संगणक है चमत्कारी गणित
हमारे जिन पूर्वजों ने अंको की कल्पना की , उनकी कल्पना शक्ति अवर्णनीय, अतुलनीय और उपकारी कहनी पडेगी। मैं तो कहती हूँ कि विश्व का सबसे बडा दर्शन अंकशास्त्र ही है - इससे अधिक अमूर्त (abstract) कोई दूसरी संकल्पना नही है।
हमारे पूर्वजों ने एक से नौ तक के आंकडे सोचे, यह अपने आप में बडा दर्शन था। फिर उन्होंने शून्य की कल्पना की जो शायद और भी चमत्कारी दर्शन था। १ से ९ तक के आंकडे एक से बढकर एक ज्येष्ठ होते चलते हैं। लेकिन इन्हे लम्बाई में देखनेकी बजाए हम एक वर्तुलाकार में देखें तो ?
हमने वर्तुलाकार चलना आरंभ किया। पहले एक इकाईकी दूरी तय की। फिर और एक फिर और एक .. इस प्रकार ९ इकाइयाँ पूरी कर हम फिर चले और अगली इकाई पूरी करके वहीं पहुँच गया जहाँसे चले थे। एक वर्तुल पूरा करनेके कारण ९ के बादकी इकाई को लिखा १ पर शून्य अर्थात् यह आँकडा हो गया दस। इसी प्रकार आगे ११, १२, ले १९ पूरा करनेके बाद जब अगला हिस्सा चलकर वापस आरंभस्थान पर पहुँचे तो २ वर्तुल पूरे होनेके उपलक्ष्यमें आँकडा हो गया दो पर शून्य अर्थात् २० ।
कहते हैं अथर्ववेदमें एक सूत्रमें आँकडें समझनेका यह वर्णन मिलता है और इसका रोजाना मनन करके इसे समझनेके लिये आज्ञा दी गई है।अथर्ववेदका एक सूक्त कहता है कि इस प्रकार आँकडोंको समझो और इसका प्रतिदिन मनन करके इसे सीखो।
4- 5
जिनका नाम था पिंसून। उन्होंने इस विधी को समझाते हुएऐसा चमत्कारी और सरल सा सूत्र बताया था। जिससे बडे से बडे दशमांश आकडे थे व्दि- अंश पउती में बदला जा सकता हैं।
अब मान लो कि हमारे छोटे- छोटे इलेक्ट्रिक बल्बों की एक लम्बी माला है। जिस बल्ब में बिजली पहुँचेगी , वह जल उठेगा- उसे हम एक कहेंगे और जिस बल्ब में बिजली नही पहूँचेगी उसे हम शून्य कहेंगे।
तो इस दुनियाँ में हमारे जाने पहचाने अंक कैसे लिखे जायेंगे - आओ देखें
१- १
२- १०
३- ११
४- १००
५- १०१
६- ११०
७- १११
८- १०००
९- १००१
१०- १०१०
११- १०११
१२- ११००
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इस चित्र में जो बल्ब जल रहे है या नही जल रहे हैंउनको बताना होगा।
१००१०११०
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हैं, या यो भी कहो कि अपने मन के आंकडे के अनुसार बल्बों का जलना- बुझना भी तय कर सकते हैं।
तो व्दिअंशी गणितका यह चमत्कार है कि केवल बल्बोंको जला -हम बूझाकर हम किसी भी दशमांश पध्दतिका आंकडा जता सकते हैं। संगणक के मास्तिक का मूल चीज यही है - आंकडो की एक पध्दती को दूसरी तरह से बदलवाना।
क्या व्दिअंशा पध्दतिमेंजोड- घटा- गुणा- भागकर सकते हैं- जी हाँ। आगे देखते है कि यह कितना सरल है-
व्दिअंशी की चमत्कारी भाषा में
११०१
१११
१०१००
११०१
१११
०११०
हमारे रोज की आकडोंकीभाषा में
१३
७
२०
१३
७
६
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