संगणक है अकाउंट क्लर्क
पैसेका हिसाब सबको रखना पडता है। कितना खर्च हुआ और कितनी आमदनी हुई, किस कामपर खर्च हुआ और कहाँसे आय आ रही है इत्यादि । अकाउण्टिंग इतना बडा शास्त्र है कि इसे सीखनेके लिये चार वर्षका पूरा कोर्स ही है -- बीकॉम का।
संगणक म्हणजे अकाउंट क्लार्क
(पुस्तकाप्रमाणे तपासले -done)
पैशाचे हिशोब ठेवणे आपल्याला नेहमीच गरजेचे असते. किती खर्च केला आणि किती आवक झाली. कुठे खर्च केला आणि कुठून आवक झाली.
एका माणसाने त्याचा एका दिवसाचा हिशोब असा लिहिला ---
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अकाउंटिंग पढनेवाले लोग जानते हैं कि अकाउंटिंगके दो प्रमुख सूत्र हैं डबल एण्ट्री और लेजर। डबल एण्ट्रीका सूत्र कहता है कि प्रत्येक व्यवहार स्वतंत्ररूपसे दो जगह और दो अलग पद्धतियोंमें लिखा जायगा ।
यदि पैसे देकर सामान खरीदा तो पैसेबाबत (कॅश) रजिस्टरमें खर्चा लिखा जायगा, लेकिन स्टॉक रजिस्टरमें उतने सामानकी बढोतरी पैसे और वस्तू दोनों स्वरूपोंमें लिखी जायगी। इसके विपरीत
सामान बेचकर पैसे मिलें तो कॅश रजिस्टरमें आवक लेकिन स्टॉक रजिस्टरमें निर्गत लिखा जायगा।
बँकसे पैसे निकालो तो कॅश रजिस्टरमें आमद लेकिन बँक-व्यवहारके रजिस्टरमें खर्च दिखेगा, इसके विपरीत बँकेमें पैसे जमा करनेपर कॅश रजिस्टरमें खर्च और बँक रजिस्टरमें आमद लिखी जायगी।
दिनभरकी सारी आमद रकमोंका और सारी खर्च रकमोंका अलग-अलग जोड लगाते हैं। दोनोंका मेल बैठे तो हिसाब ठीक लिखा गया। मेल नही बैठे तो हर लिखे गये व्यवहारकी जाँचपडताल कर गलती ढूँढनी पडेगी।
एका सरल औऱ आदर्श हिसाब-चोपडीका पन्ना ऐसा दिखेगा ----
बाँई ओर आमदनीका पन्ना ----
तारीख, अनुक्रमांक, कारण व वर्णन, आमदका प्रकार, आमदनी, बँकका नाम,
स्टॉक-रजिस्टरका पन्ना, कॅश, बँक, स्टॉक, टोटल
दाईं ओर खर्चका पन्ना ----
तारीख, अनुक्रमांक, कारण व वर्णन, खर्चका प्रकार, खर्च, बँकका नाम,
स्टॉक-रजिस्टरका पन्ना, कॅश, बँक, स्टॉक, टोटल
दूसरा सिद्धांत है लेजरका। हमारे पास आने-जानेवाला सामान अलग-अलग प्रकारका होता है। सरलसी घरकी खरीदारी भी देखो तो गेहूँ, चावल, चीनी, साबुन, तेल, गॅस, आदि कई तरहके सामान हैं। कार्यालयमें भी बिजली, पानी, पेट्रोल, स्टेशनरी, वेतन, आदि कई प्रकारके मुद्दोंपर खर्च हैं। लेकिन जमा-खर्चके चोपडेमें सबके लिये एक ही शब्द होता है -- स्टॉक । इसीलिये अलग लेजर रजिस्टर रखा जाता है जिसमें एक मुद्दे के लिये कुछ पन्ने छोडे जाते हैं। इस रजिस्टरकी एण्ट्री ऐसी दिखेंगी --
स्टॉक-वर्णन
आया गया
तारीख, OB, नई आवक, टोटल(CB) OB, नई जावक, टोटल(CB)
कॅश रजिस्टर तारीखवार लिखा जाता है। लेजर उस-उस सामानके घटने-बढनेके अनुसार लिखा जाता है और महीनेके अंतमे हर सामानका हिसाब करनेपर उस महीनेके कुल कामका अंदाजा लिया जा सकता है।
यदि अकौंट (हिसाब) सही रखना हो तो अकाउंट क्लर्कको यह सब लिखना पडता है। तुमने नोट किया होगा कि एक व्यवहार पर अकाउंट क्लार्कको चार जगह एण्ट्री लेनी पडती है।
लेकिन संगणकपर गाणिती काम करनेवाला सॉफटवेअर अर्थात मायक्रोसॉफट एक्सेल या कोई अन्य स्प्रेडशीट लेकर संगणकपरही रजिस्टर लिखनेसे सॉर्ट की सुविधाके कारण लेजर रजिस्टर अपनेआप तैयार हो जाता है ।
अनुक्रमांक, कारण व वर्णन, रकम, आवक या जावक, कॅश बँक या स्टॉक, सामानाचे स्वरुप
1 2 3 4 5 6
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१
२
३
४
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कुल
इस रजिस्टरमें दिनभर घटनेवाले व्यवहारोंकी एण्ट्री की जायगी। दिनके अंतमें संगणकसे कहा जायगा कि सारी एण्ट्रीजको सॉर्ट करो - पहले स्तंभ 4 के अनुसार, उसके अंतर्गत स्तंभ 5 के अनुसार और उसके अंतर्गत स्तंभ 6 के अनुसार.
यह सूचना पानेके बाद संगणक सारी आवक एण्ट्रीजको अलग करेगा -- हमें केवल उनका प्रिंट आउट लेकर कॅश रजिस्टरके बायें पन्नेपर चिपकाना है। इसी प्रकार जावक एण्ट्रीज भी अलग निकलती हैं जिनका प्रिंट आउट दायें पन्नेपर चिपकाना है।
सारी आवक एण्ट्रीज सॉर्ट करते हुए संगणक सभी कॅश एण्ट्रीज एकसाथ, बँक एण्ट्रीज एकसाथ और स्टॉक एण्ट्रीज एकसाथ -- इस प्रकारसे सॉर्टिंग करता है। उन्हेंभी बँकके नामसे या स्टॉकके स्वरूपके अनुसार एकत्रित किया जा सकता है। उनका प्रिंट आउट लेकर लेजर रजिस्टरपर चिपकाया जा सकता है। यही क्रम जावक रजिस्टरके साथ भी दुहराया जाता है। इस प्रकार थोडीही एण्ट्रीजके लिखनेपरभी संगणककी सॉर्टिंगकी सुविधाके कारण कॅश रजिस्टर तथा लेजर रजिस्टरकी एण्ट्रीज पूरी हो जाती हैं।
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जिन कार्यालयोंमें अभीभी कागज-रजिस्टर-हार्डकॉपी ही सरल और जानीपहचानीसी लगती है वहाँ कॅश रजिस्टर और लेजरको पूर्णरूपसे बंद नही करते, लेकिन ऊपर बताये तरीकेसे सारी एण्ट्रीजको संगणकपर लेकर, सॉर्टिंगकी सुविधासे रजिस्टरकी पध्दतीसे प्रिंट लेकर रजिस्टर तैयार कर लेते हैं। लेकिन जो प्रगत कार्यालय हैं वहाँ इन कागजी रजिस्टरोंको पूरी तरहसे बंद कर सारे व्यवहार संगणकपर ही रखे जाते हैं।
ऊपर जो सरलसा उदाहरण बताया वह किसी छोटे व्यापारमें होनेवाले जमाखर्च और उसका ब्यौरा रखनेवाले अकाउंट क्लार्ककी सुविधा के लिये है। उनके सामान और व्यापारका विवरणभी बदलता रहता है। सरकारी कार्यालयोंमें अकाउंट रजिस्टर्स अलग तरीकेसे होते हैं फिर भी मूल संकल्पना वही लागू है -- कि जो भी आँकडें हैं, उन्हे सारणीके सॉफ्टवेअर पर लिखो ताकि सॉर्टिंगकी सुविधासे उनकी पुनर्रचना एवं गणितीय व्यवहार सुगम हों। साथही सरकारी कामकाजमें विवरण प्रायः वही रहता है।किसीभी टिपिकल सरकारी कार्यालयके अकाउंट क्लार्कके सबसे सरखपाऊ काम हैं वेतन-बिल, ट्रेझरीको भेजे जानेवाले अन्य बिल औप उनका व्यवस्थापन. यह काम संगणकद्वारा सरल हो जाता है।
वेतन-बिलमें कई विवरण होते हैं जैसे :-
वेतन (substative pay), छुट्टी-वेतन (leave pay), डी.ए. एरियर्स (महँगाई भत्तेके एरियर्स), HRA, CLA, Transport Allowance, इत्यादि. इनके अलावा deduction के ब्यौरेमें GPF, GIS, HR allowances, इत्यादी विवरण होते हैं। वे कई वर्षोंतक कायम रहते हैं। संगणक सारणी बनाते समय इस बातका फायदा उठाया जाता है। वेतन-बिल हर महिने बनाना पडता हे। इसलिये यह काम तीन जगह विभाजित किया जाता है। एक जगह मास्टर फाईलमें मास्टर-डेटा-बेस एकत्रित किया जाता है - जैसे प्रत्येक कर्मचारीकी जानकारी. महाराष्ट्र के मंत्रालयका उदाहरण देखें तो वहाँ कुल 18 मुद्दोंपर हर कर्मचारीकी जानकारी है -- उसका नमूना इस भागके अंतमें है।
दूसरी जगह सारे नियमोंका विचार कर तैयार किये गये गणितीय सूत्र लिखकर उनके अनुसार संगणकसे गणित करवानेके लिये आवश्यक सॉफ्टवेअर संगणककी भाषामें लिखकर रखे जाते हैं। जैसे -- सूत्र लिखा गया कि HRA = बेसिक + ग्रेडपे का 30 प्रतिशत। या दूसरा सूत्र हुआ -- अमुक स्लॅबका ट्रान्सपोर्ट अलावंस अमुक है । ये सारे सूत्र संगणकको उसकी भाषामें सिखाये जाते हैं ताकि ये गणितीय सूत्र लागू कर वेतन-बिलोंका पूरा गणित संगणक खुद कर सके।
ये दोनों काम किसी एक्सपर्ट ग्रुपको सौंपे जाते हैं। मास्टर डाटा या सूत्रोंकी फाईलोंमें कोई बारबार हेरफेर न कर सके इसलिये भी ये आवश्यक है।
तिसरी जगह है प्रत्यक्ष वेतन-बिल बनानेवाला क्लार्क। प्रत्येक महिनेमें कौन किस पदपर था उसकी छुट्टियाँ कितनी थीं, प्रमोशन या इन्क्रीमेंट थे या नही, ये सारे ब्यौरे दर्ज कर सभी कर्मचारियोंका एकत्रित वेतन-बिल बनाना यही अकाउंट क्लार्कका नियमित काम है। इस काममें आँकडोंकी बडी माथापच्ची करनी पडती है । लेकिन अब बात अलग है। अकाउंट क्लार्क कर्मचारियोंके उस उस महीने से संबंधित सारे ब्यौरे चढाकर संगणगसे कहता है कि अधिक जानकारी तुम मास्टर फाइलसे उठाओ और फिर सूत्रोंकी फाइलसे सूत्र देखकर हिसाब करो और अन्तिम आँकडे मेरे स्तंभमें लिख दो।
मंत्रालयके एक टिपिकल विभागकी मास्टर फाइल और वेतन- बिलका पन्ना नमूने के लिये यहाँ दिये हैं।
यह व्यवस्था हुई वेतन-बिल तैयार करनेकी। लेकिन मंत्रालयका ही उदाहरण आगे खींचते हैं। बिल तैयार करनेवाले विभागके साथ साथ अन्य दो विभागभी इस काममें शामिल हैं -- प्रत्यक्षतः पे ऍण्ड अकाउंट्स ऑफिस और अप्रत्यक्षतः वित्त विभाग।
वित्त विभागकी ओरसे प्रत्येक विभागके लिये एक वार्षिक खर्चकी मर्यादा निश्चित की जाती है। इसे अप्रोप्रिएशन बजेट कहते हैं। इस उपलब्ध रकमसे किस किस मुद्देपर क्या क्या खर्च किस क्रमसे हुआ इसकी जानकारी संबंधित विभागके एक अप्रोप्रिएशन बिल रजिस्टरमें लिखी जाती है।अकाउंट क्लार्क पहले इसेभी स्वत:ही हिसाब लगाकर हाथसे लिखते थे (अब भी लिखते हैं। ) इस रजिस्टरमें निम्न पद्धतिसे मासिक सारांश लिखा जाता है--
पगार बिल, प्रवास भत्ता बिल, मेडिकल बिल, ऑफिस खर्चका बिल, अग्रिम देयकोंका बिल इत्यादि. (एक प्रकारसे यह भी लेजर की तरह है।)
यही जानकारी वित्त विभागका क्लर्क अपने रजिस्टरमें अलगसे रखता है। फिर दोनोंकी जानकारीमें अंतर होनेपर हरेक फाईल दस बार इधरसे उधर घूमेगी। ये सारी परेशानियाँ रोकनेके लिये अब वित्त विभागामें प्रत्येक विभागकी जानकारी संगणकपर निम्नलिखित रूपसे तैयार करते हैं ताकि कालांतरमें दो जगह रजिस्टर लिखनेकी त्रासदी कम होगी और जानकारीमें मेल रहेगा। अभी यह पध्दति पूरी लागू नही है क्योंकि केवल वित्त विभागके ही रजिस्टर संगणकपर चढाना आरंभ हुआ है, जबकि अन्य विभाग अभीभी हस्तलिखित और स्वयं गणित करके रजिस्टर लिख रहे हैं। दोनोंकी सिस्टमोंमें एकवाक्यता होकर सिध्द होना कि सारे दोष मिट गये हैं, इसके लिये अभी कुछ कालावधी चाहिये।
जिन प्रगत कार्यालयोंमें इस प्रकारसे संगणकीय पध्दत सिध्द व प्रस्थापित हो जाती है वहाँ इन सारणियोंके अंतमें एक वाक्य लिखा जाता है --
This is a computer generated document - hence no signature is needed.
लेकिन मंत्रालयमें (या किसी भी सरकारी कार्यालयमें) चूँकि यह अभी सिद्ध हो रही है इसलिये शायद यह लिखना पडेगा --
This is a computer generated document - hence signature is a must.
कोई इसे जोक कह सकता है लेकिन जबतक वरिष्ठ अधिकारी स्वयं तसल्ली नही कर लेते तबतक यह सावधानी रखना उचित है।
तैयार बिलोंकी जाँच-पडताल और प्रत्यक्ष पेमेंटका काम पे ऍण्ड अकाउंट ऑफिस करता है। उनके पास आनेवाले हर बिलपर एक टोकन नंबर दिया जाता है। किसी विभागसे आये बिल और अदा की हूई अथवा किसी शक के कारण वापस किये बिलोंमें मेल रखनेके लिये यही पुराने समयसे चली आ रही पध्दति है। अब इन टोकन नंबरोंके आधारसे संगणकपर सारणी बनाकर रखनेसे एक ओर अकाउंट क्लर्कका काम कम हो गया तो दुसरी ओर पे ऍण्ड अकाउंटके टोकन सारणीसे वित्त विभागके पास जानकारी पहुँचती है और उनके अप्रोप्रिएशन रजिस्टरमें उस विभागके विषयमें अपनेआप एण्ट्री हो जाती है । इस त्रिस्थली यात्राके कारण प्रत्येक बिलका रेकॉर्ड खुद विभागमें रहता है और पे ऍण्ड अकाऊंट्सरूपी दूसरे रास्तेसे वित्त विभाग के पास पहँचता है। इस प्रकार जाँच-पडताल सरल परन्तु निःसंदेह सही होती है।
अब तो देशभरमें सभी जिलोंमें ट्रेझरी ऑफिसका कामभी इसी तरहसे संगणकपर डाला जा रहा है। इस प्रकार संगणककी सारणी-लेखनकी सुविधासे हर स्तरपर अकाऊंट क्लर्कका काम सरल और संक्षिप्त हो जाता है। हर वर्षके अंतमें हिसाबका मेल बैठानेके लिये स्टाफके कई क्लर्कोंका जो काफी समय खर्च होता रहता है वह बच सकता है। यद्यपि कई कार्यालयोंमें यह प्रक्रिया पूर्णरूपेण सिध्द और प्रस्थापित नही हुई है फिर भी जूतक कदम उस दिशामें बढते रहेंगे तबतक प्रगति का मार्ग प्रशस्त है।
छोटे व्यापारी,छोटी कंपनियाँ भी इसी प्रकारसे हर महीने अपने वेतन-बिल और अन्य हिसाब-किताब रखनेवाले टॅली अथवा तत्सम अन्य सॉफटवेअर का प्रयोग करते हैं जो सारणि-सिद्धांतपर आधारित हैं।
इन सबोंसे आर्थिक व्यवहारोंमें काफी सरलता आ गई है। यहाँ तक कि शेअर बाजारोंके लिये सरकारने खूदही नियम कर दिया कि बडी कंपनियोंके शेअरके खरीद-विक्रीके सभी व्यवहार संगणकके मार्फतही किये जायेंगे। इसके लिये डीमॅटकी सुविधाको कंपल्सरी कर दिया।
सारांश यही कि हर प्रबुद्ध अकाउंट क्लर्कको सीख लेना चाहिये कि कैसे संगणकको ही अकाउंट क्लर्क बनाकर उससे काम करवायें।
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Monday, May 14, 2012
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