदार होती हैं और दूरतक सुनी जा सकती हैं।

दूसरा था अलेक्झांडर ग्राहम बेल द्वारा किया गया टेलिफोन का अविष्कार। इसमें मानवी वाक्यों को सूक्ष्म विद्युत-तरंगो में बदला जाता है। फिर उन्हें दो तारों के माध्यम से दूसरे स्टेशन तक पहुँचाया जाता है। यहाँ विद्युत-तरंगो को फिर ध्वनि तरंगो में बदला जाता है। इस प्रकार एक स्थान पर कही गई बात कई सौ या कई हजार किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकती है। लेकिन इसके लिये टेलिफोन तारके जाल बिछाना आवश्यक हो गया। जैसे ही ग्राहम बेल के आविष्कार का महत्व लोगोंने समझा बस उसी समयसे दुनियामें एक होड सी मच गई कि फटाफट कंपनी बना लो और संसार के विविन्न भागों में टेलिफोन केबलके जाल बिछा दो। आज भी यह काम विश्वके सर्वाधिक लाभदायक कामोंमें से एक माना जाता है और केबल कंपनिया  अत्यधिक धनवान कंपनियो की श्रेणी में आती हैं। खैर।

ग्राहम बेल के टेलिफोन यंत्र में एक विशेषता है। एक खास नंबर से लगाया गया फोन दूसरे एक खास नंबर पर ही सुना जा सकता है, वह सबको सुनाई नही देगा। इस पद्धती को प्वाईंट टू प्वाईंट (Point  to Point) संदेश -वहन कहते हैं। साथ ही यह रियल-टाइम या ऑनलाइन भी कहलाता है - जैसे ही उधर कहा गया, उसी समय इधर भी सुना गया।

तीसरा अविष्कार किया जगदीशचंद्र बोस और मार्कोनी ने । उन्होंने ऐसी विधी खोज निकाली जिसमें आवाज को एक जगह से दूसरी से जगह भेजने के लिये टेलिफोन के तार की आवश्यकता नही थी। उन्होंने पाया कि रेडियो-तरंगे अवकाश में खुद ही भ्रमण कर सकती हैं - बिना किसी टेलिफोन केबल के। तो ध्वनि तरंगोंको इन्हीं  रेडियो- तरंगोंपर चढाकर ट्रान्समीटर के द्वारा वायुमंडल में भेज दिया जाता है। फिर दूर स्थित ट्रान्झिस्टरको उसी रेडियो- तरंग की फ्रीक्वेन्सी पर ट्यून करके उस रेडियो-तरंगको उतार लिया जाता है। फिर उसमे से रेडियो-तरंगो को अलग कर दिया जाता है जिससे ध्वनी तरंग पुनः अपने हू-ब-हू रूप में सुनी जा सकती हैं। यह अविष्कार इतना महत्वपूर्ण था कि आकाशवाणी केंद्रको  रेडियो-स्टेशन कहा जाता है और उसके प्रसारणको सुनने के लिये हम घर में जो उपकरण लगाते हैं उसे भी रेडियो ही कहा जाता है।

मूल स्टेशनसे ट्रान्समिट होनेवाली ध्वनि या बात जब रेडियो-तरंगोकी सहायतासे फैलती है, तब वह हर जगह सुनी जा सकती है। जो भी अपना रिसीवर यंत्र उस फ्रीक्वेन्सी (कम्पनांक) पर ट्यून करेगा वह उस बातको सुन सकता है । संदेशवाहनकी इस पद्धतिको ब्रॉडकॉस्ट पद्धति कहा जाता है- अर्थात हर दिशामें फैलानेकी पद्धति,  जो हर कोई सुन सकता है। साथ ही यह रियल- टाईम पद्धति भी है क्योंकि आकाशवाणी से सात बजे प्रसारित होनेवाला कार्यक्रम सात बजे ही सुना जा सकता है, बाद में नही। हाँ, यदि उसे रेकॉर्ड करके रख लिया तो बादमें भी सुन सकते हैं।

इस प्रकार रेडियो या दूरदर्शन के कार्यक्रम सबके लिये खुले हैं जब कि टेलिफोन की बात केवल एक कहनेवाले और एक सुननेवाले के बीच होती है, और उसे हर कोई सुन नही सकता।

तुम समझ रहे होगे कि हमारे घर में डाकिया जो चिठ्ठी  लेकर आता है, वह भी प्वाईंट टू प्वाईंट पद्धति का ही संदेश रहता है। क्यों कि उसमें   लिखनेवालेका और चिठ्ठी पानेवाले का पता स्पष्ट रूप से निर्देशित होता है और चिठ्ठी केवल उसीको मिलती है। लेकिन वह संदेश ऑफलाइन है क्योंकि उसे बादमें आरामसे पढा जा सकता है। मोबाइल से किये जानेवाले कॉल और एसेमेस भी प्वाईंट टू प्वाईंट पद्धतिके हैं। कॉल ऑनलाइन है जबकि एसेमेस ऑफलाइन।

जब संगणक द्वारा महाजाल के मार्फत फाइलें भेजनेकी बात आई तब उसका भी प्वाईंट टू प्वाईंट होना जरूरी था । इसी कारण संगणक द्वारा भेजा गया संदेश टेलिफोन तारोंके माध्यम से टेलिफोन एक्सचेंज तक जाता है, वहाँ से दूर गाँव के टेलिफोन एक्सचेंजमें और वहाँसे फिर मोडेम  द्वारा उस व्यक्ति के संगणक पते पर, जिस व्यक्ति के लिये वह संदेश है। इस प्रकार संगणकका संदेश-वहन प्वाईंट टू प्वाईंट लेकिन ऑफलाइन होता है।

ऑफलाइनमें कई सुविधाएँ हैं। जब हमारे पास चिठ्ठी आती है तो जरूरी नही कि उसे उसी समय खोल कर पढा जाय। लेकिन जब फोन आता है तब उसे उसी समय सुनना पडता है। संगणक संदेश भी टेलिफोनके तारोंसे ही आता है, लेकिन इसकी सुविधा यह है कि वह आपके ईमेल- बॉक्समें पडा रहेगा, और आप उसे अपनी सुविधासे कभी भी पढ सकते हैं। इसे पढनेके लिये हम अपना ई- मेल बॉक्स किसी भी संगणक पर खोल सकते हैं- यह दूसरी सुविधा है। आजकल तो बडे बडे संगणकोंकी बजाय लोग लॅपटॉप ही खरीदते हैं जिसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। उससे भी सुविधाजनक है कि आप स्मार्ट-मोबाइल हा खरीद लो जो संगणक और मोबाइल दोनों काम एक साथ कर लेता है।

टेलिफोन  के लिये लगाने वाले तार पहले केवल तांबे के हुआ करते थे। लेकिन अब ऑप्टिकल फायबर्स का प्रयोग किया जाता है जिनकी कर्मक्षमता और संदेश-वहन क्षमता तांबे के तारों से हजारों गुना अधिक है। जहाँ आवश्यक हो, थोडा-बहुत संदेश-वहन सॅटेलाइट के माध्यम से भी कर लिया जाता है, हालाँकि सॅटेलाइट मूलतः ब्रॉडकास्ट पद्धति के लिये है। मोबाइल टॉवर्स और सॅटेलाइट संदेश-वहनके एकत्रित उपयोगके कारण मोबाइलोंको स्मार्ट बनाना संभव हुआ।

इस प्रकार एक के बाद एक कई अविष्कारोंकी  सहायता से आज हमने संगणकको ऐसा सक्षम बना दिया है कि इसके द्वारा हम अपनी फाइलें, चित्र, वीडियो और कई तरहकी सामग्री चुटकियों में विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँचा सकते हैं- वह भी किसी को कानोकान खबर लगे बिना।
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12 हिंदी-संगणक है चमत्कारी गणित पृ 1-7


                                 

संगणक है चमत्कारी गणित

  हमारे जिन पूर्वजों ने अंको की कल्पना की , उनकी कल्पना शक्ति अवर्णनीय, अतुलनीय और उपकारी कहनी पडेगी। मैं तो कहती हूँ कि विश्व का सबसे बडा दर्शन अंकशास्त्र ही है - इससे अधिक अमूर्त (abstract) कोई दूसरी संकल्पना नही है।
  
हमारे पूर्वजों ने एक से नौ तक के आंकडे सोचे, यह अपने आप में बडा दर्शन था। फिर उन्होंने शून्य की कल्पना की जो शायद और भी चमत्कारी दर्शन था। १ से ९ तक के आंकडे एक से बढकर एक ज्येष्ठ होते चलते हैं। लेकिन इन्हे लम्बाई में  देखनेकी बजाए हम एक वर्तुलाकार में देखें तो ?
हमने वर्तुलाकार चलना आरंभ किया। पहले एक इकाईकी दूरी तय की। फिर और एक फिर और एक .. इस प्रकार ९ इकाइयाँ पूरी कर हम फिर चले और अगली इकाई पूरी करके वहीं पहुँच गया जहाँसे चले थे। एक वर्तुल पूरा करनेके कारण ९ के बादकी इकाई को लिखा १ पर शून्य अर्थात् यह आँकडा हो गया दस। इसी प्रकार आगे ११, १२, ले १९ पूरा करनेके बाद जब अगला हिस्सा चलकर वापस आरंभस्थान पर पहुँचे तो २ वर्तुल पूरे होनेके उपलक्ष्यमें आँकडा हो गया दो पर शून्य अर्थात् २० ।
कहते हैं अथर्ववेदमें एक सूत्रमें आँकडें समझनेका यह वर्णन मिलता है और इसका रोजाना मनन करके इसे समझनेके लिये आज्ञा दी गई है।अथर्ववेदका एक सूक्त कहता है कि इस प्रकार आँकडोंको समझो और इसका प्रतिदिन मनन करके इसे सीखो।

4-  5

जिनका नाम था पिंसून। उन्होंने इस विधी को समझाते हुएऐसा चमत्कारी और सरल सा सूत्र बताया था। जिससे बडे से बडे दशमांश आकडे थे व्दि- अंश पउती में बदला जा सकता हैं। 
   अब मान लो कि हमारे छोटे- छोटे इलेक्ट्रिक बल्बों की एक लम्बी माला है। जिस बल्ब में बिजली पहुँचेगी , वह जल उठेगा- उसे हम एक कहेंगे और जिस बल्ब में बिजली नही पहूँचेगी उसे हम शून्य कहेंगे। 

तो इस दुनियाँ में हमारे जाने पहचाने अंक कैसे लिखे जायेंगे - आओ देखें
१-                 १
२-              १०
३-              ११
४-          १००
५-          १०१
६-          ११०
७-          १११
८-       १०००
९-       १००१
१०-    १०१०
११-    १०११
१२-    ११००



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इस चित्र में जो बल्ब जल रहे है या नही जल रहे हैंउनको बताना होगा।
१००१०११०

                                          6

हैं, या यो भी कहो कि अपने मन के आंकडे के अनुसार बल्बों का जलना- बुझना भी तय कर सकते हैं।
   तो व्दिअंशी गणितका यह चमत्कार है कि केवल बल्बोंको जला -हम बूझाकर हम किसी भी दशमांश पध्दतिका आंकडा जता सकते हैं। संगणक के मास्तिक का मूल चीज यही है - आंकडो की एक पध्दती को दूसरी तरह से बदलवाना।
   क्या व्दिअंशा पध्दतिमेंजोड- घटा- गुणा- भागकर सकते हैं- जी हाँ। आगे देखते है कि यह कितना सरल है-  
व्दिअंशी की चमत्कारी भाषा में
११०१
 १११ 
१०१००

     ११०१
      १११
     ०११०

हमारे रोज की आकडोंकीभाषा में 

 १३
    ७
   २०

 १३
    ७

      ६































































11 संगणक है ज्ञानकोष DTP done


                                 
भाग ११
संगणक है ज्ञानकोष

ईमेल से भेजा गया संदेश केवल प्वॉइंट टू प्वॉइंट या एक व्यक्तिसे दूसरे एक व्यक्तितक  है। फिर भी प्रगत तंत्रज्ञान का लाभ उठाते हुए गूगल या यू-ट्यूब या अमेझॉन जैसी कंपनियोंने कुछ ऐसी सुविधा निर्माण की जिससे हम अंतरिक्षके अवकाशमें अपनी अपनी मनचाही जानकारी की एक अलमारी  बना सकते हैं। इसका प्रचलित नाम है क्लाउड या बादल। उसके लिये ये कंपनियाँ  हमें रजिस्ट्रेशन देती हैं जैसा ईमेल अकाऊंट बनानेके लिये देती हैं।  ये कुछ उसी तरह है  जैसे नगरपालिका घरोंको रजिस्ट्रेशन और पता बहाल करती हैं और फिर उस पतेको ढूँढते हुए मेहमान हमारे घरपर आ सकते हैं। इसी प्रकार  जिसे भी हमारे इस बादल का पता मालूम हो, वह उसपर पहुँचकर वहाँ लिखी जानकारी पढ सकता है। हम अपने आलेख, फोटो , व्हिडियो इत्यादि सब जानकारी इस बादल में रख सकते हैं। गूगल, याहू आदिके अपने अपने बादल भी हैं। साथ ही उनके पास ऐसे सर्च इंजिन्स हैं कि ऐसे सभी बादलों में  रखी गई जानकारी तक वे सहजता से पहुँच सकते है और दूसरों को भी वहाँ पहुँचा सकते हैं। ये कुछ पुस्तकालय जैसा भी है। वहाँ पुस्तकें रखी होती हैं, हम जाते हैं, मनचाहे पुस्तक या विषयको पूछते हैं -- वहाँ कोई जानकार व्यक्ति काम सँभाल रहा होता है -- वह फटाफट बताता है कि अमुक जगह से पुस्तक लो, फिर हम पुस्तक लेकर पढने बैठ जाते हैं।

इसलिये यदि हमने गूगल सर्च इंजिन में जाकर वहाँ लिखा “भारत” तो सर्च इंजिन सारे बादलों में छान मारेगा और जिस बादल के जिस भी आलेखन में “भारत” शब्द आता हो, उस हर आलेखन की सूची बनाकर हमारे सामने रख देगा। जैसे अभी मैने गूगल सर्च पर देवनागरी लिपीमें भारत शब्द टाइप किया तो मुझे एक सूची दिखाई गई जिसके आरंभमें लिखा था कि सभी बादलोंके करीब ७२ लाख आलेखोंमें यह शब्द है और इस जानकारीको खोजकर मेरे सामने  रखने के लिये गूगल सर्च इंजिनको केवल ५९ सेकेंड लगे। यही शब्द अंग्रेजीमें लिखकर सर्च किया तो एक करोड तीस लाख आलेख मिले जो खोजनेमें सर्च-इंजिनको ६६ सेकेंड लगे। अंग्रेजीमें टंकित इंडिया शब्दके लिये ७० करोडसे अधिक प्रविष्टियाँ हैं (७७ सेकेंड) और कन्नड लिपीमें भारत लिखकर खोजनेपर 3 लाख प्रविष्टियाँ मिलीं (६९ सेकेंड) ।

इस उदाहरण से तुम समझ गये होगे कि संगणक पर इंटरनेट शुरू करतेही हमें ज्ञान के एक अदभुत व विस्तृत संसार में झाँकने का मौका मिल जाता है। इन ज्ञानमेघोंमें  विश्वके कई अखबार पूरे के पूरे मिल जायेंगे तो कई लेखकोंने अपनी अपनी पूरी पुस्तकें डाल रखी होंगी। ऑडियो तथा विडियो सामग्री भी होगी । हम उन्हें पढ सकते हैं। प्रश्न पूछ सकते हैं। मित्र- मंडली की स्थापना कर एक दूसरे से जानकारी ले सकते हैं।

एक असीम और हर प्रकारके ज्ञानका, कभी खतम न होनेवाला खजाना  हमारे लिये खुल जाता है और हम उसमे से जो लेना चाहें ले सकते हैं।
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16 संगणक है तुम्हारी अपनी पुस्तक pg 1-10