26 संगणक है ग्रंथालय व्यवस्थापक
यह तो सभी समझते हैं कि यदि ग्रंथालय व्यवस्थापन का काम संगणकके माध्यम से किया जाय तो वह बहुत उपयोगी होगा। ग्रंथालयकी हजारों पुस्तकें, उनका वर्गीकरण -- वह भी विषय-क्रमसे, लेखक-क्रमसे, प्रकाशन-वर्ष के क्रमसे, प्रकाशकके क्रमसे, कीमतके क्रमसे, और दुर्लभता के हिसाबसे भी -- यह सब संगणककी गतिसे और अचूकतासे कौन कर सकता है ।
ग्रंथालयमें प्रमुखतः दो बातोंका लेखाजोखा रखना पडता है -- स्टॉकमें कितनी पुस्तकें हैं और उनका वर्गीकरण -- यह आरंभिक बडा काम जिसे तीनसे पाँच साल में एक बार दुहरा लिया जाता है। दूसरा काम हर दिन का है -- कोनली पुस्तक किस सदस्यको दी, कब दी, कब वापस आई, किसीकी माँग आई है, उसे कब दी जा सकेगी इत्यादी। इसके अलावा चूँकि ग्रंथालय भी एक कार्यालय है, अतः यहाँ भी दूसरे कार्यालयोंकी तरह
कर्मचारी व्यवस्थापन -- उनकी पगार, प्रमोशन, ग्रंथालयका बजेट इत्यादि काम भी करने पडते हैं -- इनके लिये भी संगणक उपयोगी है।
प्रगत ग्रंथालयोंमें संगणक का इतना अधिक उपयोग किया जाता है कि आप अपनी मनचाही पुस्तककी थोडीसी जानकारी उन्हें दीजिये -- जैसे नाम, या लेखक, या प्रकाशक -- जो भी आप जानते हैं, और तुरंत उनका संगणक आपको बाकी जानकारी दे सकेगा कि पुस्तक उनके पास उपलब्ध है या नही, तत्काल मिल सकेगी क्या, या किसी और सदस्य के पास है तो कब तक लौटकर आनेवाली है। और आप अपना सदस्यता क्रमांक बताइये और ईमेल भेजकर सूचित करिये कि आप उसे पढना चाहते हैं। फिर जैसे ही उनके पास वापस आयेगी, आपको ईमेलसे सुचना मिलेगी और आप ग्रंथालय जाकर उसे ले आ सकते हैं। इससे समयकी बडी बचत होती है। इसके साथ ही ग्रंथालय में लाई गई नई पुस्तकें, या मासिक पत्रिकाके अनुक्रम के पन्नेकी जानकारी आदि सदस्यों के पास भेजनेका सत्कार्य भी कई ग्रंथालय करते हैं।
हमारे देशमें आज हमें चिंता हैं कि वाचक-संस्कृति घट रही है। ऐसे में ग्रंथालय सुधार और समृद्ध ग्रंथालयोंके लिये ठोस उपाय आवश्यक हैं। दशकों पुराने जमानेसे टिके हुए कई ग्रंथालय आज भी दीख जाते हैं। किसी जमानेमें उनके ग्रंथपाल व कर्मचारी एक जिद और निष्ठा लेकर काम में जुट गये और पगार आदि की चिंता किये बिना आज भी लगे हुए हैं। उनमेंसे कइयोंको अपने हजारो पुस्तकोंकी ऐसी जानकारी है मानों उनके पास 100-200 गिगाबाइट की संगणकीय मेमरी हो। पर उनके बाद क्या
इस बाबत समाज के जानेमाने लोग और सरकार भी एक काम कर सकती है कि जिन ग्रंथालयोंने कुछ दशक अविरत रूपसे वाचक-संस्कृति बनाये रखनेका काम किया है उन्हें एक मुश्त अनुदान दे ताकि वे अपने उन कर्मचारियोंका सम्मान कर सकें, साथही संगणक का प्रभावी उपयोग करने के लिये समर्थ हों। मेरे मतसे इस प्रकार अनुदान दिया जाना चाहिये --
100 वर्ष या अधिक कालसे कार्यरत -- 1 करोड
80-100 वर्ष कार्यरत - 80 लाख
60-80 वर्ष कार्यरत -- 60 लाख
40-60 वर्ष कार्यरत -- 40 लाख
20-40 वर्ष कार्यरत -- 20 लाख
ऐसा अनुदान मिलनेपर निश्चय ही ग्रंथालयभी तेजीसे संगणक संस्कृति अपनाकर अपने आपको पुनः एक बार सुव्यवस्थित करेंगे और वाचक संस्कृति टिकाये रखनेका काम सुचारू रूपसे चलाते रहेंगे जिससे अंततः प्रबुद्ध नागरिक और जानकार समाज का निर्माण होता है।
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यह तो सभी समझते हैं कि यदि ग्रंथालय व्यवस्थापन का काम संगणकके माध्यम से किया जाय तो वह बहुत उपयोगी होगा। ग्रंथालयकी हजारों पुस्तकें, उनका वर्गीकरण -- वह भी विषय-क्रमसे, लेखक-क्रमसे, प्रकाशन-वर्ष के क्रमसे, प्रकाशकके क्रमसे, कीमतके क्रमसे, और दुर्लभता के हिसाबसे भी -- यह सब संगणककी गतिसे और अचूकतासे कौन कर सकता है ।
ग्रंथालयमें प्रमुखतः दो बातोंका लेखाजोखा रखना पडता है -- स्टॉकमें कितनी पुस्तकें हैं और उनका वर्गीकरण -- यह आरंभिक बडा काम जिसे तीनसे पाँच साल में एक बार दुहरा लिया जाता है। दूसरा काम हर दिन का है -- कोनली पुस्तक किस सदस्यको दी, कब दी, कब वापस आई, किसीकी माँग आई है, उसे कब दी जा सकेगी इत्यादी। इसके अलावा चूँकि ग्रंथालय भी एक कार्यालय है, अतः यहाँ भी दूसरे कार्यालयोंकी तरह
कर्मचारी व्यवस्थापन -- उनकी पगार, प्रमोशन, ग्रंथालयका बजेट इत्यादि काम भी करने पडते हैं -- इनके लिये भी संगणक उपयोगी है।
प्रगत ग्रंथालयोंमें संगणक का इतना अधिक उपयोग किया जाता है कि आप अपनी मनचाही पुस्तककी थोडीसी जानकारी उन्हें दीजिये -- जैसे नाम, या लेखक, या प्रकाशक -- जो भी आप जानते हैं, और तुरंत उनका संगणक आपको बाकी जानकारी दे सकेगा कि पुस्तक उनके पास उपलब्ध है या नही, तत्काल मिल सकेगी क्या, या किसी और सदस्य के पास है तो कब तक लौटकर आनेवाली है। और आप अपना सदस्यता क्रमांक बताइये और ईमेल भेजकर सूचित करिये कि आप उसे पढना चाहते हैं। फिर जैसे ही उनके पास वापस आयेगी, आपको ईमेलसे सुचना मिलेगी और आप ग्रंथालय जाकर उसे ले आ सकते हैं। इससे समयकी बडी बचत होती है। इसके साथ ही ग्रंथालय में लाई गई नई पुस्तकें, या मासिक पत्रिकाके अनुक्रम के पन्नेकी जानकारी आदि सदस्यों के पास भेजनेका सत्कार्य भी कई ग्रंथालय करते हैं।
हमारे देशमें आज हमें चिंता हैं कि वाचक-संस्कृति घट रही है। ऐसे में ग्रंथालय सुधार और समृद्ध ग्रंथालयोंके लिये ठोस उपाय आवश्यक हैं। दशकों पुराने जमानेसे टिके हुए कई ग्रंथालय आज भी दीख जाते हैं। किसी जमानेमें उनके ग्रंथपाल व कर्मचारी एक जिद और निष्ठा लेकर काम में जुट गये और पगार आदि की चिंता किये बिना आज भी लगे हुए हैं। उनमेंसे कइयोंको अपने हजारो पुस्तकोंकी ऐसी जानकारी है मानों उनके पास 100-200 गिगाबाइट की संगणकीय मेमरी हो। पर उनके बाद क्या
इस बाबत समाज के जानेमाने लोग और सरकार भी एक काम कर सकती है कि जिन ग्रंथालयोंने कुछ दशक अविरत रूपसे वाचक-संस्कृति बनाये रखनेका काम किया है उन्हें एक मुश्त अनुदान दे ताकि वे अपने उन कर्मचारियोंका सम्मान कर सकें, साथही संगणक का प्रभावी उपयोग करने के लिये समर्थ हों। मेरे मतसे इस प्रकार अनुदान दिया जाना चाहिये --
100 वर्ष या अधिक कालसे कार्यरत -- 1 करोड
80-100 वर्ष कार्यरत - 80 लाख
60-80 वर्ष कार्यरत -- 60 लाख
40-60 वर्ष कार्यरत -- 40 लाख
20-40 वर्ष कार्यरत -- 20 लाख
ऐसा अनुदान मिलनेपर निश्चय ही ग्रंथालयभी तेजीसे संगणक संस्कृति अपनाकर अपने आपको पुनः एक बार सुव्यवस्थित करेंगे और वाचक संस्कृति टिकाये रखनेका काम सुचारू रूपसे चलाते रहेंगे जिससे अंततः प्रबुद्ध नागरिक और जानकार समाज का निर्माण होता है।
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