Monday, June 4, 2012

18 संगणक है पत्थरकी लकीर -- हो

18 संगणक है पत्थरकी लकीर
(संगणक फाइलोंकी सुरक्षा और गोपनीयता ऐसे संभालते हैं।)


     संगणक की खूबी यह है कि इसपर किया हुआ कोई काम यदि गलत हो गया तो जितना हिस्सा गलत था उसे मिटाकर दुबारा फिर लिख सकते हैं। लेकिन कई बार यह अत्यावश्यक होता है कि एक बार जो किया गया उसे कोई भी न मिटा सके -- उसमेंकी  कोई बात न बदली जाय। दूसरी संभावना यह है कि  बदलाव करनेका अधिकार कुछेक खास लोगोंके पास रखा जाय पर सबके पास नही। 


      जब हम कोई कानूनी कागज बनाते हैं, या शेयर,बँक जैसे पैसेसंबंधित कोई व्य्वहार करते हैं, कोई कॉण्ट्रक्ट बनाते हैं, तब उसपर बडी मेहनत करनी पडती है। हर शब्द और शर्त का चयन तोलमापकर किया जाता है। ऐसा डॉक्यूमेंट एक बार बन जाय तो उसके बदले जानेकी कोई संभावना नही बचनी चाहिये।वह जो भी लिखा गया मानों वह पत्थरकी लकीर बन गया। यदि ऐसी विश्वसनीयता संगणक निभा सके तो ही वह उपयोगी है, अन्यथा नही। तो यह कडी परिक्षा संगणक कैसे पास करता है ? इसके कुछ तरीके हैं।


      जब हम ईमेल भेजते हैं, तो हमारी ईमेल सर्विसवाली कंपनी (जैसे याहू, गूगल  इत्यादि) एक ट्रिक करती है जिससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि एक बार ईमेल सामनेवालेको मिल जाय तो फिर उसे बदला नही जा सकता। वैसे तो इसमें कई परन्तुक हैं -- क्योंकि वही ईमेल दूसरोंको फॉरवर्ड करते समय या उसका टेक्स्ट कॉपी कर वर्ड फाइलमें चिपकानेके बाद उसमें कुछ फेरबदल किये जा सकते हैं। लेकिन जबतक मेरी मेल दूसरे व्यक्तिके ईमेलपर रिसीव्ह्ड मेलके रूपमें है तबतक वह व्यक्ति उसं नही बदल सकता। अगर वह मेल उसने तीसरेके पास भेजी तो वह मेरी नही उसकी ईमेल होगी। मैंने क्या लिख भेजा -इसका उत्तर तो यही है कि जो दूसरे व्यक्तिके संगणकपर मेरी ईमेलके रूपमें दिख रहा है -- मेरे और उसके भी संगणकपर ईमेलका वही विषय, वही तारीख, वही समय -- मिनट,सेकंद तक दिखेगा।मेरे ईमेलकी पहचान इन्हींसे होगी।

तो इस तरीकेसे किया पत्रव्यवहार सौ प्रतिशत नही तो कमसेकम 95  प्रतिशत सुरक्षित माना जा सकता है। उसमें बदलावका स्कोप बस इतना ही है कि यदि याहू, गूगल जैसी कंपनी ही इस षडयंत्रमें शामिल हों। ऐसा तभी होगा जब देशकी ही सुरक्षा इत्यादिका सवाल हो लेकिन यह असंभव नही है।


एक दूसरी परिस्थिती देखेंगे। एक ही घरके दो-तीन संगणक या किसी कार्यालयके कई सारे संगणक वायरिंगसे एकसाथ जुडे हैं -- तो एक संगणककी फाइल दूसरा व्यक्ति देख सकता है। अब मान लो दूसरा वरिष्ठ है और पहली फाइलमें लिखा कुछ बदलना चाहता है -- ऐसे मौके के लिये फाइल बनाते समय उसमें Read only या Read and Edit - ये दो पर्याय उपलब्ध हैं। Read only फाइलमें कोई बदलाव नही किया जा सकता। Read and Edit फाइल हो तब भी एककी फाइलपर लिखा बदलनेका अधिकार किसे दिया जायगा और किसे नही यह तय किया जा सकता है और इस बदलावकी जानकारी कैसे रखी जायगी यह उस कार्यालयकी संस्कृति और आवश्यकताओंपर निर्भर है। किसी फाइलको पीडीएफ बना देनेसे भी वह सुरक्षित हो जाती है। 


इस प्रकार संगणकका काम काफी हदतक सुरक्षित रहता है। हाँ वह एकसौएक प्रतिशत सुरक्षित कभी नही हो सकता। यहाँ मुझे ताले बनानेवाली एक कंपनीकी विज्ञापन स्मरणमें आता है । उनके शब्द थे -- दुनियाका कोई ताला किसी चोरके सम्मुख अनंत कालतक नही टिक सकता -- हाँ, जो अधिकसे अधिक देर टिक सकता है वही अधिक अच्छा "। संगणककी फाइलोंपर भी यही बात लागू होती है।


जब सौ फीसदि गॅरंटी चाहिये कि लिखी गई बात बदली न जाय तो एक ही उपाय है -- उसे कागजपर लिखो, हर पन्नेपर संबंधित व्यक्तियोंके हस्ताक्षर करवा लो और बँकके लॉकरमें रख छोडो। सारे कॉण्ट्रॅक्टोंमें यही प्रणाली चलती है -और जमीनकी खरीदमें तो ये कागजात रजिस्ट्रारके पास रजिस्टर भी करवाने पडते हैं। वैसे तो  संगणक में भी डिजिटल सिग्नेचर जैसी प्रणाली है लेकिन कागजपर लिखे जैसी सुरक्षा उसमें भी नही। और फिर जहाँ कानूननही  कागजातका रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो वहाँ तो कागजपर उतारना ही सही सुरक्षा है।
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