Monday, June 4, 2012

28. संगणक है टेलीश़पिंग -हो

28. संगणक है टेलीश़पिंग


      सामान्य व्यवहार में संगणक आ जाने के बाद  टेलीशॉपिंगकी एक नई संस्कृति आ गई है। इसका विचार हम विक्रेता और उपभोक्ता दोनोंकी दृष्टिसे कर सकते हैं।


       विक्रेता अपने दुकानकी वेबसाइटपर अपने सामान की जानकारी रखता है। यदि उसे एक ही वस्तु बेचनी हो तब भी चलेगा -जैसे कोई दुर्लभ पुस्तक य़ा पुरानी साइकिल। ग्राहक भी इंटरनेटपर अपनी आवश्यकता की वस्तुओंकी खोज लेता है, उसे अलग-अलग विक्रेताओंकी जानकारी मिलती है ।कीमत भी  उसीमेंसे वह कोई विक्रेता चुनता है, चाहे तो उससे फोन पर बात भी कर सकता है। फिर वह उस वस्तु के लिये ऑर्डर बुक कर सकता है और पेशगी कीमत भी चुका सकता है। 


      हालमें ही मैंने हॉलैंडमें एक बडी दुकान देखी जहाँ संगणकके स्पेअर पार्ट्स बिकते थे -- सभी प्रमुख शहरोंमें उनकी शाखाएँ थीं। मालकी कीमत दूसरी दुकानोंकी तुलना में तीस प्रतिशत कम और फिर भी गुणवत्ताकी पूरी गॅरंटी। ये कैसे संभव हुआ?

       मैंने देखा कि वहाँ बिकनेवाले हर पार्टकी जानकारी वेबसाइटपर है, लेकिन केवल पढनेभरकी नही -- बल्कि प्रत्येक पार्टकी एक विडियोफिल्म भी वहाँ है। उस फिल्मको ग्राहक अपने घरमें इंटरनेटपर देखता है और खरीदना तय करता है -- कीमत भी अदा करता है जिसकी पावती उसी समय उसीके संगणक पर आ जाती है। फिर जिस समय अपनी सुविधा है वह भी सूचित करता है। उस समय दुकान के काउंटर पर जब अपनी पावती दिखाता है, तो उसकी वस्तू पॅकिंगके साथ वहाँ तैयार मिलती है। इसमें दुकानदारके समयकी पूरी बचत होती है। ग्राहकको पार्ट दिखाना, समझाना इत्यादि के लिये सेल्समन रखनेकी कोई आवश्यकता नही। कॅशियरभी नही चाहिये। पूरी तीन मंजिली दुकान पांच-सात लोग चला रहे थे इसीसे वे दूसरोंकी अपेक्षा अपनी कीमतें सस्ती रख सकते थे। हाँ यह सुविधा जरूर थी कि यदि विडियो देखकर कोई बात समझ नही आये तो आप ईमेलसे पूछ सकते हैं।

      हमारे यहाँ भी कई कृषि-बाजार समितियाँ उनके पास पहुँचनेवाले मालकी थोक कीमतें हर घंटे संगणकपर रखवाती हैं, उनकी वेबसाइटसे यह जानकारी उनके थोक ग्राहकोंको मिलती है और वे संगणकपर ही खरीद-फरोख्त कर लेते हैं।


     क्या इसका फायदा किसानको दिया जा सकता है? हमारे देशका किसान प्रायः गरीब, अल्पभूधारक, असिंचित भूमिपर फसल लेनेवाला, कर्जेके बोझसे लदा, और संगणक-तंत्रसे अनभिज्ञ है। फिरभी ग्राम-पंचायत अगर अपने कार्यक्षेत्रमें ब्रॉडबॅण्डकी दे तो ग्रामीण युवा इसके माध्यमसे छोटा सर्विस-प्रोवाइडर बन सकता है। फिर वह अपने गाँवके किसानोंको अल्पसी फीसपर कई तरह की जानकारी और संगणक-सुविधा मुहैया करा सकता है। यह कोई असंभव कल्पना-क्रीडा नही है। आज जिस प्रकार बडे शहरोंमें BSNL या रिलायन्स या एयरटेल ब्रॉडबॅण्डकी सुविधा देते हैं, उसी प्रकार गाँवोंमें युवाशक्ति के माध्यमसे ग्रामपंचायतके अधीन ब्रॉडबॅण्डकी सुविधा रखवाई जा सकती है। यदि ऐसा हो तो गरीब किसानको बडा लाभ होगा।
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