Saturday, September 2, 2017

संगणककी जादुई दुनिया भाग - ५ व ६ स्नेह बालपत्रिका हेतु संगणक है पोस्टमन - जनवरी २०२०

स्नेह मासिकके लिये धारावाही -- संगणककी जादुई दुनिया

भाग -   


स्नेह मासिकके लिये धारावाही -- संगणककी जादुई दुनिया भाग-

संगणक है पोस्टमन - जनवरी २०२०

संगणक केवल पोस्टमन ही नही बल्कि डाक- विभाग ही है, क्योंकि डाक विभागके अनेक काम करता है। यही हमारे घरका लेटर-बॉक्स है, यही घरमें डाक लानेवाला डाकिया है, यही डाकघरका पोस्टमास्तर है और पत्रोंको एक पतेसे दूसरेतक पहुँचानेवाला हवाई जहाज या कूरियर भी यही है

संगणक यह सारे काम टेलीफोन विभागकी मददसे करता है । जैसे हम टेलीफोन विभागमें पैसे भरकर एक टेलीफोन घरपर ले आते हैं, वैसे ही थोडे और पैसे भरकर एक मोडेम या उसका बडा भाई राऊटर भी ले आते हैं

राऊटर या मोडेम यंत्रको एक तारसे टेलीफोनके सॉकेटमें जोडते हैं। इथरनेट केबल नामक दूसरी तार संगणकके कार्यकारी बक्सेमें मोडेमके लिये बने प्लगमें जोडते हैं। राउटरमें वाईफाई होता है तो उसे इथरनेट केबलकी आवश्यकता नही होती। जो संदेश हम भेजते हैं वह संगणकसे राउटरमें, वहाँसे टेलीफोन-तारों द्वारा टेलीफोन एक्सचेंजमें, वहाँसे दूरदराजके शहरके टेलीफोन एक्सचेंजमें, वहाँसे हमारे मित्रके राउटरमें और फिर मित्रके संगणकमें पहुँचता है। अर्थात् यदि अपने संगणकको पोस्टमन बनाकर उसके द्वारा दुनियाँ भरमें संदेश भेजने हों, तो पहले अपने संगणकमें एक राऊटर लगाना पडेगा।
लेकिन केवल इतनेसे बात नही बनेगी, कुछ और प्रयास भी करने पडेंगे। सबसे पहले संगणकपर लिखा गया संदेश राउटरतक पहुँचानेके लिये एक्सप्लोअरर नामक सॉफ्टवेअरकी आवश्यकता होगी। आजकलके सर्वाधिक प्रचलित सॉफ्टवेअर जैसे, गूगलक्रोम, फायरफॉक्स और इंटरनेट एक्सप्लोअरर प्रायः संगणककी ऑपरेटिंग सिस्टममें ही लगे होते हैं। तो ये हुआ हमारे संदेशको डाकघरतक पहुँचानेका काम।

लेकिन किसीको डाक- व्यवस्थापन भी करना पडेगा। तो याद रखना कि एक्सप्लोअरर बनानेवाली कंपनियाँ अलग होती हैं और संदेश व्यवस्थापन करनेवाली कंपनियाँ अलग। आजकलकी प्रचलित कंपनियाँ हैं गूगल, याहू, हॉटमेल, रेडिफ मेल इत्यादि।

तो तुमने देखा कि यह काम तीन जगहोंपर बँटा हैं। एक तो टेलीफोनी क्षेत्रमें काम करनेवाली वे कंपनियाँ जिनके बिछाये तार, यंत्र, इत्यादि उपकरण हमारे संदेशको इलेक्ट्रानिकीके माध्यमसे लाते- ले जाते हैं। दूसरा हमारे और मित्रके संगणकमें लगा एक्सप्लोअरर और तीसरा संदेशोंका व्यवस्थापन करनेवाली कंपनियाँ। इसे हम डाकघरकी तुलनासे ऐसे समझें कि मुंबईसे दिल्ली जानेवाले पत्र तो हवाई जहाजसे चले जायेंगे। लेकिन किस व्यक्तिके पतेपर पहुँचाना है, उस पतेपर पहुँचनेका रास्ता डाकियेको मालूम है या नही, पत्र पर डाक- टिकट लगा है या नही, पता न मिलने पर डाकको वापस लौटाना, इत्यादि सारे कामोंका व्यवस्थापन पोस्ट विभागके कर्मचारी करते हैं - इसके लिये एक व्यवस्था बनाते हैं। उसी तरह गूगल, याहू इत्यादि कंपनियाँ हमारे संदेशोंका व्यवस्थापन करती हैं।

अपने घरके संगणकमें राऊटर जोडकर जब हम गूगलक्रोम या फायरफॉक्स खोलते हैं, तो अपने आप ही व्यवस्थापन कंपनीमेंसे किसीका पता उस पर लिखकर आ जाता है। यदि नही आये तो हम स्वयं लिख सकते हैं। साधारणतया इसका स्वरूप https://www.gmail.com इस प्रकारका होता है। इसे उस कंपनीका संकेतस्थल कहते हैं। बस समझ लो कि यही उस कंपनीका हेड ऑफिस है।

अब यदि हमें यह स्वीकार है कि हमारे संदेशोंका व्यवस्थापन यह कंपनी करेगी तो सबसे पहले उन्हें अपनी इच्छा बतानी पडेगी, उनकी शर्तें माननी पडेंगी। उन्हें अपनी कोई पहचान भी बतानी पडेगी और अपना पता भी देना पडेगा ताकि वे अपनी सूचीमें हमारा नाम भी रजिस्टर कर लें।
तो मित्रों, अगले अंकमें हम ये सारे काम करनेकी पद्धतिको समझेंगे।
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स्नेह मासिकके लिये धारावाही -- संगणककी जादुई दुनिया भाग-
संगणक है मेरी डाकपेटी -- फरवरी २०२०

मित्रों, पिछले अंकमें हमने समझा कि संगणकपर डाकप्रणाली चलानेके लिये उसकी ऑपरेटिंग सिस्टममें बैठा क्रोम जैसा एक्सप्लोअरर चाहिये जो हमारे संदेशको संगणकीय भाषामें बदलकर उसे भेजनेलायक बनाता है। फिर संगणक-- राऊटर--टेलीफोन एक्सचेंज--दूर शहरका टेलीफोन एक्सचेंज--हमारे मित्रका राऊटर--उसका संगणक इतने रास्तोंसे संदेश पहुँचानेके लिये टेलीफोनके तार या मोबाईल टॉवर या उपग्रह ( सॅटेलाइट) चाहिये। तीसरी, संदेशोंका व्यवस्थापन करनेवाली गूगल या याहू जैसी कंपनी भी चाहिये। एक उपयोगकर्ताके रूपमें हमारा संबंध इन्हीं व्यवस्थापक कंपनियोंसे है।
नसे जुडनेका तरीका यों है कि अपने एक्सप्लोअररमें जाकर किसी कंपनीका संकेत स्थल खोलो। साधारणतया इसका स्वरूप https://www.gmail.com इस प्रकारका होता है। तुरंत उस कंपनीका संक्षिप्त परिचय देनेवाला एक पन्ना खुलेगा जिसमें हमें रजिस्ट्रेशनके लिये निमंत्रण भी होगा । जहाँ कहीं लिखा हो साइन-अप, वहीं हमे टिकटिकाना है। फिर एक नया पन्ना खुलेगा जो वास्तव में रजिस्ट्रेशन का फॉर्म है। इसमें हमारी कुछ प्राथमिक जानकारी पूछी जायगी और संकेतनाम और गुप्तशब्द भी पूछा जायेगा। जरूरी नहीं है कि संकेतनामके लिये हम अपना असली नाम लिखें। जैसे मैंने गूगल कंपनीके साथ अपना संकेतनाम दिया है avahan जबकि मेरा नाम है leena mehendale । अब मुझे अपना गुप्तशब्द भी चुनकर उन्हें बताना है। तो मान लो कि मैंने गुप्तशब्द चुना jayhind इस प्रकार मेरा ईमेल का पता हुआ avahan@gmail.com और मेरा गुप्तशब्द हुआ jayhind । फॉर्म भर लेनेपर उसी पन्ने के नीचे लिखा Submit बटन भी टिकटिकाना है। इससे गूगलपर मेरा रजिस्ट्रेशन हो गया। यह रजिस्ट्रेशन आरंभ में एक बार ही करना पडता है, बार-बार नही। हाँ, अपना गुप्तशब्द हम कभी भी बदल सकते हैं - बशर्ते उन्हें बताकर बदलें ।
इस प्रकार गूगलपर मेरा खाता खुल गया और रजिस्टर हो गया। अब कभी भी मैं गूगलका संकेतस्थल खोलूं तो Sign up के बजाय Sign in को टिकटिकाउंगी। इससे एक नई खिडकी खुलेगी जिसमें दो खाली जगहें होंगी। पहलेमें मुझे लिखना है अपना संकेतनाम avahan और दूसरी में jayhind। ये दोनों अंग्रेजीमें लिखने पडेंगे। जब हम गुप्तशब्द लिखते हैं तो संगणकपर केवल ***** अर्थात् बिन्दू बिन्दू ही दिखेंगे--- हमारा गुप्तशब्द नही दिखेगा। इसलिये अगल बगल में कई लोग हों भी, तो वे संगणक पर मेरा गुप्तशब्द नही पढ पायेंगे। हमें अपना ईमेल पता तो सबको बताना चाहिये ताकि लोग संदेश भेज सकें लेकिन गुप्तशब्द कभी नही बताना चाहिये।
हम एक ही कंपनी के साथ कई संकेतनामोंसे रजिस्टर हो सकते हैं- और कई कंपनियों के साथ भी। जिस प्रकार हमारा डाकपता कई दूसरे कामों के लिये उपयोगी होता है इसी प्रकार ईमेल पता भी कई कामोंके लिये उपयोगी होता है।

इस उदाहरणमें मेरा ईमेल पता हुआ avahan@gmail.com और गुप्तशब्द हुआ jayhind । यहाँ @ को at the rate of पढा जाता है और यह अक्षर इतना कारगर हो गया है कि सभी की-बोर्डों पर इसकी कुञ्जी होती ही है।

यदि मैं किसी भी संगणकमें गूगलका संकेतस्थल खोलकर sign in की पंक्तियोंमें अपना संकेतनाम और गुप्तशब्द लिखूँ तो मेरी व्यक्तिगत डाकपेटी (इनबॉक्स) का पन्ना लेगा। उसमें “Compose mail” बटन को टिकटिकाने पर एक नया पन्ना खूलेगा जिसमें पत्र की ही तरह बाकायदा पता लिखने की जगह और संदेश लिखने के लिये अलग जगह होगी। इसमें संदेश लिखकर यदि मैंने पते की पंक्ति में लिखा avahan@gmail.com तो वह पत्र मुझे ही भेजा जायगा। अब यदि मैं उसी पन्ने पर बाँई ओर लिखे inbox के बटन को टिकटिकाउँ तो मैं अपना पत्र पढ सकती हूँ। अपने मित्र को पत्र भेजना हो तो उसका ईमेल पता लिखना पडेगा।
मेरे ईमेल पते पर मुझे कोई भी पत्र भेज सकता है। लेकिन मेरी डाकपेटी खोलने के लिये मेरा गुप्तशब्द चाहिये जो केवल मुझे ज्ञात है।
इस प्रकार ईमेल का काम सीखने में अधिक समय नही लगता। यहाँ लिखा विवरण पढने में जितनी देर लगी उससे कम समय में यह सब कुछ सीखा जा सकता है।


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