Tuesday, March 13, 2012

10 संगणक है सुपर-संदेशवाहक पृ 1-12


                  10              
संगणक है वेगवान संदेशवाहक

संगणक के महाजाल द्वारा पूरे विश्वभर में फाइलें भेजने का आयोजन बना सन् १९९५ में। लेकिन इससे पूर्वकालीन चार अविष्कार थे जिनसे महाजाल की संभावना बनी। पहले हम उनकी जानकारी लेते हैं।
 
पहला अविष्कार मायक्रोफोन का था। जब हम मायक्रोफोन के सामने कुछ भी बोलते हैं तो हमारे आवाजसे  उत्पन्न ध्वनि तरंगे विद्युत-धारा  में ठीक उसी प्रकार का उतार- चढाव निर्माण करती हैं। इस उतार-चढाव को कई गुना बढाया जाता है और उस विस्तारित (Amplified) विद्युत-धारा को जब स्पीकर में भेजते हैं तब वापस ध्वनि तरंगे निर्माण होती हैं जो अधिक जोरदार होती हैं और दूरतक सुनी जा सकती हैं।

दूसरा था अलेक्झांडर ग्राहम बेल द्वारा किया गया टेलिफोन का अविष्कार। इसमें मानवी वाक्यों को सूक्ष्म विद्युत-तरंगो में बदला जाता है। फिर उन्हें दो तारों के माध्यम से दूसरे स्टेशन तक पहुँचाया जाता है। यहाँ विद्युत-तरंगो को फिर ध्वनि तरंगो में बदला जाता है। इस प्रकार एक स्थान पर कही गई बात कई सौ या कई हजार किलोमीटर दूर तक सुनी जा सकती है। लेकिन इसके लिये टेलिफोन तारके जाल बिछाना आवश्यक हो गया। जैसे ही ग्राहम बेल के आविष्कार का महत्व लोगोंने समझा बस उसी समयसे दुनियामें एक होड सी मच गई कि फटाफट कंपनी बना लो और संसार के विविन्न भागों में टेलिफोन केबलके जाल बिछा दो। आज भी यह काम विश्वके सर्वाधिक लाभदायक कामोंमें से एक माना जाता है और केबल कंपनिया  अत्यधिक धनवान कंपनियो की श्रेणी में आती हैं। खैर।

ग्राहम बेल के टेलिफोन यंत्र में एक विशेषता है। एक खास नंबर से लगाया गया फोन दूसरे एक खास नंबर पर ही सुना जा सकता है, वह सबको सुनाई नही देगा। इस पद्धती को प्वाईंट टू प्वाईंट (Point  to Point) संदेश -वहन कहते हैं। साथ ही यह रियल-टाइम या ऑनलाइन भी कहलाता है - जैसे ही उधर कहा गया, उसी समय इधर भी सुना गया।

तीसरा अविष्कार किया जगदीशचंद्र बोस और मार्कोनी ने । उन्होंने ऐसी विधी खोज निकाली जिसमें आवाज को एक जगह से दूसरी से जगह भेजने के लिये टेलिफोन के तार की आवश्यकता नही थी। उन्होंने पाया कि रेडियो-तरंगे अवकाश में खुद ही भ्रमण कर सकती हैं - बिना किसी टेलिफोन केबल के। तो ध्वनि तरंगोंको इन्हीं  रेडियो- तरंगोंपर चढाकर ट्रान्समीटर के द्वारा वायुमंडल में भेज दिया जाता है। फिर दूर स्थित ट्रान्झिस्टरको उसी रेडियो- तरंग की फ्रीक्वेन्सी पर ट्यून करके उस रेडियो-तरंगको उतार लिया जाता है। फिर उसमे से रेडियो-तरंगो को अलग कर दिया जाता है जिससे ध्वनी तरंग पुनः अपने हू-ब-हू रूप में सुनी जा सकती हैं। यह अविष्कार इतना महत्वपूर्ण था कि आकाशवाणी केंद्रको  रेडियो-स्टेशन कहा जाता है और उसके प्रसारणको सुनने के लिये हम घर में जो उपकरण लगाते हैं उसे भी रेडियो ही कहा जाता है।

मूल स्टेशनसे ट्रान्समिट होनेवाली ध्वनि या बात जब रेडियो-तरंगोकी सहायतासे फैलती है, तब वह हर जगह सुनी जा सकती है। जो भी अपना रिसीवर यंत्र उस फ्रीक्वेन्सी (कम्पनांक) पर ट्यून करेगा वह उस बातको सुन सकता है । संदेशवाहनकी इस पद्धतिको ब्रॉडकॉस्ट पद्धति कहा जाता है- अर्थात हर दिशामें फैलानेकी पद्धति,  जो हर कोई सुन सकता है। साथ ही यह रियल- टाईम पद्धति भी है क्योंकि आकाशवाणी से सात बजे प्रसारित होनेवाला कार्यक्रम सात बजे ही सुना जा सकता है, बाद में नही। हाँ, यदि उसे रेकॉर्ड करके रख लिया तो बादमें भी सुन सकते हैं।

इस प्रकार रेडियो या दूरदर्शन के कार्यक्रम सबके लिये खुले हैं जब कि टेलिफोन की बात केवल एक कहनेवाले और एक सुननेवाले के बीच होती है, और उसे हर कोई सुन नही सकता।

तुम समझ रहे होगे कि हमारे घर में डाकिया जो चिठ्ठी  लेकर आता है, वह भी प्वाईंट टू प्वाईंट पद्धति का ही संदेश रहता है। क्यों कि उसमें   लिखनेवालेका और चिठ्ठी पानेवाले का पता स्पष्ट रूप से निर्देशित होता है और चिठ्ठी केवल उसीको मिलती है। लेकिन वह संदेश ऑफलाइन है क्योंकि उसे बादमें आरामसे पढा जा सकता है। मोबाइल से किये जानेवाले कॉल और एसेमेस भी प्वाईंट टू प्वाईंट पद्धतिके हैं। कॉल ऑनलाइन है जबकि एसेमेस ऑफलाइन।

जब संगणक द्वारा महाजाल के मार्फत फाइलें भेजनेकी बात आई तब उसका भी प्वाईंट टू प्वाईंट होना जरूरी था । इसी कारण संगणक द्वारा भेजा गया संदेश टेलिफोन तारोंके माध्यम से टेलिफोन एक्सचेंज तक जाता है, वहाँ से दूर गाँव के टेलिफोन एक्सचेंजमें और वहाँसे फिर मोडेम  द्वारा उस व्यक्ति के संगणक पते पर, जिस व्यक्ति के लिये वह संदेश है। इस प्रकार संगणकका संदेश-वहन प्वाईंट टू प्वाईंट लेकिन ऑफलाइन होता है।

ऑफलाइनमें कई सुविधाएँ हैं। जब हमारे पास चिठ्ठी आती है तो जरूरी नही कि उसे उसी समय खोल कर पढा जाय। लेकिन जब फोन आता है तब उसे उसी समय सुनना पडता है। संगणक संदेश भी टेलिफोनके तारोंसे ही आता है, लेकिन इसकी सुविधा यह है कि वह आपके ईमेल- बॉक्समें पडा रहेगा, और आप उसे अपनी सुविधासे कभी भी पढ सकते हैं। इसे पढनेके लिये हम अपना ई- मेल बॉक्स किसी भी संगणक पर खोल सकते हैं- यह दूसरी सुविधा है। आजकल तो बडे बडे संगणकोंकी बजाय लोग लॅपटॉप ही खरीदते हैं जिसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। उससे भी सुविधाजनक है कि आप स्मार्ट-मोबाइल हा खरीद लो जो संगणक और मोबाइल दोनों काम एक साथ कर लेता है।

टेलिफोन  के लिये लगाने वाले तार पहले केवल तांबे के हुआ करते थे। लेकिन अब ऑप्टिकल फायबर्स का प्रयोग किया जाता है जिनकी कर्मक्षमता और संदेश-वहन क्षमता तांबे के तारों से हजारों गुना अधिक है। जहाँ आवश्यक हो, थोडा-बहुत संदेश-वहन सॅटेलाइट के माध्यम से भी कर लिया जाता है, हालाँकि सॅटेलाइट मूलतः ब्रॉडकास्ट पद्धति के लिये है। मोबाइल टॉवर्स और सॅटेलाइट संदेश-वहनके एकत्रित उपयोगके कारण मोबाइलोंको स्मार्ट बनाना संभव हुआ।

इस प्रकार एक के बाद एक कई अविष्कारोंकी  सहायता से आज हमने संगणकको ऐसा सक्षम बना दिया है कि इसके द्वारा हम अपनी फाइलें, चित्र, वीडियो और कई तरहकी सामग्री चुटकियों में विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुँचा सकते हैं- वह भी किसी को कानोकान खबर लगे बिना।
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2 comments:

Unknown said...

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Unknown said...

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mitesh