Saturday, April 21, 2007

क्वांटम सिद्धांत का आरंभ The first glimpses of Quantum theory

क्वांटम सिद्धांत का प्रारंभ


क्वांटम सिद्धांत का प्रारंभ बड़े ही अनोखे ढंग से हुआ । न्यूटन ने सोलहवीं सदी में प्रकाश की प्रकृति के विषय में कुछ सिद्धांत बनाये । न्यूटन का कहना था कि जब हमें कोई वस्तु दीखीती है तो वास्तव में होता है यह कि उस वस्तु से काफी कण निकलते हैं जो आंखों से टकराने पर दृष्टि का भान निर्माण करते हैं । रंगों के विषय में उनका कहना था कि प्रत्येक रंग के अलग-अलग कण होते हैं और उनके वेग के कारण उन्हें एक-दूसरे से ड्डत्द्मद्यत्दढ़द्वत्द्मण् किया जा सकता है । वस्तुएं दो प्रकार की होती हैं - स्वयंप्रकाशित जिनसे प्रकाश बराबर निकलता रहता हो जैसे सूर्य, मोमबत्ती की लौ या काफी तपाया हुआ लोहा पर प्रकाशित वस्तुएं वह हैं कि कहीं से आया हुआ प्रकाश उन पर पड़कर परावर्तित होता है और ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकाश उन्हीं वस्तुओं से निकल रहा है और फिर हम उन वस्तुओं को देख पाते हैं जैसे दिन के उजाले में दीख पड़ने वाली वस्तुएं या चांद ।

न्यूटन के समकालीन एक और वैज्ञानिक थे हाइजिन जिन्होंने प्रकाश को तरंग बताया । आगे चलकर अन्य प्रयोगों द्वारा हाइजिन का सिद्धांत ही सर्वमान्य हो गया । इसके अनुसार अलग-अलग रंगों के प्रकाश का कारण उन तरंगों का, उन लहरों का कंपनांक है और यह कम्पनांक उन वस्तुओं की आन्तरिक रचना पर निर्भर हे जिनसे प्रकाश निकलता है ।

इस विवरण के पश्चात्‌ हम लोग दो बिल्कुल अलग-अलग सिद्धांतों की ओर चलेंगे । एक के साथ नाम जुड़ा है प्लांक का और दूसरे के साथ माइकेल्सन का ।

प्लांक के खोज का इतिहास जानने के लिए हम लोग तपते हुए लोहे के विषय में थोड़ा जानेंगे । लोहे को यदि धीरे-धीरे गर्म किया जाए तो हम देखते हैं कि इसका रंग धीरे-धीरे लाल, फिर नीला और फिर सफेद सा हो जाता है । अर्थात्‌ जैसे-जैसे लोहे के तापक्रम को बढ़ाया जाए वैसे-वैसे उससे अलग-अलग रंगों वाले प्रकाश निकलने लगते हैं । फिर भी जब एक रंग का प्रकाश निकलता हो तो इसका अर्थ यह नहीं कि दूसरे रंगों के प्रकाश बिल्कुल ही न निकलते हों । कम अधिक मात्रा में सभी रंगों के प्रकाश निकलते हैं लेकिन जिस रंग का प्रकाश अधिक निकलता हो, वस्तु का रंग वही जान पड़ता है । अन्ततः जब सभी रंगों के प्रकाश बहुतायत से निकलने लगते हैं तो लोहे का रंग सफेद जान पड़ता है ।

अब यह तो तुम जानते ही हो कि हर तरंग की अपनी एक ताकत होती है, अपनी एक शक्ति होती है जिसे विज्ञान की भाषा में ऊर्जा कहते हैं । तो ध््रड्ढत्द नामक वैज्ञानिक ने दो बातों की माप की । एक तो यह कि किसी ऐसे तप्त पदार्थ से निकलते किसी भी एक कम्पनांक वाले प्रकाश की ऊर्जा तापक्रम के बढ़ने पर किस प्रकार बढ़ती है । दूसरी माप यह कि किसी एक नियत तापक्रम पर जो अलग-अलग कम्पनांकों के प्रकाश निकलते हैं, उनकी प्रत्येक की कुल ऊर्जा कितनी होती है ।

इससे पहले हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि तरंग की ऊर्जा क्या है ? पिछले ड़ण्ठ्ठद्रद्यड्ढद्ध में तुमने पढ़ा कि कलासिकल फिजिक्स में हम मानते हैं कि ऊर्जा सतत्‌ है, ऊर्जा का कुछ भी परिमाण हो सकता है । जिस प्रकार घड़ी की सुई डायल पर घूमते हुए डायल के हर बिन्दु पर गुजरेगी, या यह कहो कि जैसे घड़ी की सुई डायल पर कोई भी स्थिति ग्रहण कर सकती है उसी प्रकार किसी तरंग की ऊर्जा भी शून्य से लेकर अनन्त तक कुछ भी हो सकती है, प्रत्येक परिमाण धारण कर सकती है । कलासिकल फिजिक्स की यह भी मान्यता है, कि इस प्रकार प्रत्येक परिमाण की हम माप कर सकते हैं । इसे एक और उदाहरण से समझो । मान लो कि पानी की एक बूंद का वजन क है, जमीन से नल की ऊंचाई ख है और गुरूत्वाकर्षण शक्ति ग है तो नल से निकलते समय बूंद की स्थितिज शक्ति होगी कखग । जमीन पर पहुच कर उसकी स्थितीज शक्ति होगी शून्य । बीच के किसी बिन्दु पर जो जमीन से ख ऊंचाई पर है, बूंद की शक्ति होगी कखग । अब जाहिर है कि नल से जमीन तक आने में पानी की बूंद हर बिन्दु से गुजरी है अर्थात्‌ बूंद की स्थितिज शक्ति भी हर संभव परिमाण से गुजरी है । यह बात पानी की प्रत्येक बूंद को लागू है । इसी प्रकार प्रत्येक
तरंग की ऊर्जा भी हर परिमाण को धारण कर सकती है । सिज प्रकार पानी की बूंद की ऊर्जा को हर स्थिती में मापा जा सकता है उसी प्रकार तरंग की ऊर्जा को भी हर स्थिती में मापा जा सकता है । यह भी है कलासिकल फिजिक्स की धारणा । इस धारणा पर हमें आगे चलकर विचार करेंगे ।

भौतिकी की एक और दिलचस्प शाखा है च््रण्ड्ढद्धथ््रदृड्डन््रदठ्ठथ््रत्ड़द्म-अर्थात्‌ वह शाखा जो ताप और गति के संबंधों को एवं नियमों को बताती है । आज हम यह जानते हैं कि पदार्थों की, या अधिक सही ढंग से कहा जाए तो अणु और परमाणुओं की गति के कारण ताप उत्पन्न होता है और ताप मिलने पर अणुओं की या परमाणुओं की गति बढ़ जाती है जिसे हम तापक्रम के रूप में मापते हैं । इस सारे विवरण में यह समझ लेना बहुत आवश्यक है कि हम जो ताप या तापक्रम की माप करेंगे वह सभी अणुओं की संयुक्त गति की माप का फल होगा । प्रत्येक अणु की अलग-अलग गति के विषय में हम नहीं जान सकते । चूंकि द्यण्ड्ढद्धथ््रदृड्डन््रदठ्ठथ््रत्ड़द्म के नियम अणुओं की गति से संबंधित हैं और चूंकि अणु बहुत ही छोटे होते हैं और प्रत्येक पदार्थ के मूलतत्व होते हैं, अतः द्यण्ड्ढद्धथ््रदृड्डन््रदठ्ठथ््रत्ड़द्म के नियम पदार्थ की बाहरी अवस्था पर निर्भर नहीं होते हैं ।

तुममें से जो कोई भौतिकी के विद्यार्थी हैं या रह चुके हैं उनकी दिलचस्पी के लिए इन नियमों पर एक विहंगम दृष्टि डाली जा सकती है । इसका पहला नियम यह है कि जब दो भिन्न तापक्रम वाली वस्तुएं एक-दूसरे के साथ रखी जायें तो तापीय ऊर्जा एक वस्तु से दूसरे वस्तु में प्रसारित होती है और अन्ततः दोनों वस्तुओं का तापक्रम एक सा हो जाता है । दूसरा नियम यह है कि संसार के किसी भी इंजन की ड्ढढढड़त्ड्ढदड़न््र सौ प्रतिशत नहीं हो सकती । इंजिन का अर्थ है ऐसा उपकरण जिसे एक खास प्रकार की ऊर्जा देने पर दूसरे खास प्रकार का काम उससे हो सके । उदाहरण स्वरूप रेलवे का कोयला इंजिन - इसे हम कोयले के रूप में ऊर्जा देते हैं और यह गति उत्पन्न करने का काम करता है । इसी नियम से आगे बढ़कर हम निरपेक्ष शून्य तापक्रम (ठ्ठडद्मदृथ्द्वद्यड्ढ ड्ढद्धदृ द्यड्ढथ््रद्रद्यड्ढद्धठ्ठद्यद्वद्धड्ढ) के विचार को समझते हैं, द्धड्ढध्ड्ढद्धद्मत्डथ्ड्ढ और त्द्धद्धड्ढध्ड्ढद्धद्मत्डथ्ड्ढ द्रद्धदृड़ड्ढद्मद्मड्ढद्म के विषय में पढ़ते हैं और ड्ढदद्यद्धदृद्रन््र के विषय पर आते हैं । कदद्यद्धदृद्रन््र को समझने के लिए हमें प्रकृति में समाई अव्यवस्था को समझना पड़ेगा । या कहो कि प्रकृति में समाहित विनाश के नियमों को समझना पड़ेगा ।

क्लास में बैठे हुए ३० बच्चों को यदि चुप रखना हो तो मेहनत करनी पड़ती है - उन्हें डांटना पड़ता है या कहानी में उलझाना पड़ता है । यदि कोई परिश्रम न किया जाए तो बच्चे तुरंत ऊधम मचाने लगेंगे । वैसे ही यदि किसी पिस्टन के द्वारा हवा के सभी अणुओं को एक साथ लाकर उनसे कुछ काम कराना है तो मेहनत करनी पड़ेगी । पिस्टन पर कुछ काम करना पड़ेगा । यह न किया जाए तो हवा के अणु वातावरण में अव्यवस्थित रूप से बिखरे पड़े रहेंगे (बल्कि घूमते रहेंगे) और उनसे कोई काम अपने आप नहीं हो पाएगा । कदद्यद्धदृद्रन््रका सरलतम उदाहरण यही है । यह अव्यवस्थित दशा ही अणुओं का प्राकृतिक रूप है । यही हमें कदद्यद्धदृद्रन््र का नियम बताता है । कदद्यद्धदृद्रन््र का नियम है कि प्रकृति में कदद्यद्धदृद्रन््र या तो स्थिर रहेगी या बढ़ती रहेगी परन्तु कम नहीं हो सकती है । इसके साथ-साथ ही पढ़ने के लिए दिलचस्प परिच्छेद हैं गैसों के गति के नियम कदद्यद्धदृद्रन््र (त्त्क्ष्दड्ढद्यत्ड़ द्यण्ड्ढदृद्धन््र दृढ ढ़ठ्ठद्मड्ढद्म), द्मद्रड्ढड़त्ढत्ड़ ण्ड्ढठ्ठद्य, द्धड्ढड्डत्ठ्ठद्यत्दृद द्रद्धड्ढद्मद्मद्वद्धड्ढ इत्यादि । इनमें से कोई भी च््रण्ड्ढद्धथ््रदृड्डन््रठ्ठदठ्ठथ््रत्ड़द्म के नियमों से अधिक दूर नहीं जाता ।

इन्हीं नियमों की सहायता से किरचॉफ ने सन्‌ में यह नियम बनाया कि किसी भी नियत तरंग लम्बाई और नियत तापक्रम पर दुनिया के सभी पदार्थों के लिए ड्ढथ््रत्द्मद्मत्ध्ड्ढ द्रदृध््रड्ढद्ध एवं ठ्ठडद्मदृद्धद्रद्यत्ध्ड्ढ द्रदृध््रड्ढद्ध का अनुपात समान होता है । किसी भी वस्तु की सतह पर जो भी प्रकाश की (या अन्य कोई भी) तरंग पड़ती है तो उस तरंग का कुछ हिस्सा ही परावर्तित हो पाता है जब कि कुछ हिस्सा सोख लिया जाता है । इसके विपरीत ड्ढथ््रत्द्मद्मत्दृद की क्रिया वह है कि यदि किसी वस्तु को गर्म किया जाए तो उसकी सतह के पास हाथ लाने पर भी गर्मी मालूम पड़ती है । इसका कारण है कि वह गर्म वस्तु अपनी उर्जा को उत्सर्जन ड्ढथ््रत्द्मद्मत्दृद के द्वारा बाहर निकालती है । किरचॉफ के नियमानुसार यह जाहिर है कि जो वस्तु अच्छी ठ्ठडद्मदृद्धडड्ढद्ध है वह उतनी ही अच्छी ड्ढथ््रत्द्यद्यड्ढद्ध होगी । प्रकाश सोखनेवाली वस्तुओं का सबसे अच्छा उदाहरण है काली वस्तुएॅ जैसे काले परदे लगे हुए कमरे,कोलतार पुता हुआ डिब्बा,काली मखमल इत्यादि । एक अंधेरे कमरे में काले कागज और सफेद कागज पर टॉर्च की रोशनी डालकर देखो तो पता चलेगा कि काले कागज पर बहुत कम रोशनी मालूम पड़ती है जबकि सफेद कागज पर अधिक क्योंकि काला
कागज अधिक रोशनी सोखता है और सफेद कागज कम। भूरा कागज सफेद कागज की तुलना में अधिक प्रकाश सोखता है परन्तु काले कागज से कम । इसी से वह भूरी दिखाई पड़ती है । वैसे ही जब काले कागज को सफेद कागज को गर्म करेंगे तब काले कागज से अधिक तरंगे निकलेंगी और सफेद कागज से कम।

और अब हम दुबारा चलते हैं तपते हुए लोहे की ओर। किसी तपते हुए लोहे में निकलने वाली नियत कम्पनांक क के तरंगों की उर्जा की माप कैसे हो यानि वाएन ( ध््रत्ड्ढद)ने यह माप कैसे की यहाँ महत्वपूर्ण प्रश्श्नयह है कि किसी नियत तापक्रम पर किसी एक प्रकार के कम्पनांक पर जितनी उर्जा निकलती है उसकी माप हो और इस प्रकार हो कि प्रायोगिक गलतियाँ कम हों ताकि जो निष्कर्ष निकले वह अधिक से अधिक सही हो और किसी को यह कहने का मौका नही मिले कि तुम्हारे प्रयोग में अमुक-अमुक गलतियाँ हुई होंगी । इसके लिये हमें एक आदर्श (ड्ढथ््रत्द्यद्यड्ढद्ध)चाहिये जो थोड़ा सा भी गर्म किये जाने पर अपनी सारी ऊर्जा को तरंगों के रुप में बाहर निकाल देता है और वह भी इस प्रकार कि निकलने वाली हर तरंग इधर उधर छिटके बिना सीधे मापने वाले यंत्र में आये ।

इस प्रकार की मापने की बात से पहले ही एक बात और हुई। द्यण्ड्ढद्धथ््रदृड्डन््रदठ्ठथ््रत्ड़द्म के दूसरे नियम की सहायता से ही वाएन ने एक समीकरण की खोज की फार्मूला
जो माप वह करने जा रहे थे उस माप से उपर्युक्त नियम भी सिद्व होता है यया नहीं यह भी देखना था।वाएन के नियम से यही झलकता है कि किसी भी नियत तापक्रम पर किसी खास कम्पनांक की जो ऊर्जा उत्सर्जक ( ड्ढथ््रत्द्यद्यड्ढद्ध) से निकलेगी वह तरंग लम्बाई पर निर्भर करेंगी । साथ साथ तरंग लम्बाई और तापक्रम पर संयुक्त रुप से भी हनिर्भर करेगी । लेकिन ठीक ठीक किस रुप में....... पर निर्भर करेंगी यह द्यण्ड्ढद्धथ््रदृड्डन््रदठ्ठथ््रत्ड़द्म की सहायता से नहीं जाना जा सकता । यहां ... किसी तरंग की लम्बाई और .... उत्सर्जक को तापक्रम बताते हैं और .... उस तरंग लम्बाई की सभी तरंगों कुल ऊर्जा वाएन के प्रयोगों के लिए द्रड्ढद्धढड्ढड़द्य ड्ढथ््रत्द्यद्यड्ढद्ध या द्रड्ढद्धढड्ढड़द्य ठ्ठडद्मदृद्धडड्ढद्ध की आवश्यकता आ पड़ी । अब सोचो कि क्या कोई ऐसी भी वस्तु हो सकती है जो कोयले से, काली मखमल से या कोलतार से भी काली हो ? प्धातु से बने एक खोखले गाले की कल्पना करो जिसमें अन्दर से कालिख पुती हो । इसमें सुई की नोक के आकार का छोटा सा छेद करो । अब इस छेद से जो भी किरण अंदर गई, वह वापस नहीं आ सकती । गोले के अन्दर वह परावर्तन के कारण जितनी बार टकरायेगी उसकी ऊर्जा घटती जायेगी और अन्ततः वह बाहर नहीं आ सकेगी । अतः इस प्रकार का गोला एक आदर्श ठ्ठडद्मदृद्धडड्ढद्ध है और इसलिए एक आदर्श ड्ढथ््रत्द्यद्यड्ढद्ध भी । इस गोले को जब गर्म किया जाएगा तो यह एक द्रड्ढद्धढड्ढड़द्य ड्ढथ््रत्द्यद्यड्ढद्ध की तरह हर प्रकार की तरंग लम्बाई वाली तरंग उत्सर्जित करेगा । छेद में से जो भी किरणें निकलेंगी उन्हें ढद्धड्ढद्दद्वड्ढदड़न््र ढत्थ्द्यड्ढद्ध लगाकर किसी एक तरंग लम्बाई वाली किरणों की ऊर्जा मापी जा सकती है । इस मापने के यंत्र को बोलोमीटर कहते हैं ।

फिगर


इस प्रकार मापने पर देखा गया कि प्रत्येक नियत तापक्रम पर एक ऐसा कम्पनांक है जिसके तरंगों की ऊर्जा सर्वाधिक है । अतः उस तापक्रम में से उस रंग का प्रकाश आता हुआ दिखेगा । प्रयोगों से यह जानने के बाद कि किसी तापक्रम पर किसी तरंग लम्बाई के तरंगों की कुल ऊर्जा क्या होगी, यह प्रयत्न किया गया कि इसका सैद्धांतिक सूत्र (ढदृद्धथ््रद्वथ्ठ्ठ) ढूंढा जाए । इसके लिए हमें दो बातें जाननी पड़ेंगी - किसी तापक्रम पर एक विशिष्ट तरंग लम्बाई की कितनी तरंगे निकल सकती है और उनकी कुल ऊर्जा क्या हो सकती है और कैसे जानी जा सकती है ।

पहली बात इस प्रकार जानी जा सकती है - मान लो कि यह अपना उत्सर्जक (ड्ढथ््रत्द्यद्यड्ढद्ध) गोल न होकर डिब्बे की तरह है । इससे हमें अगला हिसाब समझने में आसानी होगी । परन्तु वह हिसाब उत्सर्ज के आकार पर निर्भर नहीं है अतः उत्सर्जक का आकार बदलकर कुछ भी हो जाए, अन्ततः हमारे हिसाब में कोई त्रुटि नहीं आयेगी ।

इस डिब्बे का तापमान जब बढ़ा दिया जाए तो इसके अन्दर ऊर्जा बढ़ जाती है अर्थात्‌ इसके अंदर द्मद्यठ्ठदड्डत्दढ़ ध््रठ्ठध्ड्ढद्म बनती हैं क्योंकि केवल द्मद्यठ्ठदड्डत्दढ़ ध््रठ्ठध्ड्ढद्म ही ऊर्जा जतन (द्मद्यदृद्धड्ढ) कर सकती हैं और इस प्रकार ऊर्जा बढ़ाने में मदद कर सकती हैं । उत्सर्जक से आती हुई तरंगे इन्हीं द्मद्यठ्ठदड्डत्दढ़ ध््रठ्ठध्ड्ढद्म का नमूना पेश करती हैं ।

फिगर

यदि डिब्बे के दो सामने की दिवारों की दूरी द है तो जो सबसे बड़ी द्मद्यठ्ठदड्डत्दढ़ ध््रठ्ठध्ड्ढ बनेगी उसकी तरंग लम्बाई त इस प्रकार होगी कि त उ २ द ????
इससे छोटी तरंगों की लम्बाई के लिए सूत्र होगा -
फार्मूला

डिब्बा चूंकि आयताकार है अतः किसी भी दिशा में द्मद्यठ्ठदड्डत्दढ़ ध््रठ्ठध्ड्ढ बन सकती हैं । आयत के तीन अक्ष होंगे (यानी तीन दिशाएं होंगी) । अतः किसी भी ढ़ड्ढदड्ढद्धठ्ठथ् द्मद्यठ्ठदड्डत्दढ़ ध््रठ्ठध्ड्ढ का सूत्र होगा

फार्मूला

यहां न१, न२ और न३ तीनों ही पूर्णांक यथा 1, २, ३, ४ इत्यादि हैं - और डिब्बे की तीन दिशाओं को दर्शाते हैं ।

तरंग लम्बाई की जगह कम्पनांक का सूत्र भी लिखा जा सकता है -
फार्मूला

जहां प्र उ प्रकाश का वेग फार्मूला

यह समीकरण एक ऐसे गोले की द्मत्द्धढठ्ठड़ड्ढ को दर्शाता है जिसकी त्रिज्या ???? है ।

यह जानने के लिए कि उत्सर्जक से निकलती हुई कितनी तरंगों का कम्पनांक क और का द्धठ्ठदढ़ड्ढ के भीतर है (यहां हम मानते हैं कि क और का के बीच बहुत थोडा सा अन्तर है) हमें एक ऐसा त्रिमितीय (च््रण्द्धड्ढड्ढ ड्डत्थ््रड्ढदद्मत्दृदठ्ठथ्) थ्ठ्ठद्यद्यत्ड़ड्ढ खींचना पड़ेगा जिसकी हर इकाई ड़द्वडड्ढ की भुजा ????है । इस थ्ठ्ठद्यद्यत्ड़ड्ढ पर हम दो गोले (द्मद्रण्ड्ढद्धड्ढद्म) खींचे जिनकी त्रिज्याएं क्रमशः ???? और ????? हों । चूंकि न१ न२ और न३ केवल धनात्क पूर्णांक हो सकते हैं अतः यह गोले हम थ्ठ्ठद्यद्यत्ड़ड्ढ के आठवें हिस्से में ही खीचेंगे ।

फिगर


तो क और का कम्पनांक के द्धठ्ठदढ़ड्ढ में स्थित तरंगों की कुल संख्या इन दोनों गोलों की बीच की द्मद्वद्धढठ्ठड़ड्ढ और इकाई ड़द्वडड्ढ के आयतन (ध्दृथ्द्वथ््रड्ढ) के अनुपात से मालूम पड़ेगी । चूंकि क और का के बीच का अन्तर बहुत कम है, हम एक ऐसे गणित का सहारा लेंगे जिसे कहते हैं ड्डत्ढढड्ढद्धड्ढदद्यत्ठ्ठथ् ड़ठ्ठथ्ड़द्वथ्द्वद्म . यहां चूंकि

फार्मूला

चूंकि उत्सर्जित होने वाली प्रकाश किरणें-विद्युत्‌-चुम्बकीय होती है - अतः दोनों तरह की द्मद्यठ्ठदड्डत्दढ़ ध््रठ्ठध्ड्ढ बनेंगी विद्युतीय एवं चुम्बकीय

फार्मूला


इन तरंगों को हर तरंग की ऊर्जा से गुणा करने पर हमें ?? कम्पनांक के कुल तरंगों की ऊर्जा का मान मिलेगा
। यह मालूम करना एक बड़ी कठिन समस्या है ।

इसलिए कि हमने पढ़ा कि कलासिकल फिजिक्स के अनुसार किसी भी तरंग की ऊर्जा शून्य से लेकर अनन्त तक कुछ भी हो सकती है । अब मान लो हम लाल रंग की तरंगों का विचार कर रहे हैं जिनका कम्पनांक क????है । यहां हमें यह सोचना पड़ेगा कि लाल रंग की किसी एक तरंग में शून्य ऊर्जा होने की क्या द्रद्धदृडठ्ठडत्थ्त्द्यन््र है, और अनन्त ऊर्जा होने की क्या द्रद्धदृडठ्ठडत्थ्त्द्यन््र है । उसमें ४.२ अर्ग ऊर्जा होने की क्या द्रद्धदृडठ्ठडत्थ्त्द्यन््र है और २०.५ अर्ग ऊर्जा होने की क्या द्रद्धदृडठ्ठडत्थ्त्द्यन््र है । यदि ४.२ अर्ग ऊर्जा होने की द्रद्धदृडठ्ठडत्थ्त्द्यन््र २ प्रतिशत है और हमारे पास कुल १०० लाल तरंगे हैं तो उनमें से दो तरंगे ऐसी होंगी जिनकी प्रत्येक की ऊर्जा ४.२ अर्ग है और उनकी कुल ऊर्जा २ न् ४-२ उ ८.४ अर्ग होगी । इसी प्रकार कुल १०० किरणों में से जितने तरंगों की जो भी ऊर्जा है उनका गुणनफल करते जाओं और सबका जोड़ लगाओ तो १०० किरणों की कुल ऊर्जा का मान ज्ञात होगा । इस प्रकार के जोड़ की क्रिया को गणितीय भाषा में कहते हैं त्दद्यदृद्धठ्ठद्यत्दृद या कलन ।

यहां हम कुछ देर के लिए तरंगों की दुनिया छोड़कर गणित की दुनिया में झाकेंगे । क्योंकि यह समझ लेना अत्यंत आवश्यक है कि त्दद्यड्ढढ़द्धठ्ठद्यत्दृद जिसे हिन्दी में कलन कहते हैं और जोड़ना जिसे अंग्रेजी में द्मद्वथ््रथ््रठ्ठद्यत्दृद कहते हैं दोनों बिल्कुल अलग-अलग बाते, अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं । पिछले परिच्छेद में जोड़ शब्द का प्रयोग केवल इसलिए हुआ है कि जिन्होंने गणित की पढ़ाई न की हो उन्हें 'कलन' शब्द से तत्काल कुछ भी बोध नहीं हो सकता ।

फिगर

मान लो कि तुम्हें ककाकि की लम्बाई मापनी है और खखाखिखी की भी । तो तुम क्या करोगे ? एक पट्टी से कका की लम्बाई नापो, फिर काकि की और दोनों का जोड़ करो । उसी प्रकार खखा, खाखि और खिखी को अलग-अलग नापो और जोड़ करो । लेकिन अर्थवृ-त अअः की सही नाप इस प्रकार नहीं हो सकती । अअः की नाप में तुम देखोगे कि लाल रास्ते से जो जोड़ किया जाएगा वह काफी गलत उ-तर बनायेगा । उस तुलना में हरे रास्ते से किया गया जोड़ कुछ हद तक अधिक सही होगा और नीले रास्ते से किया जोड़ और भी ठीक । पर जहां लाल रास्ते में एक ही बार जोड़ना है और माप का परिमाण भी बड़ा है, नीले रास्ते में ३ बार जोड़ना पड़ेगा और नाप की स्केल भी छोटी लेनी पड़ेगी । इस स्केल के जितना ही अधिक छोटा करो, उतनी ही अधिक बार जोड़ लगाना पड़ेगा पर उ-तर भी काफी हद तक ठीक निकलेगा ।

फिगर

अब इस चित्र को गौर से देखो जहां नापने की स्केल को काफी छोटा किया गया है । अर्धवृ-त अअः को कई सरल रेखाओं अआ, आइ, इई.... इत्यादि द्वारा चापखंडों में (द्मड्ढड़द्यदृद्धद्म) बांटा गया है । यह सरल रेखाएं या ड़ण्दृद्धड्डद्म अत्यंत छोटी होने के कारण अर्धवृ-त के उस-उस चापखण्ड पर करीब-करीब दृध्ड्ढद्धथ्ठ्ठद्रद्रत्दढ़ है । फिर भी तुम देखोगे कि इन सरल रेखाओं (ड़ण्दृद्धड्डद्म) के दो बिन्दु एक ही दिशा को दर्शाते हैं, चापखंड (द्मड्ढड़द्यदृद्ध) के हर दो नजदीकी बिन्दु भिन्न-भिन्न दिशाएं दर्शाते हैं (गणित की भाषा में - प्रत्येक बिन्दु पर द्यड्ढदढ़ड्ढदद्य की दिशा अलग-अलग है) नापने की स्केल (यानी यह सरल रेखाएं) जिन बिन्दुओं को द्यद्धठ्ठड़ड्ढ कर रही हैं । उनमें ड़द्वद्धध्ठ्ठद्यद्वद्धड्ढ का ठहराव हो गया है । सरल रेखा आइ पर आ से इ तक ड़द्वद्धध्ठ्ठद्यद्वद्धड्ढ नहीं बदलेगा । इसलिए अ से अः तक की लम्बाई को यदि सरल रेखाओं अआ, आइ, इई.... के अनुगत मापना है तो हम जोड़ करेंगे अआ अ आइ अ इईअ अंअः अ अंअः । जरूरी नहीं है कि अआ और आइ के अंतर समान हो । जरूरी यह है खण्ड की माप के लिए हमने जो भी खण्ड चुना हो अआ या उऊ, उसकी पूरी लम्बाई तय होने तक ड़द्वद्धध्ठ्ठद्यद्वद्धड्ढ नहीं बदले । अतः यहां हमने जोड़ या द्मद्वथ््रथ््रठ्ठद्यत्दृद किया । पर यदि बाहरी ओर से चाप के अनुगत इस लम्बाई की माप करनी हो तो हम देखते हैं कि प्रत्येक बिन्दु पर वक्रता (ड़द्वद्धध्ठ्ठद्यद्वद्धड्ढ) बदल रही है । अर्थात्‌ द्मड़ठ्ठथ्ड्ढ हमें इतनी छोटी लेनी पड़ेगी जो केवल दो नजदीकी (ठ्ठड्डत्र्ठ्ठड़ड्ढदद्य) बिन्दुओं को ड़दृध्ड्ढद्ध करती है और अनन्त नापें लेकर उनकी जोड़ करनी पड़ेगी - यही क्रिया है कलन (त्दद्यड्ढढ़द्धठ्ठद्यत्दृद)

इस उदाहरण में क्या तुम बता सकते हों कि कलन की प्रक्रिया द्वारा इस चाप की लम्बाई कैसे नापी जाएगी ?
मान लो कि एक छोटा सा चापखंड (द्मड्ढड़द्यदृद्ध) है???जो केंद्र पर एक छोटा सा कोण बनाता है ??? और त्रिज्या की लम्बाई है ??? तो त्रिकोण मिती के नियमानुसार ???? या ???? एक बार फिर बता दें कि गणित में कलन या अवकलन -त्दद्यड्ढढ़द्धठ्ठद्यत्दृद या ड्डत्ढढड्ढद्धड्ढदद्यत्ठ्ठद्यत्दृद की प्रक्रिया में ???किसी भी वस्तु के अत्यंत छोटे माप को बताती है जैसे ?? का अर्थ है केंद्र पर बनाने वाला अत्यंत छोटो कोण जिसका मान ड्डऋ है ।

अब ऐसे ही कई छोटे-छोटे ??? को अनन्त गुणा जोड़ने पर हमें चाप की लम्बाई का पता चलेगा । इसे अनन्त बार जोड़ने का हम लिखते हैं ????

फार्मूला
,
इसी प्रकार हम एक ड्ढन्द्रठ्ठदड्डत्दढ़ द्मद्रत्द्धठ्ठथ् का उदाहरण समझेंगे । नीचे के चित्रों में से पहले चित्र में पूरे आधे चक्र तक त्रिज्या का मान नहीं बदला है जबकि दूसरे चित्र में हर बिन्दु पर त्रिज्या का मान बदल रहा है । अतः पहले चित्र के लिए अआइईउऊ की लम्बाई होगी -

फार्मूला फिगर

यही दूसरे चित्र में अआइईउऊ की लम्बाई होगी -

फार्मूला फिगर

इस उदाहरण के बाद तुम द्मद्वथ््रथ््रठ्ठद्यत्दृद और त्दद्यड्ढढ़द्धठ्ठद्यत्दृद के अन्तर को समझ गये होंगे । जहां बदलाव ड़दृदद्यत्दद्वठ्ठदड़ड्ढ है वहां कलन की प्रक्रिया की जाती है और जहां बदलाव ठहर-ठहर कर है (अलंकारिक भाषा में - जहां बदलाव में ठहराव है) वहां जोड़ (द्मद्वथ््रथ््रठ्ठद्यत्दृद) की प्रक्रिया काम में लाते हैं ।

अब वापस चला जाए लाल रंग के तरंगों की ओर । उत्सर्जक से जो भी तरंगे निकलेंगी वह १०० या २०० नहीं बल्कि अरबो-करोड़ों की संख्या में होंगी और कलासिकल फिजिक्स की मान्यता के अनुसार उनकी ऊर्जा का मान शून्य से लेकर अनन्त तक कुछ भी हो सकता है । यदि हम मानें कि ??? तरंगों की ऊर्जा ??? है, ???? तरंगों की ऊर्जा ???? है ---- तो कुल तरंगों की संख्या होगी ??????? और कुल ऊर्जा होगी ???????

जहां ???????? का मान शून्य से अनन्त के बीच कुछ भी हो सकता है ।
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8 comments:

अनुनाद सिंह said...

लेख बहुत उपयोगी है। किन्तु पता नहीं बहुत सी चीजें इसमें से गायब या भ्रष्ट कैसे हैं। भारतीय भाषाओं में ऐसे लेखों की बहुत आवश्यकता है।

viksa.blog said...

very intresting article

Acharya Harish said...

Respected Mam !

You are really written useful articles. I am also having a blog where I have written some articles on Indian scriptures. Please also have some moments on it . this is http://shrimadbhagwadgeeta.blogspot.com/

jaydeep said...

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please improve it and do better

Unknown said...

thank for this use full article thank you very much

GAURAV PAWAR said...

हमारे वेदों में इससे अच्छी जानकारी है श्रीमान

Lovekush yadav said...

Thanks

Unknown said...

Sir are you a scientist