Saturday, April 21, 2007

अनुक्रम तथा परमाणु - जिसे टूटना नहीं था

परमाणु - जिसे टूटना नहीं था


पुराने कवियों ने कहा है -'अथातो ब्रहा जिज्ञासा '। जिज्ञासा करना, प्रश्न पूछना, नये-नये सिद्धांत ढूंढना, नये देश, नई बातें खोज निकालना, मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है । इसी खोजबीन की प्रवृत्त्िा ने उसे आज यहां तक ला पहुंचाया है जहां से वह समुद्र तल में या चांद पर जा सकता है, सितारों की खबर रख सकता है ।
हजारों शताब्दियां पहले से ही यह खोजबीन शुरू हुई कि संसार कैसे बना है । लोगों ने देखा कि हर बड़ी वस्तु छोटी-छोटी कई वस्तुओं से बनी है । ईटों से मकान बना है, धागे से कपड़ा बनता है और बूंद बूंद से सागर बनता है ।

चीनी का एक बड़ा सा ढेला तुम तोड़ो तो चीनी के छोटे-छोटे टुकड़े मिलेंगे । उन्हें और अधिक तोड़ो तो और छोटे कण मिलेंगे जिन्हें हम चक्की में पीसकर या हथोड़े से पीटकर भी नहीं तोड़ सकते । लेकिन प्रकृति के पास कुछ और भी तरीके हैं उन्हें तोड़ने के । मसलन पानी में घोलना । तब टूटकर वह कण इतना छोटा हो जायेगा कि तुम उसे आँख से देख भी नहीं सकते, खुर्दबीन (माइक्रोस्कोप) से भी नहीं । फिर भी उसे चीनी ही कहेंगे । क्योंकि वह चीनी की तरह मीठा और हर बात में चीनी के समान ही होता है ।

यह बात जब समझ में आई तो प्राचीन काल के वैज्ञानिकों ने सोचना शुरू किया । क्या वह टूटने का क्रम अनन्त रूप से चलता रहेगा या कोई ऐसी भी स्थिति होगी जिसके आगे किसी छोटे टुकड़े को विभाजित नहीं किया जा सकता है ?

हमारे पुराने ग्रंथों में कणाद ऋषि की चर्चा आती है । उनका कहना था कि संसार के हर पदार्थ के अपने-अपने छोटे-छोटे कण होते हैं । उनका विभाजन नहीं हो सकता । ग्रीस में भी एपिक्युरस, डेमोक्रिटस्‌ आदि विद्वानों ने यही मत दोहराया था ।

तुम उस जमाने में होते तो अगला प्रश्न क्या पूछते ? यही कि आखिर कितने प्रकार के कण होते हैं? यदि हर अलग अलग पदार्थ का अलग अलग कण होता है तब तो गिनती बहुत बढ़ जायगी । कैसे उन्हें गिना जा सकेगा? कैसे उन्हें पहचाना जा सकेगा ? किसी ने कहा कि सारे कण एक ही प्रकार के होते हैं। जब वह अलग अलग संख्या में इकठ्ठे होते है तो अलग अलग पदार्थ बनते हैं । पर यह बात भी लोगों को जँची नहीं। क्यों कि उस जमाने में भी उन्हें यह पता था कि सरलता ही विज्ञान का पहला नियम है । तब एक ग्रीक विद्वान एम्पीडोकल्स ने कहा कि सारे पदार्थ चार वस्तुओं से बने हैं । हवा, पानी, मिटटी और आग । इन चारों को मूलतत्व या तत्व कहा गया । उसने कहा कि इनमें से हरेक के अलग अलग कण होते हैं उन्हे अलग अलग अनुपात में मिलाने से बाकी सारे पदार्थ बनते हैं। उससे पहले हमारे देश के विद्वानों ने पांच तत्व बताये, हवा, पानी, मिटटी ,आग और आकाश । तुमने वह छन्द पढ़ा होगा -

' क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा
पंच रचित यह अधम सरीरा। '
अब जादूगारों की बारी आई । उन्होंने सोचा कि यदि लोहा भी इन्हीं पांच 'तत्वों' से बना है और सोना भी, तब तो लोहे को सोने में बदलना कुछ मुश्किल नहीं होना चाहिये । तुमने ऐसी कई कहानियाँ पढ़ी होंगी । पारसमणि की कहानी भी ऐसी ही एक कहानी है । पर यह सब कहानियाँ ही है। कोई भी जादूगार लोहे से सोना नही बना सका। फिर भी पदार्थ, मूलतत्व और कण का संबंध तय हो ही गया। पाँचों मूलतत्व के अपने अपने कण होंगे और वे अलग अलग अनुपात में मिलेंगे तो बाकी पदार्थ बनेंगे।
धीरे धीरे लोगों ने यह सोचना शुरु किया कि शायद यह संसार पांच से अधिक तत्वों से बना है। उन्होंने यह भी सोचा कि हो न हो लोहा, सोना इत्यादि वस्तुओं से ही मिटटी, पानी आदि बने हैं। लेकिन किमियागर (अल्केमिस्ट) कहलानेवाले कुछ लोग अब भी पुरानी पांच तत्वों वाली धारणा को मानते थे और घंटो प्रयोगशाला में बैठकर लोहे को सोना बनाने के उपाय ढूँढ़ा करते थे। अन्त में जब सन १७६६ में लावाजिये ने हायड्रोजन ओर ऑक्सीजन गैसों को मिलाकर पानी बनाया तो यह धारणा टूट गई। वैज्ञानिको ने निर्विवाद स्वीकार किया कि मिट्टी आदि स्वतः मूलतत्व नहीं है । उन्होनें नये सिरे से मूलतत्वों की सूची बनानी शुरु की जिसमे संसार को बनानेवाले तत्वों को बहुत सोच सोच कर और छानबीन कर शामिल किया गया । इनमे से कुछ नाम तुम रोज सुनते होगे। जैसे लोहा, तांबा, सोना, चांदी, आयोडिन (दवाई का टिंक्चर आयोडिन नही।) ऑक्सीजन, नाईट्रोजन, यूरेनियम इत्यादि । कुछ नाम तुम्हारे लिये बहुत अजनबी होंगे जैसे स्कॅन्डियम, मॉलिबडेनम इत्यादि । पर यह तत्व उन दिनों में भी वैज्ञानिको को मालूम थे और उनकी जोरदार खोज हुआ करती थी । तब तक पदार्थो को छोटे छोटे टुकड़ो में तोडने के उपाय भी मालूम हो गये थे, जैसे भाप बनाना । वैसे तत्वों की खोज अभी भी जारी है । आजतक वैज्ञानिकों की लिस्ट में करीब १०२ तत्व हैं ।

यानी संसार की सभी वस्तुएँ १०२ तत्वों से बनी है (जैसा कि हम लोग अबतक की खोज के आधार पर जानते है।) १९११ से पहले जब तक लोग मानते थे कि परमाणु को तोड़ा नही जा सकता तब तक इन नये तत्वों की बड़ी धूम थी। क्योंकि वैज्ञानिकों का यह विश्र्वास था की इन खोजों से ही परमाणु के गुणो का सही सही पता चल सकेता है । पर अभी थोड़ी देर के लिये यही मान लो कि परमाणू को तोड़ा नहीं जा सकता और कोई भी वैज्ञानिक नये तत्व की खोज नही करेगा। (तुम सोच रहे होगे कि यह परमाणु कंहा से आया ?)

हाँ, तो संसार की सभी वस्तुएॅ १०२ तत्वों से बनी है। अब वही पुरानी पांच तत्वों वाली बात याद करो कि हर तत्व के अपने अपने अलग अलग छोटे कण है जिन्हे तोड़ा नही जा सकता । इन्ही कणों को अब हम परमाणु कहते है। अर्थात्‌ इन तत्वों के परमाणु अलग अलग संख्या में आपस में मिलकर अलग अलग पदार्थ बनाते है ।

जैसे नमक को लो । यह पदार्थ दो तत्वों से बना है । सोडियम और क्लोरिन । सोडियम का एक परमाणु और क्लोरिन का एक परमाणु मिलकर नमक का एक बहुत छोटा सा कण बनाते हैं । इस कण को नमक का अणु कहते हैं । सोडियम के कई परमाणुओं का ढेर लगाने पर तुम्हें सोडियम का एक टुकड़ा मिलेगा (इतना बड़ा जिसे आंख से देख सको ) इसी प्रकार नमक के कई अणुओं का ढेर लगाने पर नमक का एक टुकड़ा देखने को मिलेगा ।

नमक के अणु को अणु क्यों कहा जाए ? इसे नमक का परमाणु भी तो कह सकते हैं । बात यह है कि नमक एक तत्व नहीं है, बल्कि दो तत्वों से बना एक पदार्थ है । इसका एक अणु तोड़ने पर दो परमाणु मिलेंगे । नमक के अणु में सारे गुण नमक के समान होंगे लेकिन उसे तोड़ने पर सोडियम या क्लोरिन के परमाणु में नमक के गुण नहीं होंगे । अणु कहने से यह झलकता है कि वह दो या अधिक परमाणुओं से बना है ।
अणु किसी पदार्थ का वह सबसे छोटा टुकड़ा है जिसमें उस पदार्थ के सारे गुण हों और जिसे तोड़ने पर उसमें उस पदार्थ के गुण नहीं रहे । यही कण है जिसकी चर्चा कणाद ऋषि ने की थी । परमाणु किसी तत्व का वह सबसे छोटा टुकड़ा है जिसे और अधिक नहीं तोड़ सकते । (यानी १९११ के पहले)

सन्‌ १८१५ में प्राउट ने यह खोज की कि जब दो पदार्थों को आपस में मिलाने पर रासायनिक प्रतिक्रिया
होती है तो यह प्रतिक्रिया दो अणुओं के बीच नहीं होती बल्कि सभी अणु अपने-अपने परमाणुओं में टूट जाते हैं और प्रतिक्रिया दो परमाणुओं के बीच होती है । अणु और परमाणु के बीच यह भी एक महत्वपूर्ण अन्तर है ।

तुम अंदाज लगा सकते हो कि एक परमाणु का आकार कितना बड़ा है । इंजेक्शन लगाने वाली सिरिंज में साधारणतः २ घन सेंटीमीटर (सी.सी.) पानी अटता है । इस सिरिंज को (यानी २ सी.सी. को) ऑक्सीजन से भरने के लिए ऑक्सीजन के करीब-करीब १,३०,००,,००,००,००,००,००,००,००,००० परमाणुओं की जरूरत पड़ेगी । गणित की भाषा में इस संख्या को इस तरह लिखते हैं ????? परमाणु । (१० का अर्थ है १० के आगे २ शून्य बैठाओ यानी १०० (१० का अर्थ है १००० इत्यादि) छोटा अणु साधारणतः दो चार परमाणुओं से बनता है । जैसे पानी के अणु में कुल तीन परमाणु होते हैं । ऑक्सीजन का 1 और हाईड्रोजन के २ चीनी का अणु बनता है । चीनी के एक अणु में ४५ परमाणु होते हैं । १२ कार्बन के २२ हाइड्रोजन के और ११ ऑक्सीजन के । लेकिन एक बात जाहिर है । कोई अणु चाहे १००० परमाणुओं से ही क्यों न बने, उस पदार्थ के एक छोटे से टुकड़े को बनाने के लिए ताकि तुम उस पदार्थ को देख सको, अरबों, करोड़ों की तादात में अणुओं की जरूरत होगी । इन अणुओं को तुम देख भी नहीं सकते कि उन्हें गिन सको । जरा सोचो उन वैज्ञानिकों की बुद्धि को जिन्होंने इसे भी गिनने का उपाय खोज ही लिया । ऐसे वैज्ञानिकों में डाल्टन, ऍवेगाड्रो, माईकेल फैरेडे इत्यादि प्रमुख है ।

अगला सवाल कि वह सारे अणु इकठ्ठे क्यों रहते हैं ? बात यह है कि जब किसी पदार्थ के दो अणु इकठ्ठे आते हैं तो मानो हाथ में हाथ डालकर चलने लगते हैं । (यह न सोचना कि अणुओं के हाथ होते हैं) तीसरा अणु उनके पास आ जाए तो वह भी साथ मिल जाता है । इस प्रकार एक झुंड सा बन जाता है । लेकिन झुंड कितना भी बड़ा क्यों न हो, दो अणुओं के बीच कुछ न कुछ अन्तर हमेशा रह जाता है । पदार्थों का ठोस द्रव या गैस होना उनके अणुओं के अन्तर पर निर्भर है । अन्तर कम हो तो पदार्थ ठोस रहता है । अधिक हो तो द्रव बन जाता है, और भी अधिक हो तो गैस बनता है । अणुओं के अन्तर को बढ़ाने का सबसे आसान उपाय है गरम करना । इसीलिए बरफ को गरम करने से पानी बनता है और पानी को गरम करने से भाप ।

अणुओं के बीच अन्तर यदि कम हो तो एक बड़े झुंड में दूसरा झुंड आसानी से नहीं चिपकाया जा सकता । जैसा कि ठोस पदार्थों में होता है । लीेकिन पानी के अणुओं में अन्तर अधिक है इसलिए एक बाल्टी पानी में एक लोटा पानी आराम से मिलाया जा सकता है । बर्फ के बड़े टुकड़े में से छोटा टुकड़ा निकालने के लिए उसे तोड़ना पड़ता है ।

एक पदार्थ के अणु दूसरे पदार्थ के अणुओं को भी अपनी और खींच सकते हैं । इसी खिचाव के कारण शीशे पर पानी की बूंद चिपकती है ।

द्रव पदार्थों के अणुओं में एक और शक्ति होती है । वह दूसरे अणुओं के झुंड को तोड़ सकते हैं । जब हम पानी में चीनी घोलते हैं तब असल में यह होता है कि चीनी के जो अणु पहले इकठ्ठे थे वह पानी की इस शक्ति के कारण अब अलग-अलग हो जाते हैं और पानी के दो अणुओं के बीच जो खाली जगह है उसमें घुसकर बैठ जाते हैं । इसी कारण पानी में चीनी घोलने से उसका आयतन नहीं बढ़ता । जिस पदार्थ के अणुओं को पानी अलग नहीं कर सकता वह पदार्थ पानी में नहीं घुलेगा । जैसे लकड़ी ।
दो अणुओं को एक दूसरे से अलग करना इतना मुश्किल नहीं है जितना एक अणु को तोड़कर उसके परमाणुओं को अलग करना । किसी तत्व के दो परमाणु आपस में मिलकर उसी तत्व का एक अणु बनाते है । गैसो में प्रायः ऐसा होता है । जैसे हाईड्रोजन, ऑक्सीजन, नाईट्रोजन इत्यादि में ।

हर एक परमाणु दूसरे हर तत्व के परमणु को आकर्षित कर सकता हो यह बात नहीं । किन्हीं दो तत्वों के परमाणु आपस में अधिक तेजी से जुड़ते हैं । किसी के कम तेजी से । यह बहुत बड़ा सवाल था, कि ऐसा क्यों होता है और इसका उत्तर जानने के लिए वैज्ञानिकों को बहुत प्रतीक्षा करनी पड़ी ।

यदि तुम १८९६ के पहले के जमाने में प्रोफेसर होते और परमाणु पर भाषण देने जाते तो तुम्हारा भाषण कुछ इस प्रकार का होता है :-
हर तत्व के अपने-अपने परमाणु होते है । परमाणुओं को तोड़ा नहीं जा सकता । एक तत्व के सभी परमाणु आपस में बिलकुल समान होते है और अलग-अलग तत्वों के परमाणु अलग-अलग दो या अधिक परमाणु मिलकर एक अणु बनाते है ।
अलग-अलग तत्वों के परमाणुओं की रासायनिक क्रियाशक्ति (दूसरे तत्वों के साथ प्रतिक्रिया करने की क्षमता) अलग-अलग होती है । एक तत्व के परमाणु का वजन दूसरे तत्व के परमाणु के वजन से अलग होता है । यह बातें सबसे पहले डाल्टन ने एक साथ बताई इसलिए इन्हें डॉल्टन का सिद्धांत या डाल्टन का परमाणुवाद कहा जाता है ।
यह परमाणु का वजन (परमाणु-भार) भी अजीब चीज है । एक परमाणु जिसे देखा भी नहीं जा सके उसे तोला कैसा जा सकता है ? लेकिन वैज्ञानिकों ने उसके भी उपाय ढूंढ ही लिये और देखा कि हाइड्रोजन का परमाणु सबसे हल्का होता है । इन वजनों के लिए एक अलग इकाई बनी जिसे कहते है एटामिक यूनिट । हाइड्रोजन के एक परमाणु का भार एक एक एटमिक यूनिट के बराबर होता है । एक एटमिक यूनिट एक ग्राम का करीब ???वां हिस्सा होता है ।

यह सिद्धांत एक बार तय हो जाने पर तो अलग-अलग पदार्थों के परमाणु भार निकालना उनके रासायनिक सूत्र निश्च्िात करना इत्यादि बहुत सरल हो गया । जिन वैज्ञानिकों ने यह प्रयोग किए । (पुठील पानावरून) उनमें बॉयल डॉल्टन विक्टर मेयर आदि प्रमुख है । परमाणु भार जानकर ही हम तत्वों की अलग-अलग पहचान कर सकते हैं ।

लाहाजिये के प्रयोग में यह बताया कि पानी की रचना हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन के मिलाने से हुई है । अतः डाल्टन ने जिसका कहना था कि प्रत्येक तत्व के परमाणु एक-दूसरे से भिन्न-भिन्न होते हैं, पानी का formula बनाया -
- अ ग््र उ -ग््र

डाल्टन ने यह स्वीकार किया कि पानी एक अणु में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के एक-एक ही परमाणु हो यह आवश्यक नहीं है परन्तु कितने परमाणु हैं यह जानना डाल्टन के लिए संभव नहीं हो पाया । १८१३ में अवोगाड्रो ने इस समस्या का समाधान लिया । अवोगाड्रो के नियम के अनुसार समान तापक्रम एवं समान दबाव पर समान आयतन में गैसों के समान अणु पाये जाते हैं । अब लाहाजिये के प्रयोगों से यह पाया गया कि पानी के बनने के समय २ ग्राम हाइड्रोजन और १६ ग्राम ऑक्सीजन मिलकर १८ ग्राम पानी बनता है । अवोगाड्रो के सिद्धान्त से अगला निष्कर्ष यह निकलेगा कि किसी भी गैस के 1 ग्राम अणु-भार में स्थित अणुओं की संख्या समान होती है । अब चूंकि पानी का ग्राम अणु भार १८ है । ऑक्सीजन का १६ और हाइड्रोजन का 1, अतः यह जाहिर है कि पानी के बनने में जिनमें अणु या परमाणु ऑक्सीजन के चाहिए उससे दुगुने अणु या परमाणु हाइड्रोजन के चाहिए । अतः डाल्टन का सूत्र बदलकर पानी का सूत्र इस प्रकार लिखा जाएगा -

फार्मूला
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अनुक्रम

परमाणु जिसे टूटना नही था
एक ही तवेकी रोटियाँ
किरण, किरण, किरण
इलेक्ट्रॉन की खोज तक
इलेक्ट्रॉन  और क्ष किरणें -- 1
इलेक्ट्रॉन  और क्ष किरणें -- 2
1898 -- 1908 रुदरफोर्ड की प्रयोगशाला में
यह पन्ने मेरी क्यूरी के नाम
परमाणुकी संरचना
क्वांटम सिद्धांत का आरंभ

























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